शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

वेद का ज्ञान अनन्त है

वेद का ज्ञान अनन्त हैः-- "अनन्ता वै वेदाः।" वैदिक-वाङ्मय ज्ञान का भण्डार है। वैदिक संस्कृत ज्ञान का सागर है। वेद के विद्वानों, ऋषियों ने वैदिक ज्ञान को सुरक्षित रखने के अनन्त उपाय किए। एक उपाय वेद की शाखा से सम्बन्धित है।

जैसे वृक्षों में अनन्त शाखाएँ होती हैं और वे वृक्ष को सुरक्षा प्रदान करते हैं, बदले में वे भी वृक्ष से अपना जीवन जीते हैं, वैसे ही वेदों की भी शाखाएँ होती हैं। यहाँ शाखा से अभिप्राय है, वेद की विभिन्न धाराएँ।

प्राचीन काल में वेदों की शिक्षा प्रमुखता से दी जाती थी। वंश दो प्रकार से माना जाता हैः---रक्त-सम्बन्ध से और विद्या-सम्बन्ध से। जैसे परिवार में वंश वृक्ष चलता है, वैसे विद्या के क्षेत्र में भी कुल होता है। जिन गुरुओं व आचार्यों ने अपने-अपने शिष्यों को वेद-विद्या का अध्ययन कराया, वे सारे शिष्य-प्रशिष्य उनके ही कुल के कहलाए। ऐसे अनेक विद्या-कुल प्राचीन-काल में विद्यमान थे। आचार्य जो वेद-विद्या अपने शिष्यों को अध्ययन कराते थे, उनमें शैली,पद्धति-भेद से अन्तर आ जाता था। यही शैली-भेद अन्य आचार्यों से भिन्न हो जाता था। इस प्रकार एक आचार्य की शैली भिन्न होती थी, तो दूसरे आचार्यों की शैली भिन्न। इस शैली-भिन्नता के कारण अनेक रचनाएँ होती गईं। यही रचनाएँ आगे चलकर वेद की शाखा के रूप में प्रचलित हुईं। जिस आचार्य की जितनी शाखाएँ होती थीं उसके उतने ही ब्राह्मण, उपनिषद्, आरण्यक श्रौत-सूत्र, धर्म-सूत्रादि भी भिन्न-भिन्न होते थे। सम शाखा के अध्येतृगण अपने सब वैदिक-ग्रन्थ पृथक्-पृथक् रखते थे और अपना श्रौत-कार्य अपने विशिष्ट श्रौतसूत्रों से सम्पादन किया करते थे। इस प्रकार प्रत्येक शाखा में संहिता,, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, श्रौत और गृह्य-सूत्र अपने विषिष्ट होते थे। इस प्रकार से महामुनि पतञ्जलि के अनुसार प्राचीन-काल में वेदों की 1131 शाखाएँ थीं। कई कारणों से ये शाखाएँ नष्ट हो गईं और आज तो उन सभी शाखाओं के नामों का भी पता नहीं। एक सर्वेक्षण के अनुसार सम्प्रति 11 शाखाएँ ही उपलब्ध हैं।

वेद और उनकी शाखाएँ ---
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(1.) ऋग्वेदः-----
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आचार्य पतञ्जलि के अनुसार ऋग्वेद की 21 शाखाएँ थीं---- "एकविंशतिधा बाह्वृच्यम्।" (महाभाष्यः---पस्पशाह्निक)। इन 21 शाखाओं में से 5 शाखाओं का नाम मिलता हैः-----शाकल, बाष्कल, आश्वलायन, शांखायन और माण्डूकायन। ये पाँच मुख्य शाखाएँ मानी जाती हैं। किन्तु सम्प्रति शाकल-शाखा ही पूर्णरूपेण उपलब्ध हैं। आज जो ऋग्वेद उपलब्ध है वह शाकल-संहिता ही है। इस शाखा के पदपाठकर्ता व विभाजनकर्ता शकल ऋषि थे, अतः उनके नाम से इस शाखा का नाम शाकल-शाखा हो गया।
इस शाखा के मन्त्रों का विभाजन दो प्रकार किया गया हैः------(क) अष्टक-क्रम और (ख) मण्डल-क्रम।

(क) अष्टक-क्रमः---इसके अनुसार ऋग्वेद में आठ अष्टक हैं। प्रत्येक अष्टक में आठ-आठ अध्याय हैं। इस प्रकार कुल 64 अध्याय हैं। इन अध्यायों में वर्ग होते हैं जो कुल 2006 हैं। इन वर्गों में मन्त्र होते हैं, ये कुल मन्त्र 10585 हैं।

(ख)मण्डल-क्रमः-----यह विभाजन अधिक वैज्ञानिक माना जाता है। व्यवहार-क्षेत्र में इसी क्रम का प्रयोग होता है। इसके अनुसार ऋग्वेद में कुल 10 मण्डल हैं। प्रत्येक मण्डल में अनुवाक हैं, जिसकी संख्या 85 है। अनुवाकों में सूक्त होते हैं, जिसकी कुल संख्या 1017 (यदि इसमें बालखिल्य सूक्त-11 मिला ले तो 1028 होते हैं)। ऋग्वेद में कुल शब्द 153826 और अक्षर है---432000
ऋषि व्यास ने इस वेद का अध्ययन अपने शिष्य पैल को कराया था।


(2.) यजुर्वेदः----पतञ्जलि ऋषि के अनुसार यजुर्वेद की 101 शाखाएँ थी----"एकशतमध्वर्युशाखाः।"

इस वेद के दो सम्प्रदाय हैं-----(क) ब्रह्म-सम्प्रदाय (ख) आदित्य-सम्प्रदाय।

(क) आदित्य-सम्प्रदायः--- इसमें मन्त्र शुद्ध रूप में है, अर्थात् मन्त्रों के साथ ब्राह्मणादि मिश्रित नहीं है, अतः इसे शुक्ल-यजुर्वेद कहा जाता है।
माध्यन्दिन-शाखाः---- शतपथ-ब्राह्मण के अनुसार आदित्य यजुर्वेद का ही नाम शुक्ल-यजुर्वेद है यह याज्ञवल्क्य ऋषि के द्वारा आख्यात है। इसकी दो शाखाएँ सम्प्रति उपलब्ध हैः---माध्यन्दिन शाखा, (जिसे वाजसनेयि शाखा भी कहते हैं) और काण्व-शाखा। इस समय उत्तर भारत में माध्यन्दिन शाखा का ही प्रचलन है। इसमें कुल 40 अध्याय और 1975 मन्त्र हैं। इसका अन्तिम अध्याय ही ईशोपनिषद् है।
काण्व-शाखाः-----इसका प्रचलन इस समय सर्वाधिक महाराष्ट्र प्रान्त में हैं। इसमें भी 40 अध्याय ही है, किन्तु मन्त्र 111 अधिक हैं। इस प्रकार कुल मन्त्र 2086 हैं।

(ख) ब्रह्म-सम्प्रदायः----इसमें मन्त्रों के साथ-साथ तन्नियोजक ब्राह्मण भी मिश्रित है, अतः इसे (मिश्रण के कारण) कृष्ण-यजुर्वेद कहा जाता है। इसकी कुल 85 शाखाएँ थीं, किन्तु आज केवल 4 शाखाएँ प्राप्त हैं ---तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल।

तैत्तिरीय-शाखाः---इसका प्रचलन मुख्य रूप से महाराष्ट्र, आन्ध्र और द्रविड देशों में है। इसकी संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, श्रौतसूत्र तथा गृह्यसूत्र सभी उपलब्ध हैं, अतः यह शाखा सम्पूर्ण है। इस संहिता में 7 काण्ड, 44 प्रपाठक 631 अनुवाक हैं।

मैत्रायणी-शाखाः----इसमें 4 काण्ड हैं। मन्त्र 2144 हैं, जिनमें ऋग्वेद की 1701 ऋचाएँ अनुगृहीत हैं। इसमें किुल 54 प्रपाठक 654 अनुवाक हैं।

कठ-संहिताः---महाभाष्य (4.3.101) के अनुसार इस शाखा का प्रचलन प्रत्येक ग्राम में था। इसका मुख्य रूप से प्रचलन मध्य-देश में था। इसमें कुल पाँच खण्ड, अनुवाक 843, मन्त्र 3091 हैं।

कपिष्ठल-शाखाः---इसका प्रचलन कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी के आसपास था। इसका पूर्ण विवरण उपलब्ध नहीं है।

वेद व्यास ने यजुर्वेद का अध्ययन अपने शिष्य वैशम्पायन को कराया था।

(3.) सामवेदः-----ऋषि पतञ्जलि के अनुसार सामवेद की 1000 शाखाएँ थीं--- "सहस्रवर्त्मा सामवेदः।" महाभारत के शान्तिपर्व (342.98) में इसका उल्लेख हैः---"सहस्रशाखं यत्साम"। इसका महत्त्व इस बात से बढ जाता है कि श्रीकृष्ण ने अपने आपको सामवेद बतलाया हैः----"वेदानां सामवेदोSस्मि।" इसकी तीन शाखाएँ आज उपलब्ध हैं-----
(क) कौथम-शाखा-----यह संहिता सर्वाधिक लोकप्रिय है। छान्दोग्य उपनिषद् इसी से सम्बन्धित है। इसकी अवान्तर शाखा ताण्ड्य है।

(ख) राणायणीय-शाखाः--- इसकी अवान्तर शाखा सात्यमुग्रि है।
(ग) जैमिनीय-शाखाः---इसकी संहिता, ब्राह्मण, श्रौत तथा गृह्यसूत्र उपलब्ध है। ऋषि व्यास ने सामवेद का अध्ययन जैमिनि को ही कराया था।

(4.) अथर्ववेदः----पतञ्जलि के अनुसार इसकी 9 शाखाएँ थीं---- "नवधाथर्वणो वेदः"। ये है----पिप्लाद, स्तौद, (तौद), मौद, शौनकीय, जाजल, जलद, ब्रह्मवद, देवदर्श तथा चारण वैद्य।

इनमें से शौनक शाखा ही आजकल उपलब्ध है और इसी का प्रचलन है। इसमें 20 काण्ड,34 प्रपाठक, 111 अनुवाक, 731 सूक्त और मन्त्र 5987 हैं।

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