शनिवार, 18 जनवरी 2020

आध्यात्मिक चर्चा - ९

आध्यात्मिक चर्चा - ९
आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज का उपदेश है -
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।

जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।।
    जन्म मृत्यु का होना अपरिहार्य है वैसे ही जैसे प्रातःकाल होता है फिर दोपहर होता है फिर साम होती है और फिर रात आती है और फिर प्रातःकाल होता है, इस क्रम को रोका नहीं जा सकता है, बदला नही जा सकता है। ठीक इसी प्रकार जन्म होता है फिर युवावस्था आती है फिर वृद्धावस्था आती है और फिर मृत्यु होती है और फिर जन्म होता है यह क्रम को भी रोका नहीं जा सकता, बदला नही जा सकता है। इसीलिए योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज कहते हैं कि मृत्यु पर शोक मत करो।
     इस प्रसंग को हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि कोई व्यक्ति दिन में रात्रि आने को लेकर चिन्ता करे और कहे कि हाय हाय रे रात आयेगी तो उसका चिन्ता करना व्यर्थ ही है  क्योंकि रात तो आयेगी ही, इसीप्रकार कोई यह कहें कि हाय हाय रे कल का दिन होगा तो भी चिन्ता करना व्यर्थ ही है क्योंकि कल का दिन तो आयेगा ही। इस पर चिन्ता नही करनी चाहिए बल्कि इस पर चिन्तन करना चाहिए कि अभी रात आने में समय है और जो भी समय रात आने में है उसे सार्थक व्यतीत किया जाय। इसी प्रकार कल का दिन तो होगा यह चिन्ता का विषय नही है बल्कि अगला दिन अच्छा कैसे हो यह चिन्तन का विषय है।
ठीक इसीप्रकार मृत्यु शोक या चिन्ता का विषय नहीं है क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है, होनी ही है, चिन्तन का विषय तो यह है कि मृत्यु तक हमारे पास जो भी समय है उसे सार्थक व्यतीत किया जाय। तथा अगला जन्म चिन्ता का विषय नही है क्योंकि वह तो होना ही है, हमें इस बात पर चिन्तन करना चाहिए कि अगला जन्म मनुष्य का श्रेष्ठता से युक्त मिलना चाहिए।
     "आज के मनुष्य का चिन्तन बदल गया है जिस विषय पर चिन्तन करना चाहिए उस पर तो चिन्तन नही करता है और जिस विषय पर चिन्तन नहीं करना चाहिए उस पर चिन्तन करता है।"

      ऋषि और महर्षियों ने  जन्म मृत्यु से मुक्ति प्राप्त करने के लिए चिन्तन किया, जीवन को सफल बनाने के लिए अध्ययन किया और मोक्ष के लिए साधना की। संसार का मार्गदर्शन भी किया। (इस पर विस्तार से आगे लिखेंगे)
   अभी तक हमने समझा कि - 
० आत्मा एक अविनाशी और अनादि सत्ता है। 
० शरीर पाँच तत्वों से मिलकर बनता है और अन्ततः उन्हीं पाँच तत्वों में विलीन हो जाता है।
० शरीर और आत्मा का संयोग जन्म है, शरीर और आत्मा का साथ-साथ चलना जीवन है तथा शरीर और आत्मा का वियोग ही मृत्यु है।
० जन्म और मृत्यु का होना अनिवार्य है अर्थात् आत्मा का शरीर में आना और शरीर को छोड़ना निश्चित है।
० यहां एक बात और जानना आवश्यक है कि इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तीन अनादि सत्तायें हैं - परमात्मा, जीवात्मा और प्रकृति । इस प्रसंग को क्रमशः और विस्तार से पढ़ने लिए ब्लॉग ( shankaragra.blogspot.com ) पर सैद्धान्तिक चर्चा पढ़ें।

आगामी चर्चा में विस्तार से लिखा जायेगा कि जन्म , मृत्यु और जीवन का आधार क्या है? कारण क्या है?
क्रमशः ...

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