गुरुवार, 19 मार्च 2020

जीवन की प्रथम‌ और महत्वपूर्ण आवश्यकता "स्वास्थ्य"

जीवन की प्रथम‌ और महत्वपूर्ण आवश्यकता "स्वास्थ्य" 


स्वस्थ रहने के आवश्यक नियम -


० रात्रि की सोने से पहले दांत साफ करके सोयें।


० प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में जगें।


० जगते ही गुनगुना पानी पीयें । जितना पी सकते उतना पीयें। धीरे धीरे पानी की मात्रा बढ़ाते हुए एक लीटर तक बढायें।


० थोड़ा टहलकर शौच से निवृत्त होकर अच्छे से हाथ धोयें। ( ध्यान रहे - एक ही साबुन से सभी हाथ ना धोयें या तो तरल स्थिति ( लिक्विड ) या  पाउडर स्थिति में हाथ धोने का साबुन हो उससे धोयें या साफ मिट्टी से भी धो सकते हैं)


० उपरान्त दांत साफ करें इसके लिए आयुर्वेदिक मञ्जन, पेस्ट या दातुन से करें। दांत साफ करने के बाद जीवी से चीभ साफ करें तथा अपने हाथ की दोनों बीच की बड़ी उंगलियों ( मध्यमा और अनामिका ) को मिलाकर धीरे धीरे जीभ पर रगडें। आंख, नाक से पानी निकले तो घबरायें नहीं, यह सब सफाई ही है। और मुँह में से पानी पलट जाये तो भी ना घबरायें। 


० फिर व्यायाम, आसन और प्राणायाम करें। ( व्यायाम, आसन और प्राणायाम की ठीक जानकारी लेकर ही अभ्यास करें )  व्यायाम करते समय शक्ति का अतिक्रमण न करें । पहले दिन थोड़ा अभ्यास करें फिर प्रतिदिन अभ्यास का समय बढ़ायें। अच्छे परिणाम के लिए अभ्यास प्रतिदिन करें। 

      व्यायाम इस तरह करें कि शरीर के प्रत्येक जोड़ का अभ्यास हो जाय। उंगलियों के जोड़ का अभ्यास बार बार मुट्ठी बन्द करके करें, मुट्ठी बन्द करके और खोलकर कलाई घुमाकर कलाई का अभ्यास करें इसी प्रकार कुहनी, कन्धे, कमर-कटि, घुटने और टखने को उचित दिशा में घुमाकर कर अभ्यास करें। धीरे धीरे कुछ कठिन अभ्यास करें।

        पद्मासन, वज्रासन, चक्रासन और मण्डूकासन आदि का अभ्यास करें। आरम्भ में टहलने का अभ्यास भी अच्छा रहेगा। युवावस्था वाले दौड़ने और दण्ड-बैठक का अभ्यास धीरे धीरे बढ़ायें।

       प्राणायाम - आरम्भ में थोड़े समय प्राणायाम करें धीरे धीरे प्राणायाम का समय बढ़ायें। प्राणायाम और क्रियायें अनेक प्रकार की हैं, कम से कम और अत्यावश्यक प्राणायाम और क्रियाओं का क्रम इस प्रकार रखें - 

१. भस्त्रिका

२. कपाल भाति

३. बाह्य प्राणायाम ( त्रि बन्ध के साथ )

४. अग्निसार

५. अनुलोम विलोम

६. ओंकार जाप या उद्गीथ

७. उज्जायी

८. भ्रामरी

९. गायत्री जाप ( सन्ध्या )


० व्यायाम से पहले या कुछ देर के उपरान्त स्नान करें। 


० उपरान्त दैनिक यज्ञ (अग्निहोत्र ) करें।


० भोजन में शाकाहार ही लें।


० दिन में अपने आवश्यक कार्यों को करके रात्रि को समय से ही सोयें।


० साम के भोजन से पूर्व दूर तक अवश्य टहलें। टहलने की दूरी धीरे धीरे  बढ़ायें।

० साम के भोजन को रात्रि से पूर्व करें।


[यहां पर जानकारी केवल सूत्र रूप में लिखी है इन बिन्दुओं पर विस्तार से भी कभी लिखेंगे। उपरोक्त सन्दर्भ में अधिक जानकारी के लिए आप हमसे सम्पर्क कर सकते हैं - ९८९७०६०८२२]

आवश्यक सन्देश

नमस्ते जी

*[यह सन्देश यदि आवश्यक लगे तो साझा अवश्य करें]*

        आज सारा विश्व भयंकर कोराना विषाणु से बचाव में लगा हुआ है। भारत की केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारें भी इस क्षेत्र में सजगता के साथ आवश्यक कार्य कर रही हैं। चिकित्सकों का योगदान बहुत ही सराहनीय है। मीडिया और सोशल मीडिया भी सभी को जागरुक कर रहा है। जो जो भी इस कार्य में सहयोगी हैं उनको धन्यवाद देते हुए इस समय सभी के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि स्वास्थ संस्थाओं ‌के द्वारा बतायी गयी जानकारी को हम‌ सब अपनायें और देश को बचायें।

      आयुर्वेद में विषाणु नाशक अनेक पदार्थों का वर्णन किया है, उनमें से सबसे अधिक उत्तम पदार्थ 'गोघृत' है। गोघृत के सेवन करने और यज्ञ ( अग्निहोत्र ) करने से सभी प्रकार के विषाणुओं का नाश हो जाता है।

         सृष्टि के आदि काल से आज तक लम्बा समय हो गया ( १९६०८५३१२० वर्ष ) अनेक बार बीमारियों ने महामारी का रूप लिया है, उनसे बचने और जीतने के अनेक तरीके भी तैयार किये गये हैं।

         यहां एक बात तो यह जानने योग्य है कि चिकित्सा की सबसे प्राचीन, विस्तृत और लम्बे समय तक स्वास्थ लाभ देने वाली उत्तम पद्धति ' आयुर्वेद' ही है। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि अन्य पद्धतियां ठीक नहीं है, अन्य पद्धतियों ने भी हमारे स्वास्थ के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है जिनमें एलोपेथी ने बहुत उच्च स्थान बनाया है। 

      वेद ज्ञान का आदि स्रोत है जिसमें स्वस्थ रक्षा से सम्बन्धित अनेक मन्त्र हैं, जिनके आधार पर हम स्वस्थ कैसे रहें और हम स्वस्थ कैसे हों, इन दोनों क्षेत्रों में आयुर्वेद ने बहुत काम किया है।

आज भी पहला प्रश्न यही है कि हम स्वस्थ कैसे रहें अर्थात् विषाणु से कैसे बचें, फिर दूसरा प्रश्न है कि हम स्वस्थ कैसे हों अर्थात् विषाणु से ग्रसित हो जायें तो उपचार क्या है?

ध्यान दें - 
        अपनी जीवन शैली वैदिक काल जैसी अपनायें अर्थात् स्वच्छता का ध्यान रखें, नित्य व्यायाम, आसन और प्राणायाम करें, शाकाहारी आहार ही लें, परमेश्वर की उपासना और गोघृत और औषधियों से अग्निहोत्र को दिनचर्या में सम्मिलित करें, माता-पिता-विद्वानों की सेवा को धर्म समझकर करें, अपने जीवन को चलाने और उन्नत करने के लिए किसी को भी हानि ना पहुंचायें। इससे हम स्वस्थ ही नहीं रहेंगे बल्कि सुखी रहेंगे।

         जिन कारणों से विषाणु फैलने की सम्भावना है उनसे बचें/बचायें। कोरोना विषाणु के ग्रसित होने के लक्षण प्रतीत होने पर और अधिक सावधानी बरतते हुए सरकार द्वारा बताये गये फोन सूत्र पर सम्पर्क करें।

       नॉवल कोरोना वायरस फैलने से रोकें|  खाँसते,छींकते वक़्त अपने मुँह को रुमाल/टिशू से ढकें| हाथों को लगातार साबुन से धोएं| अपनी आँख,नाक और मुँह को न छुएं| अगर किसी को खाँसी, बुखार या साँस लेने में तकलीफ़ हो तो उससे 1 मीटर की दूरी बनाये रखें| ज़रूरत पड़ने पर नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र या हेल्पलाइन नंबर. 01123978046 पर संपर्क करें|

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