सोमवार, 25 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चरचा -१६. मन्दिरों की लूट

सैद्धान्तिक चर्चा  -१६.       हरिशंकर अग्निहोत्री

आज इतिहास के कुछ ऐसे पृष्ठ पलटेंगे जिन पर स्त्री, पुरुषों और बच्चों के साथ साथ मन्दिर और मूर्तियों पर भी अत्याचार हुए लिखे हैं। लेकिन किसी भी मूर्ति ने अत्याचारियों की टांग तक नही तोड़ी।

भारत में 7वीं सदी के प्रारम्भ में मुस्लिम आक्रान्ताओं का आक्रमण प्रारम्भ हुआ था। यहां उन्होंने सोना-चांदी आदि दौलत लूटने और इस्लामिक शासन की स्थापना करने के उद्देश्य से आक्रमण किए। 7वीं से लेकर 16वीं सदी तक लगातार हजारों हिन्दू, जैन और बौद्ध मन्दिरों को तोड़ा और लूटा गया। यहां उनकी संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं -

० अनन्तनाग, कश्मीरका मार्तण्ड सूर्य मन्दिर मुस्लिम शासक सिकन्दर बुतशिकन ने तुड़वाया था।

० पाटन, गुजरात का  मोढेरा सूर्य मन्दिर
मुस्लिम आक्रान्ता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान इस मन्दिर को काफी नुकसान पहुंचा था। यहां पर उसने लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खण्डित कर दिया।

० काशी, उ०प्र० के‌ विश्वनाथ मन्दिर को 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। फिर से बनाया गया। औरङ्गजेब के आदेश पर यहां का मन्दिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरङ्गजेब को मन्दिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरङ्गजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तरप्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण हैं।

० मथुरा, उ०प्र० में कृष्ण जन्मभूमि मन्दिर को
औरङ्गजेब ने तुड़वाकर ईदगाह बनवाई थी। इस मन्दिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मन्दिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था जिसे 16वीं शताब्दी के आरम्भ में सिकन्दर लोदी ने नष्ट करवा डाला।

० अयोध्या, उ० प्र० का  राम जन्मभूमि मन्दिर को
इतिहासकारों के अनुसार 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबर एक तुर्क था। उसने बर्बर तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम कर अपनी सत्ता कायम की थी। मन्दिर तोड़ते वक्त 10,000 से ज्यादा हिन्दू उसकी रक्षा में मारे गए थे।

० काठियावाड़, गुजरात का सोमनाथ मन्दिर को पहली बार 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया। इसके बाद महमूद गजनवी ने सन् 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मन्दिर की रक्षा के लिए निहत्‍थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मन्दिर के अन्दर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मन्दिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे।  सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मन्दिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-सम्पदा लूटकर ले गया। मन्दिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्‍फरशाह ने मन्दिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया। बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरङ्गजेब के काल में सोमनाथ मन्दिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मन्दिर तुड़वाने के बाद जब औरङ्गजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया।

० सिन्ध के राजा दाहिर का इतिहास जानकर आपको अन्दाजा लगाना आसान होगा कि अन्ध विश्वास ने भारत का कितना बड़ा विनाश किया है।
        राजा दाहिर ने ३०,००० सैनिको सहित मुहम्मद बिन कासिम का डटकर मुकाबला किया। घमासान युद्ध हुआ। रणक्षेत्र लाशों से पट गया। शत्रु के छक्के छूट गए और घुटने टूट गए। कासिम का साहस जवाब दे गया। वह पीठ दिखा और सर पर पैर रखकर भागने वाला था कि एक देशद्रोही, नीच पुजारी कासिम से जा मिला। उसने कहा कि यदि आप मेरी रक्षा करें और मुझे दक्षिणा दें तो मैं देवल की पराजय और आपकी विजय का रहस्य
बता सकता हूँ। कासिम बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला- “बहुत अच्छा, बताओ"। तब पुजारी ने उसे बताया कि सामने मंदिर के शिखर पर जो ध्वज लगा हुआ है उसे गिरा दिया जाये तो हिन्दुओ की कमर टूट जायेगी, वे समझ लेंगे कि देवता अप्रसन्न हो गए है और युद्ध करना बन्द कर देंगे। कासिम ने कहा-"वहा तो कड़ा पहरा है, चिड़िया भी वहाँ पर नहीं मार सकती, ऐसी स्थिति
में झंडे को कैसे गिराया जा सकता है?” पुजारी ने कहा-“यह कार्य तो मैं कर दूंगा, मैं इस मन्दिर का पुजारी हूँ। रात्रि में इस ध्वज को मैं गिरा दूंगा।” प्रातः काल जब दाहिर की रण के लिए उद्यत सेना को मन्दिर की चोटी पर झण्डा दिखाई नहीं दिया तो उनका उत्साह और साहस मन्द हो गया। पुजारी द्वारा मचाया गये शोर से भी उन्होंने समझ लिया कि देवता अप्रसन्न हो गए है, अब हमारी पराजय निश्चित है। सेना निराश होकर भागने लगी, राजा दाहिर घायल होकर गिर पड़ा, उसका सिर काटकर एक भाले पर टांग दिया गया। हजारों स्त्री पुरुषों को मौत के घात उतारा गया। उस मन्दिर को तोड़कर उसके स्थान पर मस्जिद बनाई गई। उसी नीच पुजारी ने कासिम के पास आकर कहा-“ देखिये मैंने आपकी विजय कराई है। यदि आप मुझे इच्छानुसार उत्तम भोजन कराये तो मैं आपको एक गुप्त खजाने का पता भी बता सकता हूँ। कासिम ने उसे खूब भोजन खिलाया। तब वह पुजारी उसे एक ऐसे तहखाने में ले गया जहां राज्य का पूरा खजाना सुरक्षित था। उस तहखाने में ताँबे की ४० देग रखी थी जिनमें १७,२०० मन सोना भरा था। इन देगों के अतिरिक्त सोने की बनी हुई ६,००० मूर्तियाँ थी जिनमें सबसे बड़ी मूर्ति का वजन ३० मन था। हीरा, पन्ना, माणिक और मोती तो इतने थे कि उन्हें कई ऊँटो पर लादकर ले जाया गया। ये है मूर्तिपूजा का अभिशाप। यदि हिन्दुओं का मूर्तियों में अन्धविश्वास ना होता तो भारत को ये दुर्दिन ना देखने पड़ते।

= आज भी हमारे देशभर में जो धर्म के ठेकेदार हैं उन्हें धर्म का ज्ञान नही है अन्ध विश्वास फैलाते रहते हैं।

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के शब्दों में- "मूर्तिपूजा सीढ़ी नहीं किन्तु अन्धकार की एक बहुत बड़ी खाई है जिसमें गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता है।”

क्रमशः ...

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