शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

आध्यात्मिक चर्चा - ११

आध्यात्मिक चर्चा - ११
                    आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

हमारे जन्म, मृत्यु, जीवन और सुख-दुःख का आधार कर्म है । 
इसीलिए वेद कर्म करने का उपदेश करता है - 

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा:।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।। ( यजुर्वेद )

       मनुष्य (इह) इस संसार में (कर्माणि) धर्मयुक्त वेदोक्त निष्काम कर्मों को (कुर्वन्) करता हुआ (एव) ही ( शतम्) सौ (समाः) वर्ष (जिजीविषेत्) जीवन की इच्छा करे (एवम्) इस प्रकार धर्मयुक्त कर्म में प्रवर्तमान (त्वयि) तुझ (नरे) व्यवहारों को चलानेहारे जीवन के इच्छुक होते हुए (कर्म) अधर्मयुक्त अवैदिक काम्य कर्म (न) नहीं ( लिप्यते) लिप्त होता (इतः) इस से जो ( अन्यथा) और प्रकार से (न, अस्ति) कर्म लगाने का अभाव नहीं होता है।
       अर्थात् मनुष्य आलस्य को छोड़कर सब देखनेहारे न्यायाधीश परमात्मा और करने योग्य उसकी आज्ञा को मानकर शुभ कर्मों को करते हुए अशुभ कर्मों को छोड़ते हुए ब्रह्मचर्य के सेवन से विद्या और अच्छी शिक्षा को पाकर उपस्थ इन्द्रिय के रोकने से पराक्रम को बढ़ाकर अल्पमृत्यु को हटावे, युक्त आहार विहार से सौ वर्ष की आयु को प्राप्त होवें। जैसे जैसे मनुष्य सुकर्मों में चेष्टा करते हैं वैसे ही पाप कर्म से बुद्धि की निवृत्ति होती है और विद्या, अवस्था और सुशीलता बढ़ती है। 

शुभाशुभफलं कर्म मनोवाग्देहसंभवम्। 
कर्मजा गतयो नॄणामुत्तमाधममध्यमाः।। ( मनु० ) 

( मनः वाक्-देह संभवम् कर्म ) मन, वचन और शरीर से किये जाने वाले कर्म ( शुभ-अशुभ-फलम् ) शभ-अशुभ फल को देने वाले होते हैं ( कर्मजा-नॄणाम् ) और उन कर्मों के अनुसार मनुष्यों की ( उत्तम-अधम-मध्यमाः गतयः ) उत्तम, मध्यम और अधम ये तीन गतियां=जन्मवस्थायें होती हैं। 

   सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः । ( योगदर्शन )

 (मूले) मूलकारण के (सति) विद्यमान होने पर ही (तद्विपाक:) पुण्य-पाप रूप कर्माशय का फल (जात्यायुर्भोगा:) जन्म, आयु तथा भोग होता है।।
जन्म का नाम “जाति” 
जीवनकाल का नाम “आयु” 
और सुख दुःख के हेतु शब्दादि विषयों की प्राप्ति का नाम “भोग” है, 
यह तीनों पुण्य-पाप रूप कर्माशय का फल होने से “कर्मविपाक” कहलाते हैं।। 

       उपरोक्त प्रमाणों से आप समझ ही गये होंगे कि सम्पूर्ण जीवनों का आधार कर्म ही है। इसीलिए वेद कर्म करने का आदेश देता है, लेकिन यहां ऐसे बहुत लोग हुए हैं जिन्होंने संसार को निकम्मा बनने का उपदेश किया है ,जिसकी चर्चा आगामी लेख में करेंगे।

क्रमशः ...


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