सोमवार, 4 फ़रवरी 2019

सैद्धान्तिक चर्चा -२ { वेद परिचय (Veda Introduction )}


सैद्धान्तिक चर्चा -२.       VED PARICHYA वेद परिचय


                  वेद ईश्वर प्रदत्त संसार का पूर्ण एवं हितकारी ज्ञान है ,जिसको धारण करने से प्रत्येक व्यक्ति को ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र को सुख मिल सकता है। मनुष्यों को अपने जीवन को सफलता पूर्वक चलने के लिए जिस ज्ञान की आवश्यकता है वह ज्ञान वेद में है। व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व का कल्याण केवल वेद मार्ग से ही सम्भव है, अर्थात विश्व में वैदिक व्यवस्था स्थापित करने से ही सुख शान्ति हो सकती है।  आज विश्व जल रहा है, चारों ओर त्राहि त्राहि हो रही है, सभी चिन्तित हैं कि हमें कैसे शान्ति मिलेगीइसका उत्तर है कि वेदों में वर्णित आचार संहिता को जीवन में धारण करने से सुख शान्ति अवश्य मिलेगी।
               महर्षि दयानन्द सरस्वती आर्य समाज के तृतीय नियम में लिखते हैं - "वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है ,वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। "

              प्राचीन ऋषियों, मुनियों तथा वेदज्ञ विद्वानों  की अवधारणा के अनुसार वेद सब सत्य विद्याओं का स्रोत और भण्डार है, वेदो में समस्त विद्याओं का बीज पाया जाता है , यहाँ यथार्थता अन्यान्य तथाकथित ईश्वरीय पुस्तकों में नहीं है। अतः वेद ज्ञान सार्वभौमिक , सार्वकालिक और सार्वदेशिक है।

             वेद सब सत्य विद्याओं  का पुस्तक है...
व्यक्ति की उन्नति के सारे सूत्र वेद में मिलते हैं। भोजन कैसा, कितना, तथा कैसे करना है, व्यायाम, संयम, सत्य, अहिंसादान, विद्या, पुरुषार्थ, आदि  से व्यक्तित्व  विकास, पुनर्जन्म, ईश्वर-जीव-प्रकृति त्रैतवाद का ज्ञान, ईश्वर की कर्मफल व्यवस्था तथा योग साधना द्वारा मोक्ष प्राप्ति  केवल वेद से ही हो सकती है।
              वेदों में वर्णित व्यवस्था ही धर्म है, वेदों में जिन कार्यों को करने के लिए निषेध है वे कार्य नहीं करने चाहिए। निषेध कार्यो का करना अधर्म है, असत्याचरण, चोरी करना, व्यभिचार, जुआ खेलना, मदिरा पान, मांस भक्षण तथा हिंसा करना वेद में निषेध है अर्थात इन कार्यों को करना अधर्म है।
             परिवार के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य वेदों में वर्णित है।  समाज के व्यक्तियों का कर्तव्य भी वेदों में दिया गया है जिसके आचरण से सर्वत्र सुख फैलता है।
              वेदों में क्या-क्या है यह तो बहुत गहराई से सोचने का विषय है परन्तु इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि वेदों में परा-अपरा विद्या, लौकिक एवं पारलौकिक ज्ञान भण्डार, धर्म-अधर्म, श्रेय-प्रेय, सत्य-असत्य, प्रवृत्ति-निवृत्ति, कर्म-अकर्म, कर्त्तव्य-अकर्तव्य, हित-अहित, पाप-पुण्य, जीवन- मृत्यु, शुद्ध-अशुद्ध, मित्र-अमित्र, प्रेम-द्वेष, श्रद्धा-अश्रद्धा, सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार, एकादशी-सर्वदेशी, नीति-अनीति, आदि विवरण, राष्ट्र निर्माण, नारी सम्मान, गौ आदि प्राणी रक्षा, शिल्प विद्या, वाणिज्य विद्या, संगीत विद्या, भूगर्भ विद्या, खगोल विद्या, सूर्यादि लोक लोकान्तरों का भ्रमण, आकर्षण धारण के सिद्धान्त, प्राणी शास्त्र, मनोविज्ञान, प्रकाशाप्रकाश्यलोक, विद्युत आदि का विवेचन, पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाशादि विवरण, रोग निदान, औषधि, चिकित्सा प्रकार, यव, माष, तन्दुल, धान्यादि अन्न, कृषि, पशु, पक्षी, कृमि, कीटादि का विवरण, स्वर्ण, चाँदी, ताम्रादि धातुओं का ज्ञान, भाषा विज्ञान, गणित शास्त्र, सामुद्रिक ज्ञान, नौविमानादि का स्वरूप विवरण, विवाहादि संस्कार, दिन, पक्ष, ऋतु, अयन, वर्ष, आदि कल विभाजन, प्रभु की स्तुति, प्रार्थना, उपासनादि योग, राज-प्रजा धर्म, वर्णाश्रम व्यवस्था, पंचमहायज्ञ, की प्रक्रिया, विवेचन विद्यमान है।
               महाराज मनु के अनुसार " वेदो खिलो  धर्म मूलं", महर्षि याज्ञबल्कि के  अनुसार "अनन्ताः वै वेदाः"तथा महर्षि अत्रि के अनुसार " नास्ति वेदात् परं शास्त्रं " कहा गया है वेद ही धर्म है, वह अनन्त हैइससे महान कोई शास्त्र नहीं है।

               वेद विषयक एक आश्चर्य जनक सत्य - संसार की सभी पुस्तकों में प्रक्षेप हुआ है किन्तु वेद आज तक अप्रक्षिप्त रूप में उपलब्ध हैं। इसका कारण यही है कि परमात्मा की वाणी को सुरक्षित रखने के लिए ऋषियों ने कई प्रकार की पाठविधि बनाकर ऐसी व्यवस्था की कि इसमें एक भी बिन्दु का प्रक्षेप होने की सम्भावना रहे। संसार के किसी भी ग्रन्थ के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं की गयी।


   सत्य सनातन वैदिक धर्म के आगे दुनियाँ का कोई सम्प्रदाय अपने सम्प्रदाय की डींग नहीं मार सकता है।   

रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण ) ( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट ) घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ...