ओ३म् श्री परमात्मने नमः
कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की मिशनरी योजना
नमस्ते जी
मैंने अपने अध्ययन और प्रचार यात्रा में हुए अनुभवों के आधार पर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के मिशन को जितना समझा है और इस मिशन में कैसे सफलता मिलेगी ? इसके लिए कुछ विचार आपके सामने रखने का प्रयास किया है। यदि ये विचार उपयोगी लगें तो आपसे विनम्र निवेदन है कि इस सन्देश को बिना किसी परिवर्तन के प्रत्येक आर्य भाई बहन के पास पहुंचायें। और अपनी सामर्थ्य से ऋषि मिशन की सफलता के लिए कुछ कार्य अवश्य करें।
हम सभी को निम्नलिखित चार बिन्दुओं पर विचार विमर्श करना चाहिए -
१ आर्य समाज का उद्देश्य ( ऋषि मिशन ) क्या है ?
२ आर्य समाज अपने उद्देश्य में अभी तक कितना सफल हुआ है ?
३ आर्य समाज की सफलता में वर्तमान अधिकारियों और प्रचारकों का योगदान है?
४ आर्य समाजके उद्देश्य की सफलता के लिए आगामी योजनायें ।
हमारी कार्य योजना -
आर्य समाज की आवश्यक गतिविधियां
आर्य समाज की विशेष गतिविधियां
आर्य जनों के व्यक्तिगत स्तर पर कार्य
आर्य विद्वानों व पूर्णकालिक प्रचारकों के कार्य
वानप्रस्थी, सन्यासी व पूर्णकालिक जीवनदानियों के कार्य
उपरोक्त बिन्दुओं पर यहाँ संक्षेप में विचार लिखे जा रहे है। आर्य समाज के कार्यक्रम या आर्योद्देश्यकार्यशाला में विस्तार से विचार रखे जाते हैं।
१- आर्य समाज का उद्देश्य -
० महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज और आर्य समाज का उद्देश्य है - "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" अर्थात् सम्पूर्ण विश्व को आर्य ( श्रेष्ठ ) बनाना। अर्थात् वैदिक काल जैसा विश्व बनाना।
० पूर्व वैदिक काल में न राजा, न मन्त्री, न सेना और फिर भी कोई अपराध नहीं होता था, क्योंकि सभी लोग वैदिक सिद्धान्तों का पालन करते थे। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ऐसा ही फिर से संसार बनाना चाहते थे।
० संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है। अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना। इस नियम में उद्देश्य के साथ सफलता का आधार भी लिखा है।
० उत्तर वैदिक काल में जब राजा थे तो वे ऐसा राज्य चलाते थे कि राजा अपने राज्य का परिचय इस प्रकार देता था — "न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः। नानाहिताग्निर्नाविद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः ।।–(छन्दोग्य उपनिषद् ) मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है, कोई कन्जूस नहीं है, कोई शराबी नहीं है, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो प्रतिदिन अग्निहोत्र न करता हो, कोई मूर्ख नहीं है, कोई व्यभिचारी पुरुष नहीं है, फिर भला व्यभिचारिणी स्त्री तो हो ही कैसे सकती है ?"। ऐसा ही फिर से राष्ट्र बने यह है महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज और आर्य समाज का उद्देश्य।
० वैदिक गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति और निष्पक्ष सत्य न्याय से ही सम्भव है ऋषि के स्वप्नों का संसार बनना।
० भारत के गौरवशाली अतीत को लौटाना ही है आर्य समाज का उद्देश्य ।
० एतद्देशप्रसुतस्य सकाशादग्रजन्मनः - सारे विश्व को शिक्षा देना, चक्रवर्ती राज्य करना, समृद्धि के कारण सोने की चिड़िया कहा जाना, यहां के लोगों के जीवन की पवित्रता के कारण देश को देवभूमि कहा जाना यह सब विश्वपटल पर भारत का गौरव फिर से स्थापित हो जाय यह है ऋषि मिशन।
० योग्यता और वैदिक जीवन शैली से ही भारत विश्व गुरु बनेगा।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के कार्य और योजनायें जिनसे एक दिन उद्देश्य में सफलता अवश्य मिलेगी -
० जन सामान्य को वेदोपदेश,
० वैदिक सिद्धान्तों की स्थापना के लिए शास्त्रार्थ,
० धर्म के ठेकेदारों का सुधार,
० राजाओं और राज परुषों का सुधार,
० आर्य समाज की स्थापना - कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की सफलता के लिए योजनाबद्ध कार्य करने लिए आर्य समाज की स्थापना की गयी।
० गुरुकुल संचालन
० संस्कृत पाठशालायें
० शिक्षा में सुधार
० योग्य विद्वान उपदेशक तैयार करना
० साहित्य लेखन
० अनाथालय
० गोकृष्यादिरक्षिणी सभा - जिससे गो और कृषि की रक्षा होसके।
० राष्ट्र की आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक उन्नति के लिए प्रयास
२- आर्य समाज अपने उद्देश्य में कितना सफल हुआ -
इसे समझकर निराशा के भाव नहीं आने चाहिए । आर्य समाज आज तक अपने उद्देश्य में बहुत सफल हुआ है-
४० से अधिक देशों में आर्य समाज स्थापना
६० से अधिक देशों में आर्य समाज का प्रचार
हजारों आर्य समाजें
लाखों आर्य सदस्य
करोड़ों लोग आर्य समाज से परिचित
हजारों उपदेशक/प्रचारक
सैकड़ों प्रकाशन
सैकड़ों पत्र - पत्रिकायें
सैकड़ों गुरुकुल
हजारों अन्य शिक्षण संस्थान - प्राथमिक-माध्यमिक-उच्चमाध्यमिक- महाविद्यालय-विश्वविद्यालय
५० से अधिक अनाथालय
एक हजार लगभग आर्य वीर दल की शाखायें
हजारों आर्य वीर दल के कार्यकर्ता
३- आर्य समाज की सफलता में वर्तमान अधिकारियों और प्रचारकों का योगदान
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, आर्य प्रतिनिधि सभा, स्थानीय आर्य समाज व गुरुकुल आदि अधिकतर संस्थाओं में इस समय संगठनात्मक विकृति आयी है। ( कुछ ही संस्थाएं बहुत अच्छा कार्य कर रहीं हैं।)
प्रचार कार्यक्रमों में जहां उपस्थिति कम हुई है वहीं कार्यक्रमों की संख्या भी कमी हुई है, अधिकतर कार्यक्रम औपचारिकता के लिए होरहे हैं प्रचार की दृष्टि से योजना बनाकर नहीं। आज कल कोई ठोस काम नहीं होरहा है खाना पूर्ति होरही है, जन सामान्य में आर्य समाज के प्रति बहुत अच्छे भाव नहीं रह गये हैं।
उपदेशकों की संख्या कम हो रही है और समर्पण व योग्यता में भी कमी आयी है, आपस में सम्पर्क हीनता है। अपने आगे किसी को श्रेष्ठ नहीं माना जाता, विरिष्ठों ने भी अपनी गरिमा स्वयं गिराई है। एक दूसरे से निन्दा करना सामान्य बात हो गयी है।
आर्य समाज के अधिकारियों में सैद्धान्तिक कमी आयी है, पौराणिक विचार धारा से ग्रसित आर्य समाज के अधिकारी बन गये है जो कि बहुत ही चिन्ता जनक है।
आर्य समाजों का निजीकरण हो रहा है या गलत लोगों का कब्जा हो रहा है।
आर्य समाज को केवल विवाह के लिए जाना जाता है, वर्तमान समस्याओं पर आर्य समाज की कोई प्रतिक्रिया नहीं आती। आर्य समाज के उद्देश्य की सफलता के लिए कोई योजना नहीं रह गयी है।
उपरोक्त विचार किसी के प्रति द्वेषभाव से या निराशा के भावों से नही लिखे है बल्कि वर्तमान स्थिति का परिचय कराने के लिए लिखें हैं।
४- आर्य समाज की सफलता के लिए आगामी योजनायें -
० लगभग सात हजार वर्ष पहले से वैदिक व्यवस्थाओं में विकृति शुरू हुई है इसके सुधार में समय बहुत लगेगा अर्थात् पीढ़ियाँ लगेंगी। इसीलिए बहुत ही नियोजित कार्य करना होगा। हताशा, निराश और किसी प्रकार की कमजोरी नहीं आनी चाहिए धैर्य पूर्वक ऋषि मिशन पर निरन्तर लगे रहने से सफलता अवश्य मिलेगी।
० उपदेशक निर्माण के लिए संकेत - महर्षि जी ने कहा इस कार्य को पूरा करने के लिए मेरे जैसे हजारों लोग चाहिए - जब महर्षि दयानन्द जी महाराज जैसे हजारों चाहिए तो हमारे जैसे तो लाखों उपदेशक चाहिए। इसीलिए आर्य समाज और गुरुकुलों ने उपदेशकों का निर्माण किया लेकिन वर्तमान में यह कार्य शिथिल पड़ गया है इस योजना पर सबसे अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
० आर्य प्रशिक्षण केन्द्र - एक ऐसा प्रशिक्षण केन्द्र जहां से ऋषि मिशन के लिए प्रचारक तैयार हो सके। आर्य वीर / वीरांगना, प्रचारक, कार्यकर्ता, उपदेशक / उपदेशिका, भजनोपदेशक / भजनोपदेशिका, पुरोहित, व्यायाम शिक्षक आदि योजनाबद्ध तैयार करने होंगे। ( इस पवित्र कार्य के लिए जब तक कोई बहुत अच्छी और बड़ी व्यवस्था नहीं होती है तब तक किसी भी आर्य समाज या अन्य प्राप्त स्थान से ही कार्य आरम्भ किया जा सकता है और आर्य समाजें स्वयं को लघु प्रशिक्षण और प्रचार केन्द्र जैसा बनाकर कार्य करें।)
० ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र पहले प्रान्त स्तर और फिर जनपद स्तर पर स्थापित किये जायें ।
० केन्द्र पर आवश्यक संसाधन - प्रशिक्षणार्थी ठहरने की व्यवस्था, स्नानागार, शौचालय, पाकशाला ( भोजन सामग्री भण्डारण व भोजन पकाने का स्थान ), भोजन करने का स्थान, सभागार, यज्ञ शाला, पुस्तकालय, पुस्तकों की पीडीएफ फाइल संकलन, वीडियो/ऑडियो में आवश्यक सामग्री संकलन, व्यायाम शाला, व्यायाम प्रदर्शन स्थल, अतिथि शाला, वाहन व्यवस्था व पार्किंग आदि।
० कार्यालय - आर्य समाज की सम्पूर्ण गतिविधियों का विवरण, आर्य समाज के अधिकारी, उपदेशक, प्रचारक, गुरुकुल, शिक्षण संस्थान आदि के विवरण व सम्पर्क सूत्र। आर्य समाज के कार्यक्रमों और पुरोहितों के सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों के सम्पर्क सूत्र। सभी की योग्यता और क्षमता के अनुसार प्रचार में सहयोग लेना।
० आर्य प्रचार केन्द्र ( स्टूडियो ) जिससे वर्तमान नये तरीकों से भी चेनल बनाकर कार्य किया जाय।
० साहित्य व सामग्री स्टोर - प्रचार व अनुष्ठानों के लिए आवश्यक सामग्री निर्माण व बिक्री केन्द्र -
पुस्तकें
लघु पुस्तकें
हवन सामग्री
यज्ञ कुण्ड
यज्ञ पात्र
मन्त्र लिखे दुपट्टे
ओ३म् ध्वज
छोटे छोटे प्रचार पत्र जैसे = आर्य समाज मान्यता शतक ,वेद एक संक्षिप्त परिचय, अग्निहोत्र का वैज्ञानिक विश्लेषण आदि,
स्टीकर
पोस्टर
काल दर्शक
महापुरुषों के चित्र
सन्देश देने वाले चित्र
प्रचार पट्टिकाएँ
बेनर
हार्डिंग
लिफाफे
शादी कार्ड
गिफ्ट पेक
थेले पर छपाई
फर्म के पोस्टर
प्रचार में सहयोगी साधन
समाचार पत्र
आर्य जगत की पत्रिकाएं व अन्य पत्रिकाओं में अपने विचार प्रकाशित करना
प्रचार पत्र
दीवाल ( भित्ति ) लेखन
ऍफ़ एम
रेडियो
इलैक्ट्रोनिक मीडिया - न्यूज चैनल्स , स्थानीय चैनल्स व धार्मिक चैनल्स आदि।
सोशल मीडिया - फेसबुक, व्हाट्सआप, ट्यूटर आदि।
यू ट्यूब
ब्लॉगर
वेबसाइट
डीवीडी प्लेयर
प्रोजेक्टर
एल ई डी टी वी द्वारा प्रचार
० उद्देश्य की सफलता का प्रमुख कार्य - सभाओं का ठीक से संचालन
सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा व प्रान्तीय प्रतिनिधि सभायें
गोकृष्यादिरक्षिणी सभा
राज आर्य सभा
धर्मार्य सभा
विद्यार्य सभा
आज सभाओं को ठीक करने की अत्यावश्यकता है। नहीं तो इतिहास क्षमा नहीं करेगा। सभी आर्य जन इस कार्य के लिए प्रयास करें तभी सम्भव है।
० कार्य योजना के लिए विभागानुसार प्रतिनिधि बनाकर कार्य करना-कराना
आर्य किसान प्रतिनिधि
आर्य शिक्षक प्रतिनिधि
आर्य विद्यालय प्रतिनिधि
आर्य व्यापार प्रतिनिधि
आर्य उद्योग प्रतिनिधि
आर्य अधिवक्ता प्रतिनिधि
आर्य नेता प्रतिनिधि
आर्य धर्माचार्य प्रतिनिधि
आर्य मीडिया प्रतिनिधि
आर्य छात्र प्रतिनिधि
आर्य समाज की आवश्यक गतिविधियां -
दैनिक सन्ध्या एवं हवन ( अग्निहोत्र )।
साप्ताहिक अधिवेशन - जिसमें सन्ध्या, हवन ( अग्निहोत्र ) व भजन, प्रवचन तथा महर्षि दयानन्द सरस्वती महाराज की जीवनी , सत्यार्थ प्रकाश व वेद भाष्य का वाचन।
वेद प्रचार सप्ताह - श्रावण मास में या सुविधानुसार।
वार्षिकोत्सव - स्थापना दिवस पर या सुविधानुसार।
श्रावणी, दीपावली, विजयादशमी, होलिकोत्सव,रामनवमी, श्री कृष्णजन्मष्टमी, ऋषिबोधोत्सव, ऋषिनिर्वाण दिवस, आर्य समाज स्थापना, क्रांतिकारियों के बलिदान दिवस आदि कार्यक्रम।
विशेष - आर्य समाज के कार्यक्रम करने के साथ-साथ विशेष बात हमारे व्यवहार की है कि हम लोगों के साथ व्यवहार कैसा करते हैं हमारा व्यवहार ही आर्य समाज को गति देगा।
आर्य समाज की विशेष गतिविधियां -
० आर्य समाज का प्रत्येक कार्य बहुत सरलता और सुचिता से होना चाहिए। प्रत्येक आर्य जन का व्यवहार बहुत अच्छा होना चाहिए यह एक तप है जो की आर्य समाज की गति के लिए आवश्यक है। हमारा कार्य प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करना चाहिए। इसमें आर्य समाज के उपदेशक, अधिकारी और सदस्य सभी का उत्तर दायित्व है। अधिक से अधिक लोगों तक हमारी विचार धारा कैसे पहुंचे यह ध्यान देने योग्य बात है इसके लिए आर्य समाजों को योजनाबद्ध काम करना चाहिए।
० अधिक से अधिक जन सम्पर्क किया जाय। सम्पर्क के समय लोगों को आर्य समाज की गतिविधियों में आमन्त्रित किया जाय। इससे पूर्व आर्य समाज के सभी कार्यक्रमों को सरल, सुलभ, आकर्षक और व्यवहार से बहुत अच्छा बनाया जाय जिससे कोई भी व्यक्ति हमारे कार्यों को देखकर आर्य समाज के विश्व कल्याण अभियान के साथ अपना सहयोग दे सके।
० अधिक से अधिक धन संग्रह किया जाय और पूर्ण सुचिता के साथ आय-व्यय का विवरण समय समय पर प्रस्तुत किया जाय।
० सार्वदेशिक सभा, प्रान्तीय सभायें, जनपद की सभायें, या कोई भी आर्य समाज या कोई भी प्रकाशन बड़े स्तर पर प्रचार सामग्री तैयार करे और उस सामग्री को सभी आर्य समाजें अपने क्षेत्र में प्रचार के लिए प्रयोग करें।जैसे - छोटे छोटे प्रचार पत्र जैसे = आर्य समाज मान्यता शतक ,वेद एक संक्षिप्त परिचय, अग्निहोत्र का वैज्ञानिक विश्लेषण आदि, लघु पुस्तकें, स्टीकर, पोस्टर, काल दर्शक , महापुरुषों के चित्र, सन्देश देने वाले चित्र, प्रचार पट्टिकाएँ, झण्डे, दुपट्टे, बैनर, हार्डिंग इत्यादि
० सभी आर्य समाजें अपने क्षेत्र नगर ग्राम में मुख्य मार्गों पर "आर्य समाज आपका स्वागत करता है" इस प्रकार का सन्देश देते हुए बैनर या हार्डिंग लगवायें। प्रचार सामग्री वितरण या विक्रय के लिए उपलब्ध रखें। अधिक से आधिक साहित्य का प्रचार किया जाये ।
० आर्य समाज में कुछ रचनात्मक कार्य करें, आर्य प्रशिक्षण केन्द्र, संस्कृत पाठशाला , गरीब बच्चों के लिए अतिरिक्त शिक्षा व्यवस्था, आर्य वीर दल की शाखा, आर्य वीर दल के चरित्र निर्माण शिविर, योग की कक्षा, वैदिक संस्कार शाला, धर्मार्थ चिकित्सालय, धर्मार्थ औषधालय, वाचनालय, गरीब परिवार की बेटियों के लिए निःशुल्क सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र, गरीब असहाय लोगों की सेवा, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं, आर्य समाज में जीवनदानी प्रचारकों, वानप्रस्थी व सन्यासियों के लिए भोजन और विश्राम की व्यवस्था तथा उनका सहयोग लेकर प्रचार। यथासामर्थ्य गुरुकुल तथा गौशाला आदि संस्थाओं को सहयोग करें। आर्य समाज के उत्सव के समय भी कुछ कार्यक्रम किये जा सकते हैं जैसे - आर्य वीर/वीरांगना शिविर, योग शिविर एवं चिकित्सा शिविर आदि।
० आपातकाल में विद्वानों, प्रचारकों और गुरुकुल आदि को विशेष सहयोग करें।
० आर्य समाजें पुरोहित रखें तथा यज्ञ, सत्संग और संस्कारों के कार्यक्रम अनिवार्य रूप से अपने सभी घरों में करें अपने पड़ोसियों, मित्रों, व सम्बन्धियों, को आमंत्रित करें ताकि यज्ञ और संस्कारों को उनके घरों तक भी पहुंचा सकें और उनकी इच्छा पर सरलता से यह कार्यक्रम उनके घरों पर भी किये जाएँ। इन कार्यक्रमों के लिए पुरोहितों या उपदेशकों की व्यवस्था हो या जो आर्य सज्जन अच्छे से करना जानते हों वे करायें। विधि पूर्णतया संस्कार विधि पर आधारित, सरल व ग्राह्य होनी चाहिए। पुरोहित जी की दक्षिणा का भी ध्यान रखा जाय। यजमान अपनी सामर्थ्य के अनुसार पुरोहित जी को दक्षिणा दें ताकि पुरोहित भी प्रचार में पूर्ण सहयोग करें। कार्यक्रमों में प्रचार सामग्री का ठीक से प्रयोग किया जाय। कार्यक्रमों में ज्ञान वर्धक प्रचार पत्रकों व लघु पुस्तकों का वितरण किया जाय। कार्यक्रमों में आर्य समाज की गतिविधियों की जानकारी दी जाय। पूर्ण मिशनरी भाव से जन जन तक वैदिक धर्म का प्रचार करें। कार्यक्रम में सभी का व्यवहार यह तय करेगा कि हम मिशन को कितनी गम्भीरता से चला रहे हैं हमारे व्यवहार का प्रचार पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
० आर्य समाजें अपने क्षेत्र में विद्यालयों, ट्यूशन केन्द्रों, विद्यापीठों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, शहीद स्मारक जैसे प्रसिद्ध स्थलों, मंदिरों, पार्कों, कारागारों, तथा सामाजिक संगठनों में कार्यक्रम बनाकर और जहाँ भी जन समूह एकत्रित होता हो मेले आदि में पूर्ण मिशनरी भाव से वैदिक सिद्धान्तों का प्रचार करें तथा लोगों को विश्व कल्याण के अभियान से जुड़ने का आह्वान करें।
० प्रभात फेरी, शोभायात्रा, साइकिल यात्रा, वाहन यात्रा आदि भी समय समय पर करते रहें।
० प्रचार को अधिक गति देने के लिए पारायण यज्ञ आदि का आयोजन बड़े स्तर पर करें।
० बड़ी आर्य समाजें उन क्षेत्रों को चिह्नित कर प्रचार कराएं जिस क्षेत्र में आर्य समाज नहीं हैं।
आर्य जनों के व्यक्तिगत स्तर पर कार्य -
० आर्य समाज के नियमों का सत्य और निष्ठा से पालन करते हुए अपना व्यवहार इतना अच्छा बनायें कि आप जहाँ रहते हैं और जहाँ कार्य करते हैं वहां के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकें।
० आपकी उपस्थिति परिवार सहित रविवार को कहीं न कहीं आर्य समाज में अवश्य होनी चाहिए।
० अपने मोहल्ले में अपने स्तर पर वेद प्रचार कराना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
० यदि आप व्यापारी हैं तो वैदिक विचारों को कैसे अपने ग्राहकों तक पहुँचायें यह चिन्तन करें। हमारे व्यापार का सामान गुणवत्ता में अच्छा हो, माप सही हो तथा हमारा व्यवहार भी अच्छा हो तो हमारा व्यापार भी अच्छा चलेगा और विचारों का भी लोग आदर करेंगे। व्यापार के प्रचार के साथ वैदिक विचारों का भी प्रचार करें। व्यापार के विज्ञापनों में महर्षि दयानन्द सरस्वती के चित्र और विचारों को स्थान दें।
० यदि आप अध्यापक हैं तो पूर्ण प्रयास करके यह तय करें की वैदिक विचारों को अपने साथियों और विद्यार्थियों तक कैसे पहुँचायें। पहले अपने जीवन को आदर्श बनायें फिर अपने विचारों को वार्तालाप, पत्रक, पुस्तकों, के माध्यम से उन तक पहुँचायें।
० इसीप्रकार यदि आप डॉक्टर, इन्जीनियर या किसी भी विभाग में कर्मचारी या अधिकारी हैं तो आप अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए वैदिक मिशन को आगे बढ़ाएं।
० आज के वैचारिक प्रदूषण के वातावरण में हम सभी के सम्मुख बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं , हम सभी को पूर्ण निष्ठा के साथ वैदिक विचारों को मिशनरी भाव से जन जन तक पहुँचाना है।
० यथा सामर्थ्य गुरुकुल आदि संस्थाओं को सहयोग करें।
० यथा सामर्थ्य प्रचारकों को सहयोग करना।
आर्य विद्वानों व पूर्णकालिक प्रचारकों के कार्य -
मेरा सभी प्रचारकों, उपदेशकों, पुरोहितों से निवेदन है कि आप आर्य समाज को बहुत अधिक गति दे सकते हैं।
० खाली समय में क्षेत्रीय कार्यक्रम आयोजित करके।
० कार्यक्रम में जाते समय अपने साथ स्टीकर, पत्रक और लघु पुस्तकें अपने साथ रखें , यात्रा करते समय सहयात्रियों को अपने विचारों से अवगत कराएं , पत्रक वितरण करें , स्टीकर चिपकाएं।
० कार्यक्रम के समय विद्यालयों, ट्यूशन केंद्रों, मन्दिरों, कारागारों में आयोजकों द्वारा कार्यक्रम बनाकर मिशनरी भाव से प्रचार करें तथा लोगों को महर्षि दयानन्द के विचारों से जुड़ने का आह्वान करें।
० आप थोड़ा समय निकालकर सोशल मीडिया पर अपने नए विचार अवश्य साझा करें।
० अपने प्रवचन और भजन की वीडियो बनाकर यू ट्यूब पर लोड करायें।
वानप्रस्थी, सन्यासी व पूर्णकालिक जीवन दानियों के कार्य -
वानप्रस्थी, सन्यासी व पूर्ण कालिक जीवनदानी प्रचारक आर्य समाज का सबसे अधिक कार्य कर सकते हैं।
० सभी को साथ लेकर सामाजिक, राष्ट्रीय व वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए स्थान स्थान पर कार्यक्रम आयोजित करके आंदोलन चलायें ।
० शिक्षा में सुधार - समान शिक्षा
० आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का प्रचार
० कृषि सुधार
० नशामुक्ति अभियान
० बेटी बचाओ अभियान
० गौरक्षा अभियान
० आरक्षण मुक्ति अभियान
० प्रदुषण दूर करने का अभियान - स्वच्छता अभियान
० राजनीति में सुधार
० भ्रष्टाचार उन्मूलन
० सम्प्रदायवाद का उन्मूलन मानवता का पोषण
० जातिवाद का उन्मूलन वैदिक वर्ण व्यवस्था का प्रचार
० समान नागरिक सहिंता
० जनसंख्या नियन्त्रण
० शुद्धि अभियान
ग्राम कल्याण के लिए आर्य समाज ग्राम सुधार समिति जैसा कार्य करे -
स्वच्छता अभियान,
प्रदूषण निवारण,
वृक्षारोपण,
दीवाल लेखन,
मद्य निषेध कार्यक्रम,
भक्ष्याभक्ष्य प्रचार,
धूम्रपान निषेध,
युवा सुधार,
गृहस्थ सुधार,
वृद्ध सम्मान,
किसान सम्मेलन
शिक्षा सम्मेलन,
कुरीतियों का निवारण,
छूआ-छूत का निवारण,
महिला उत्थान,
गरीबों की सहायता,
स्वस्थ रक्षा शिविर,
गोशाला निर्माण
गोरक्षा सम्मेलन
गोपालन
व्यायाम शाला,
पुस्तकालय,
वाचनालय,
विधायक और सांसद द्वारा ग्राम सुधार,
ग्राम पंचायत के लिए केन्द्र व प्रान्त की योजनाओं की जानकारी
जैविक व शून्य बजट खेती प्रशिक्षण
युवाओं के लिए कौशल विकास, मैकेनिक, मिस्त्री, यान्त्रिक, दस्तकार, शिल्प व यन्त्र प्रवीण आदि का प्रशिक्षण देकर आर्थिक रुप से स्वावलम्बी बनाना। और अन्य धनोपार्जन के प्रशिक्षण दिलाना। व्यक्तित्व विकास और सभी विभागों और सेवाओं की जानकारी दिलाना।
विभिन्न संगठनों और व्यक्तियों का पूर्ण विवरण जो हमारे उद्देश्य पूर्ति में सहायक हों। उपयोगी जन कल्याणकारी उत्पाद करने वाली संस्था और व्यक्तियों का विवरण।
इस लेख को ध्यान से पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आशा है कि आप उपरोक्त योजनाओं में से कुछ योजनाओं पर कार्य अवश्य करेंगे।
"मुझे तो पूर्ण विश्वास है - महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के स्वप्नों का विश्व एक दिन निश्चित बनेगा।"
ऋषि मिशन - "कृण्वन्तो विश्वमार्यम्" के लिए किसी भी रूप में आप सहयोग करना चाहते हैं या ऋषि मिशन की सफलता के लिए अपने उत्तम विचार और योजनायें बताना चाहते हैं या उपरोक्त विचारों पर अपनी टिप्पणी देना चाहते हैं तो आप हमें सूचित कीजिए, हम आपसे सम्पर्क करेंगे।
आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री
(वैदिक प्रवक्ता)
संचालक - महर्षि दयानन्द योगपीठ
दूरभाष - 9897060822 ; 9411082340
Email : harishankar.agnihotri@gmail.com
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YouTube : Acharya Harishankar Agnihotri
बहुत सुंदर।।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी योजनाएं हैं आचार्य जी आपकी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका आचार्य जी आपके प्रवचन का कोई भी लिंक हो हमारे पास जरूर भेज दिया करो
जवाब देंहटाएंवर्तमान अधिकारियों से अपेक्षा रखना ठीक नही लग रहा।
जवाब देंहटाएंआर्यवीर दल ही एक उपाय लग रहा है और ये अधिकारी
लोग होने नही देंगे।ये अधिकार युवाओं के आने से गभरा जाते है
अपने पद और सुविधा गवां का डर है।
बहुत सुंदर योजना है, इसे तत्काल मूर्त रूप दिया जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंअजय गुप्ता
आगरा
75+आयु पार करचुके अधिकारी अपने पद से इस्तीफा दे और
जवाब देंहटाएंयुवा को जिम्मेदारी सोंपे।
बहुत सुन्दर मार्ग दर्शन आचार्य श्री
जवाब देंहटाएंआचार्य जी नमस्ते।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर वा उपयुक्त लेख है क्या होना चाहिए क्या हो रहा है सबका विवरण है। आपका यह लेख गागर में सागर के समान है आज समर्पित लोग कार्य तो बहुत कर रहे हैं परंतु एक एक व्यक्ति को कार्य करने में पुरुषार्थ बहुत करना पड़ता है यदि सामूहिक रूप से श्रद्धावान वैदिक जन मिलकर कार्य करें तो हम वैदिक राष्ट्र सपना साकार कर सकते हैं। कृण्वन्तो विश्वमार्यम्