मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

कुछ यह भी जानिए (Something About It )


1-भारत की प्राचीन वैदिक संस्कृति से अलग होने पर व्यक्ति का बौद्धिक स्तरकम हो रहा है आज का व्यक्ति ------ --बिना केलकुलेटर के गणित के सरल प्रश्न हल नहीं कर सकता ! -- स्मरण शक्ति कमजोर होती जारही है सारे कार्यों को यद् रखने के लिए मेमोरी कार्ड की आवश्यकता है ! मुझे तो डर लग रहा है कि व्यक्ति निकट भविष्य में कम्प्यूटर के इतना आश्रित न हो जाये कि बिना कम्प्यूटर के यह चल भी न पाए ! साधन को साधन रहने दो साध्य न बनाओ ! -- इस समय केवल करोड़ तक ही संख्या पढ़ सकते है इससे अधिक नहीं जैसे --- १ तिरुपति जी पर वार्षिक चढ़ाबा ११०० करोड़ २ वैष्णोदेवी जी पर वार्षिक चढ़ाबा ९०० करोड़ ३ गणपति जी पर वार्षिक चढ़ाबा ५०० करोड़ ४ साईं जी पर वार्षिक चढ़ाबा १०० करोड़ जबकि संख्या करोड़ से भी अधिक तक गिनी जाती है इकाई दहाई सैकड़ा हजार दश हजार लाख दश लाख करोड़ दश करोड़ अरब दश अरब खरब दश खरब नील दश नील पदम दश पदम शंख दश शंख महा शंख अर्थात १०० करोड़ =१ अरब १००० करोड़ =१० अरब १०००० करोड़ = १ खरब इत्यादि हाँ इतना अवश्य है कि इस विद्या को केवल भारत के लोग ही जानते हैं , अन्य देशों के व्यक्ति नहीं जानते सभी मित्रों से निवेदन है कि इस प्रसंग को अन्य अपने सभी मित्रों में बातें !! धन्यवाद !

2-मैंने अनुभव किया है कि मेरे देश के व्यक्ति धर्म-कर्म में संस्कृत के प्रत्येक वाक्य या कथानक को प्रमाण मन लेते हैं तथा प्रत्येक संस्कृत के ग्रन्थ को शास्त्र कह देते हैं ! मैं इस तरह की मान्यता रखने वाले सज्जनों से कहना चाहता हूँ कि जैसे हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी या अन्य भाषाओँ में कविता होती हैं इसीप्रकार प्राचीन काल से आज तक भी संस्कृत भाषा में कविता अर्थात श्लोक -छंद लिखे जा रहे हैं ! जिस प्रकार हिंदी आदि भाषाओँ में सही -गलत, सत्य -असत्य , हितकर -अहितकर कविताएँ लिखी गयी हैं उसीप्रकार संस्कृत भाषा में भी दोनों प्रकार की कविताएँ की गयी हैं ! इसलिए संस्कृत की प्रत्येक पंक्ति या कथा सिद्धांत की दृष्टि से ठीक नहीं होती ! संस्कृत का प्रत्येक शास्त्र भी नहीं होता शास्त्र केवल छ: होते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं -- १ सांख्य शास्त्र २ योग शास्त्र ३ मीमांशा शास्त्र ४ वैशेषिक शास्त्र ५ न्याय शास्त्र ६ वेदांत शास्त्र प्रभु की अमृतमयी वाणी चरों वेदों (ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद ) के बाद सिद्धांत के लिए उपरोक्त छ: शास्त्र ही मान्य हैं सत्यासत्य के लिए केवल वेद ही प्रमाण हैं अन्य ग्रन्थ भी प्रमाण हो सकते हैं जब वेवेद के अनुकूल हों !

3-कुछ लोग कहते हैं की कलियुग चल रहा है इसलिए पाप कर्म अधिक हो रहे हैं ! मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ की इस पर समाया का कोई प्रभाव नहीं है-------- समाज में पाप अधिक होने पर कलियुग का कोई प्रभाव नहीं है ,पाप-पुण्य कर्म हैं जो विचारों पर -शिक्षा पर -आधारित हैं जो सभी को माता-पिता-अध्यापक-साहित्य (पुस्तकें)-दूरदर्शन (टी.वी.)-कम्पूटर-अन्य संचार साधनों से प्राप्त होते हैं !यदि विचार अच्छे और सच्चे हैं तो व्यक्ति के कर्म भी अच्छे होते हैं और यदि विचार गलत होते हैं तो कर्म भी गलत होते हैं! चूँकि आज के व्यक्ति का विचार ख़राब -गलत होगये हैं क्योंकि जहाँ से विचार मिलते हैं वहां से ठीक-ठीक विचार नहीं मिल पा रहे हैं इसलिए कर्म बिगड़ गए ! विचार ठीक --कर्म ठीक कलियुग का कोई प्रभाव नहीं कलियुग तो केवल समय नापने का बड़ा पैमाना है आइये आपको समय की कुछ जानकारी देते चलें --- समय का सबसे छोटा पैमाना सैकिंड होता है सैकिंड के बाद मिनट-घंटा-दिन-दिवस-पक्ष-महिना और वर्ष आते हैं इसके बाद समय की बड़ी माप देखते हैं - ४ लाख ३२ हजार वर्ष = १ कलियुग ८ लाख ६४ हजार वर्ष = १ द्वापरयुग १२ लाख ९६ हजार वर्ष =१ त्रेतायुग १७ लाख २८ हजार वर्ष = १ सतयुग १ कलियुग +१ द्वापरयुग+ १ त्रेतायुग+ १ सतयुग =१ चतुर्युगी ७१ चतुर्युगी=१ मनवंतर १४ मनवंतर=१ कल्प वेद और शास्त्रों के अनुसार सृष्टी १ कल्प तक ठहरती है शेष फिर -------------------------- आप अपनी राय हमें अवश्य भेजें धन्यवाद !

रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण ) ( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट ) घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ...