गुरुवार, 18 जुलाई 2019

सैद्धान्तिक चर्चा - २२

सैद्धान्तिक चर्चा - २२.    आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

        इसी प्रकार लोक में आप किसी भी कृति को देखिये। हमें पता है कि उसका करता अवश्य होता है। मिट्टी का घड़ा कुम्हार द्वारा, आभूषण सुनार द्वारा, वस्त्र बुनकर व मूर्ति शिल्पकार द्वारा बनाई जाती है यह हमें प्रत्यक्ष है। कभी हम किसी कारणवश सुनसान उजाड़ जंगल में पहुंच जावें और वहां एक आभूषण हमें पड़ा दिखे तो चाहे उस बियाबान जंगल में मनुष्य के पहुंचने की संभावना कितनी भी क्षीण हो हम यह अनुमान लगाने में एक क्षण की देर नहीं लगाते कि यह आभूषण किसी सुनार ने बनाया है उससे किसी मनुष्य ने खरीदा होगा और वह किसी कारणवश इस जंगल में आया होगा और आभूषण यहां गिर गया होगा। अनुमानों की इस श्रंखला में क्या हम एक भी क्षण को यह सोचते हैं यह आभूषण जमीन के अंदर अपने आप बनकर जमीन फोड़कर निकल आया है? कदापि नहीं। ऐसा क्यों? क्योंकि संसार में कार्य-कारण की श्रृंखला प्रत्यक्ष है। यह प्रत्यक्ष है कि कारण के बिना कार्य नहीं हो सकता। रचना है तो रचनाकार का होना आवश्यक है। इस सन्दर्भ में लगाया गया अनुमान किसी प्रत्यक्ष से कम नहीं होता। पर यह बड़े आश्चर्य की बात है कि लोक में अनगढ़ से अनगढ़ रचना को भी हम अकस्मात् हुई नहीं मानते कागज पर दो तीन रंगों की आड़ी तिरछी लाइनों को देखकर हम कभी भी यह स्वीकार नहीं करते कि अपने आप दो तीन तरह के रंग आकर मिल गए होंगे परन्तु जब आश्चर्यजनक कारीगरी, अटूट नियमों से युक्त महानतम रचना इस सृष्टि को देखते हैं तो हममें से अनेक इसके रचयिता के अस्तित्व को मानने में संकोच कर नाना प्रकार के कुतर्कों का आश्रय लेते हैं। ऐसी मानसिकता को उचित कदापि नहीं कहा जा सकता।

      कृपया निम्न दृष्टान्तों पर विचार कीजिए -
० भूगर्भ शास्त्रियों को जमीन की परतों के मध्य एक सिला हुआ जूता मिला जिसकी आयु उन्होंने साठ हजार वर्ष के लगभग निश्चित की। इन वैज्ञानिकों ने बिना एक क्षण भी यह बेचारे की यह जूता अपने आप बन गया होगा इसे स्वभावतः ही मानव निर्मित मान साठ हजार वर्ष पुरानी सभ्यता की व्याख्या का प्रयास किया। जब साठ हजार वर्ष पुराने जूते के निर्माता के बारे में जिसे किसी ने देखा नहीं, कोई सन्देह न कर निश्चयात्मक अनुमान किया जा सकता है तो सृष्टि कर्ता परमात्मा के बारे में यह कहकर कि उसे किसी ने देखा नहीं क्योंकर सन्देह करना चाहिए।

० भूगोल के एक प्रोफ़ेसर के एक ऐसे मित्र जो सृष्टि कर्ता ईश्वर के अस्तित्व में सन्देह करते व सृष्टि को स्वतः (अपने आप) अकस्मात् निर्मित मानते थे, प्रोफेसर की मेज पर रखे सौर मण्डल के सुन्दर मॉडल को देखकर पूछ बैठे - यह कितना सुन्नदर है यह किसने बनाया है? प्रोफेसर ने उत्तर दिया किसी ने नहीं यह स्वयमेव बन गया है। मित्र ने कहा क्यों मजाक करते हो भला बिना बनाए भी कोई चीज बन सकती है? तो प्रोफ़ेसर ने कहा यह तुच्छ मॉडल जिस विशाल सौरमण्डल की एक लघु स्थिर प्रतिकृति मात्र है उसे ही आप बिना कर्ता के निर्मित हुआ नहीं मान रहे हो तो सुनिश्चित नियमों में बन्धे अत्यन्त विशाल सौरमण्डल को बिना कर्ता के क्यों मानते हो? और नियम भी कैसे? जिनमें अल्पांश में भी विक्षेप नहीं होता। इसी कारण ज्योतिर्विद हजारों वर्ष पूर्व ही भविष्य की खगोलीय घटनाओं का ठीक ठीक समय बता सकते हैं। अब मित्र के पास कोई उत्तर न था।

० ब्रह्माण्ड की विशालता का तनिक अनुमान लगाइए - पृथ्वी का व्यास २५००० मील है । हम पृथ्वी पर बसे हुए सूर्य की परिक्रमा जिस परिधि में कर रहे हैं वह रास्ता ५८ करोड़ ८१लाख६०हजार मील लम्बा है जो हम एक बर्ष में तय करते हैं अर्थात् हम १११० मील प्रति मिनट अथवा ६६६०० मील प्रति घण्टा की गति पर सवार हैं। सूर्य एक पिघला हुआ आग का गोला है जो हमारे ९ ग्रहों को मिलाकर उनसे भी लगभग दो गुना भारी है। पृथ्वी से तेरह लाख गुना बड़ा है। सूर्य के चारों ओर ग्रह चक्कर लगारहे हैं।
१. बुध - यह सूर्य से ३ करोड़ ६० लाख मील सूर है।
२. शुक्र - यह सूर्य से ६ करोड़ ७० लाख मील दूर है।
३. पृथ्वी - यह सूर्य से ९ करोड़ २९ लाख ५७ हजार मील दूर है।
४. मङ्गल - यह सूर्य से १२ करोड़ ७० लाख मील दूर है।
५. बृहस्पति - यह सूर्य से ४८ करोड़ ४० लाख मील दूर है।
६. शनि - यह सूर्य से ८८ करोड़ ६० लाख मील दूर है।
७. अरुण - यह सूर्य से १ अरब ६० करोड़ मील दूर है।
८. वरुण - यह सूर्य से १ अरब ७४ करोड़ ६० लाख मील दूर है।
९. यम - सूर्य के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूर्य से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ खगोलीय इकाई (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है।
ऐसे अनेक सौर मण्डल मिलाकर एक आकाशगंगा कहते है अनेक आकाशगंगाओं की खोज के बाद भी वैज्ञानिक कहते कि ब्रह्माण्ड कितना बड़ा होगा यह तो कल्पना के भी बाहर है । क्या यह अनन्त ब्रह्माण्ड अल्पज्ञ, अल्प सामर्थ्यवान मनुष्य की रचना हो सकती है? अतः यह केवल प्रभु की सत्ता व सामर्थ्य का ही चमत्कार है।
यह भी विचारें कि इतने विशाल पिण्डों के साथ अकस्मात् के नियम को माने तो क्या ये कभी टकराएंगे नहीं । वास्तविकता तो यह है ये पिण्ड गति तथा परिभ्रमण के जिन  नियमों से बन्धें हैं उनमें यत्किञ्च भी स्वेच्छाचारिता ये बरतसकें तो न सिर्फ स्वयं विनष्ट हो जाएंगे वरन् ब्रह्माण्ड ही समाप्त हो जायेगा। ऐसा इसलिए नहीं होपाता है क्योंकि ये सब नियन्ता के नियंत्रण में ही गतिशील हैं , स्वतन्त्र नहीं।

        अतेव निश्चित सिद्धान्त यही है और यही समझना चाहिए कि कोई भी कार्य , रचना अथवा नियम बिना कर्ता, रचनाकार अथवा नियामक के सम्भव नहीं । हर कृति, हर नियम अपने कर्ता के होने का प्रबल प्रमाण है। इसीलिए वेद में कहा प्रभु की सत्ता पर विस्वास करना है तो उसकी रचना को देखो - 'पश्य देवस्य काव्यं'। ईश्वर की नियमबद्ध सृष्टि ही उसके होने का सर्वोत्तम प्रमाण है।
         महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज वेद भाष्य में लिखते हैं-
तत्त इन्द्रियं परमं पराचैरधारयन्त कवयःपुरेदम्।
क्षमेदमन्यद् दिवन्यदस्य समी पृच्यते समनेव केतुः।। (ऋ०१/१०३/१)
हे मनुष्यों!  जो जो इस संसार में रचना विशेष से युक्त उत्तम वस्तु है वह वह सब परमेश्वर के बनाने से ही प्रसिद्ध है ऐसा जानो। ऐसा विचित्र संसार विधाता के बिना संभव नहीं हो सकता। इसीलिए निश्चय ही इस जगत का रचयिता ईश्वर है और जीव - रचित सृष्टि का कर्ता जीव है।
क्रमशः ...

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