शनिवार, 7 दिसंबर 2019

आध्यात्मिक चर्चा - ४

आध्यात्मिक चर्चा - ४
आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

आज हम नचिकेता के प्रश्न (शरीर के मरने के बाद आत्मा की क्या गति होती है?) पर यमाचार्य के उत्तर का विश्लेषण करेंगे। यमाचार्य नचिकेता को आत्मज्ञान के सन्दर्भ में उपदेश करते है -

न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

यमाचार्य नचिकेता के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि (न हन्यते हन्यमाने शरीरे ) शरीर के मरने के बाद आत्मा नहीं मरता है । वैसे तो संक्षेप में यह उत्तर हो गया लेकिन इतने उत्तर से काम नहीं चलेगा इसीलिए आगे कहते हैं कि (न जायते न म्रियते ) आत्मा न जन्म लेता है और न ही मरता है । ऐसा कहने पर पुनः नया प्रश्न उपस्थित होता है कि संसार में तो जन्म और मृत्यु देखने में आता है और यमाचार्य कह रहे हैं कि आत्मा का जन्म - मृत्यु नही होता है। इस प्रसंग को इस प्रकार समझेंगे कि संसार में ऐसी बहुत सी घटनायें होती है जो होती तो कुछ हैं और कही कुछ जाती हैं । जैसे रेलगाड़ी में यात्रा करने वाला एक दूसरे से कहता है कि देखना भाई कौन सा स्टेशन आगया और उत्तर देने वाला भी कह देता है कि अमुख स्टेशन आगया जबकि प्रश्न भी गलत है और उत्तर भी गलत है क्योंकि स्टेशन नही आता है यात्री स्टेशन पहुंचते हैं इसीलिए यह कहना चाहिए कि हम कौन से स्टेशन पहुंच गये या गाड़ी कौन से स्टेशन पहुंच गयी और उत्तर देने वाला कहना चाहिए कि हम या गाड़ी अमुख स्टेशन पहुंच गये।
     एक और उदाहरण लेते हैं - हम यदि यह प्रश्न करें कि क्या सूर्य - उदय अस्त होता है तो कुछ लोग कहेंगे कि सूर्य उदय - अस्त होता है और कुछ लोग कहेंगे कि सूर्य उदय अस्त नहीं होता है और कुछ तो कहेंगे कि उदय अस्त होते दिखाई नहीं देता है क्या। लेकिन यथार्थ तो यही है सूर्य का उदय और अस्त कभी नहीं होता है लेकिन पृथ्वी के घूमने के कारण सूर्य का उदय अस्त दिखाई देता है वैसे ही जैसे गाड़ी में चलने वाले व्यक्ति को वृक्ष पीछे की ओर दौड़ते दिखते हैं। इसी प्रकार आत्मा का जन्म मृत्यु नही होता आत्मा शरीर में आजाती है तो जन्म सा दिखाई देता है और आत्मा शरीर को छोड़कर चली जाती है तो मृत्यु सी दिखाई देती है। अर्थात् आत्मा और शरीर के संयोग का जन्म है तथा आत्मा और शरीर के वियोग का नाम मृत्यु है। अभी हम आत्मा के विषय में समझ रहे हैं आगे हम शरीर के बारे में विस्तार से जानेंगे।
आत्मा की अमरता के विषय में योगेश्वर श्री कृष्ण जी महाराज अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं -

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।

     आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, आग जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकता । अर्थात् आत्मा को किसी भी साधन से नष्ट नहीं किया जा सकता है। आत्मा एक अविनाशी और अनादि तत्व है।
आत्मा के बारे में एक बात अधिक जानने योग्य है ( जो ऐसा मानते हैं कि आत्मा तो परमात्मा में से बनती है, उनको यह बात अधिक ध्यान देकर समझनी चाहिए) यमाचार्य कहते हैं आत्मा किसी कारण से उत्पन्न नहीं हुआ है अर्थात् इसका कोई उपादान कारण नही है‌। आत्मा किसी में से बना नही है और ना ही इसमें से कुछ बनेगा। 
इस विषय पर योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज की बात बहुत प्रासंगिक लगती है वे कहते हैं कि -

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्‌ ॥ 

  ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं किसी भी समय में नहीं था, या तू नहीं था अथवा ये समस्त राजा नहीं थे और न ऐसा ही होगा कि भविष्य में हम सब नहीं रहेंगे। अर्थात् हम पहले भी हमेशा थे और आगे भी हमेशा रहेंगे।
ऋग्वेद में अविनाशी व अनादि तत्वों के बिषय इस प्रकार कहा है -

द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते |
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति || 

( द्वा ) जो ब्रह्म और जीव दोनों ( सुपर्णा ) चेतनता और पालनादि गुणों से सदृश ( सयुजा ) व्याप्य - व्यापक भाव से संयुक्त ( सखाया ) परस्पर मित्रतायुक्त , सनातन अनादि हैं ; और ( समानम् ) वैसा ही ( वृक्षम् ) अनादि मूलरूप कारण और शाखारूप कार्ययुक्त वृक्ष अर्थात जो स्थूल होकर प्रलय में छिन्न - भिन्न हो जाता है , वह तीसरा अनादि पदार्थ ; इन तीनों के गुण , कर्म और स्वभाव भी अनादि हैं । ( तयोरन्यः ) इन जीव और ब्रह्म में से एक जो जीव है , वह इस वृक्षरूप संसार में पाप पुण्य रूप फलों को ( स्वाद्वत्ति ) अच्छे प्रकार भोगता है , और दूसरा परमात्मा कर्मों के फलों को ( अनश्नन् ) न भोगता हुआ चारों ओर अर्थात् भीतर-बाहर सर्वत्र प्रकाशमान हो रहा है । जीव से ईश्वर , ईश्वर से जीव और दोनों से प्रकृति भिन्न-स्वरूप तीनों अनादि हैं ।

यमाचार्य आत्मा के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहते हैं - (न) नहीं (जायते)उत्पन्न होता है (न) नहीं (म्रियते) मरता है (वा) या (विपश्चित) चेतनरूप, मेधावी  (अयम्) यह (कुतश्चित्) कहीं से किसी उपादान कारण से (न, बभूव) उत्पन्न नहीं हुआ (कश्चित्) कोई (इससे भी उत्पन्न नहीं हुआ)  (अजः) जन्म नहीं लेता (नित्यः) नित्य (शाश्वत:) अनादि हमेशा रहनेवाला (अयम्) यह (पुराणः) सनातन है (शरीरे) शरीर के (हन्यमाने) नाश होने पर (न, हन्यते)नष्ट नहीं होता ॥
अभी तक हमने समझा कि आत्मा (जीव) एक अविनाशी और अनादि तत्व है इसका जन्म-मृत्यु नही होता है । शरीर और आत्मा के संयोग का नाम जन्म कहलाता है और शरीर और आत्मा के साथ साथ चलने का नाम जीवन है तथा शरीर और आत्मा के वियोग का नाम मृत्यु है । आगे हम शरीर को समझेंगे।
क्रमशः ...

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