गुरुवार, 2 जनवरी 2020

आध्यात्मिक चर्चा - ७

आध्यात्मिक चर्चा - ७

आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

      आध्यात्मिक चर्चाओं में शरीर को ऋषि,मुनि और विद्वानों ने अनेक तरह से समझाया है। पिछली चर्चा में हमने समझा कि यमाचार्य शरीर को आत्मा का रथ कहते हैं। आज हम समझेंगे कि योगेश्वर श्री कृष्ण महाराज शरीर को वस्त्र की तरह समझाते हैं।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।

     जगत में जैसे मनुष्य पुराने जीर्ण वस्त्रों को त्याग कर अन्य नवीन वस्त्रों को ग्रहण करते हैं वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़कर अन्यान्य नवीन शरीरों को प्राप्त करता है।
     आइये इस प्रसंग को विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं। पहले तो हम यह समझें कि वस्त्र बदलना बहुत आसान सा लगता है और शरीर बदलना बहुत कठिन लगता है। लेकिन यदि ऐसी स्थिति हो कि कोई गरीब व्यक्ति हो और उसके पास केवल एक जोड़ी ही वस्त्र हों तो उससे उसके वस्त्र उतारने को कहा जाय तो वह नहीं उतारेगा और यदि उससे यह कहा जाय कि इन वस्त्रों को उतार दो, आपको अच्छे और नये वस्त्र  पहनने को देंगे तो वह बिना देर लगाये उतार देगा। शरीर बदलने में भी ठीक ऐसी ही स्थिति होती है  - एक सामान्य व्यक्ति को शरीर बदलना (छूटना) बहुत ही कठिन कार्य लगता है लेकिन योगी को शरीर बदलना बहुत सरल और सहज लगता है क्योंकि योगी जीवन की यथार्थता से अच्छे से परिचित होता है। 
      योगी जानता है कि जैसे किसी रंग मंच पर अभिनय करने वाले वस्त्र बदलकर आते रहते हैं और अभिनय करते रहते हैं ठीक ऐसे ही संसार भी तो एक रंग मंच जैसा ही है जहां आत्मा शरीर रूपी वस्त्र बदलकर आती रहती है और अपना एक जीवन अभिनय की तरह ही जी कर फिर आगे की यात्रा करती है।
       इस प्रसंग को अच्छे से अध्ययन करें तो हम समझेंगे कि बड़ी समानता है रंग मंच और संसार में । एक नाटक मण्डली होती है और उसका एक मालिक होता है। और वह मालिक योग्यता अनुसार किसी को राजा, किसी को रानी, किसी को मन्त्री और किसी को सेवक बनाता है। मालिक कहीं तो झरोखे से देखता रहता है कि मेरी मण्डली के सदस्य कैसा अभिनय कर रहे हैं ।
     हो सकता है नाटक करने वालों में से किसी ने मरने का नाटक किया हो। या तो पर्दा गिरते ही वह स्वयं उठाकर पीछे चला जाता है या उसे कुछ लोग उठा कर ले जाते हैं और पर्दे के पीछे कर देते हैं। यहां हम देख सकते हैं कि जो रंग मंच पर मरा वह मरा नही केवल मरने का नाटक कर रहा था , वह पर्दे के पीछे चला गया केवल वस्त्र बदलने के लिए वह फिर से किसी अन्य अभिनय में दिखाई देगा।
इसी प्रकार यह संसार भी एक मण्डली जैसा है इस संसार का मालिक परमपिता परमात्मा है। परमात्मा ही सभी को उनके कर्मों के आधार पर शरीर प्रदान करता है और अन्तः करण में बैठा हुआ सभी के कर्मों को देखता रहता है।
      संसार में जब कोई मरता है तो रंग मंच की तरह ही वह मरता नही है ( आत्मा अमर है) बल्कि पर्दे के पीछे चला जाता है वस्त्र बदलने के लिए ( पुनः नया शरीर आत्मा को प्राप्त होता है)। 
      यदि ऐसा हो कि रंग मंच पर जिसे राजा बनाया था उसने यदि अपना अभिनय ठीक से नही किया तो क्या मण्डली का मालिक फिर उसे राजा बनायेगा? तो आपका उत्तर होगा कि मण्डली का मालिक ऐसे व्यक्ति को फिर से राजा नहीं बनायेगा। ठीक ऐसे ही जीवात्मा मनुष्य शरीर पाकर यदि मानवता से जीवन नहीं जीता है तो परमेश्वर फिर उसे अन्य योनियों में भेज देता है। 
जैसे रंग मंच पर अभिनय करना अच्छे से आना चाहिए तभी अभिनय सफल होगा ठीक इसी प्रकार संसार में जीवन जीना आना चाहिए तभी जीवन सफल होगा।
      
क्रमशः ...



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