शनिवार, 30 नवंबर 2019

आध्यात्मिक चर्चा - ३

आध्यात्मिक चर्चा - ३
आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

पिछली चर्चा में हमने समझा कि दो मार्ग हैं।
- एक संसार के वैभव पाने का  भौतिक मार्ग और दूसरा परमेश्वर के आनन्द को पाने का आध्यात्मिक मार्ग इस  विषय में उपनिषद में कहा है कि जीवन के दो पथ होते है - श्रेय मार्ग और प्रेय मार्ग इन्हें ही प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग भी कहा जाता है।

अजीर्यताममृतानामुपेत्य जीर्यन् मर्त्यः व्कधःस्थः प्रजानन्।
अभिध्यायन् वर्णरतिप्रमोदानदीर्घे जीविते को रमेत ॥
नचिकेता कुमारावस्था में ही बुद्धि की परिपक्वता एवं जिज्ञासा की गहनता का परिचय देता है। वह यमदेव से कहता है कि जीर्ण हो जानेवाला तथा मृत्यु को प्राप्त होनेवाला, मृत्युलोक में रहनेवाला, कौन मनुष्य जीर्ण न होनेवाले अमृतस्वरूप महात्माओं का संग पाकर भी भौतिक भोगों का चिन्तन करते हुए दीर्घकाल तक जीवित रहने में रुचि लेगा? यमराज जैसे महात्मा का सान्निध्य पाकर भी भोगों का चिन्तन करने की मूर्खता कौन विवेकशील मनुष्य करेगा? मृत्युलोक में रहनेवाले मरणधर्मा मनुष्य के लिए यमराज के सान्निध्य में आकर आत्मज्ञान की प्राप्ति से बढ़कर अन्य कौन-सा सौभाग्य हो सकता है? नचिकेता ने आत्मज्ञान के लिए आवश्यक वैराग्यभाव को प्रदर्शित करके स्वयं को उपदेश का सच्चा अधिकारी सिद्ध कर दिया। यह प्रसिद्ध ही है कि विषय-वासना और भौतिक वस्तुओं की तृष्णा से ग्रसित मनुष्य आत्मज्ञान की साधना नहीं कर सकता। नचिकेता सत्य का गंभीर अनुसंधाता है तथा संसार के सुखभोगों को तुच्छ समझकर उनका परित्याग करने पर दृढ़ है। वह मात्र दीर्घजीवी नहीं, दिव्यजीवी होना चाहता है।

यस्मिन्निदं विचिकित्सन्ति मृत्यो यत्साम्पराये महति ब्रूहि नस्तत्।
योऽयं वरो गूढमनुप्रविष्टो नान्यं तस्मान्नचिकेता वृणीते ॥
नचिकेता अपने निश्चय पर दृढ़ है तथा कोई प्रलोभन उसे विचलित नहीं कर सकता। यमराज जैसे उपदेष्टा के सान्निध्य का स्वर्णिम अवसर प्राप्त करके वह उसे खोना नहीं चाहता। यमराज ने जितने भी प्रलोभन प्रस्तुत किए, नचिकेता ने उन सबको तुच्छ एवं हेय कह दिया। आत्मतत्त्व के ज्ञान से बढ़कर अन्य कुछ भी नहीं हो सकता। नचिकेता का तृतीय वर गूढ है और गंभीर विवेचना की अपेक्षा करता है।
        भौतिक सुखों के नाना प्रलोभनों से उत्तीर्ण नचिकेता को आत्मज्ञान का योग्य अधिकारी समझकर यमाचार्य विद्या और अविद्या के भेद का कथन करते हैं -
अन्यच्छ्रेयोऽन्यदुतैव प्रेयस्ते उभे नानार्थे पुरुषं सिनीतः ।
तयोः श्रेय आददानस्य साधु भवति हीयतेऽर्थाद्य उ प्रेयो वृणीते ।।
   हे नचिकेता ! अतिशय प्रशंसित कल्याण का मार्ग अर्थात् मोक्ष प्राप्ति का साधन रूप कर्म लौकिक अभ्युदय की अपेक्षा विलक्षण और दूसरा है और अतिशय प्रिय लगने वाला लौकिक स्त्रीधनैश्वर्यादि अभ्युदय का मार्ग मोक्ष मार्ग से भिन्न ही है वे श्रेय और प्रेय दोनों भिन्न-भिन्न प्रायोजन वाले मनुष्य को कर्म-फल रुप रस्सियों से बांधते हैं। उन दोनों में से कल्याणकारी मोक्ष-मार्ग को ग्रहण करने वाले का अच्छा फल होता है और जो अत्यन्त प्रिय वस्तुओं को स्वीकार करता है वह मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष रूप प्रायोजन से भ्रष्ट हो जाता है।
श्रेयश्च प्रेयश्च मनुष्यमेतस्तौ सम्परीत्य विविनक्ति धीरः ।
श्रेयो हि धीरोऽभि प्रेयसो वृणीते प्रेयो मन्दो योगक्षेमाद् वृणीते ।।
   मनुष्य को श्रेय = कल्याण मार्ग और प्रेय = अतिशय प्रिय धनैश्वर्यादि का मार्ग ये दोनों प्राप्त होते हैं अर्थात् संसार में दोनों मार्ग देखने में आते हैं परन्तु विवेकी विद्वान् पुरुष उन दोनों मार्गों को शास्त्रों के अनुशीलन से शुद्ध हुई बुद्धि से निश्चय कर प्रेयमार्ग से कल्याण मार्ग को निश्चय से सर्वथा स्वीकार करता है तथा मन्द बुद्धि पुरुष अथवा अविवेकी पुरुष भौतिक सुखों के साधनों के योग = उपार्जन और क्षेम = उनके रक्षण के कारण अत्यन्त प्रिय लगने लगने वाले भोगों के मार्ग को ही स्वीकार करता है।
       प्राचीन भारत  का जब अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि अधिकतर लोग श्रेय मार्ग पर चलने वाले ही होते थे।
       प्रत्येक व्यक्ति साधना का जीवन व्यतीत करते थे। उदाहरण के रुप में हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी महाराज का जीवन देख सकते हैं जिन्होंने सत्य, न्याय और कर्तव्य पालन करते हुए अपने जीवन को कल्याण मार्ग पर ही रखा चक्रवर्ती राज्य को भी तुच्छ समझा , साथ की हम भ्राता भरत जी का जीवन भी इसी मार्ग का अनुगामी पाते हैं। योगेश्वर श्री कृष्ण जी महाराज तो आध्यात्मिक मार्ग दर्शाते हैं धन-ऐश्वर्य तथा राज्यादि को सामान्य समझते हैं ( देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे महान योगी के बारे में अज्ञानता के कारण गलत मान्यतायें भी प्रचारित की जाती हैं)
     गुरुवर स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी महाराज विश्व कल्याण की भावना से साधना का जीवन जीते है।
        महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के जीवन से कितने की लोगों को कल्याण मार्ग मिलता है , ऋषिवर संसार के वैभव को अनेक बार ठुकरा देते हैं विरुद्ध वातावरण होते हुए भी उन्हें साधना और विश्व कल्याण के मार्ग पर चलने से कोई भी बाधा नहीं रोक पायी।
  कल्याण मार्ग का पथिक हुतात्मा स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी महाराज तथा अनेक विद्वान और क्रान्तिकारियों का जीवन हम सभी के लिए प्रेरक बन गया है।
आज हमें इनके आदर्शों पर चल कर अपने जीवनों को कल्याण मार्ग पर ले जाना चाहिए। लेकिन आज तो अधिकतर लोग प्रेय मार्ग पर चलने वाले हैं इसीलिए केवल संसार के वैभव को ही पाने का उद्यम करते है।

इनमें से भी ऐसे लोग कम हैं जो पुरुषार्थ से धन अर्जित करते है और अधिक लोग ऐसे हैं जो किसी भी अनैतिक साधन से धन इकट्ठा करते हैं।

० धन के लिए पशु-पक्षियों को काटकर बिक्री कर देते, आजकल तो मनुष्यों का भी मांस बिक रहा है।
० धन के लिए मनुष्यों को मारकर लूट की जाती है तथा धन वैभव पाने के लिए सम्बन्धियों के साथ साथ  माता-पिता और रक्त सम्बन्धियों को भी मौत के घाट उतार दिया जाता है ।
० उपयोगी सामान और पशुओं की चोरी तो बहुत समय से होती हैं अब तो फिरोती के लिए मनुष्यों का अपहरण कर लिया जाता है, तथा एक अनैतिक कार्य ने तो हमें बहुत ही दुःखी किया है वह यह है कि छोटे बच्चों का अपहरण करके फिरोती नहीं मागीं जाती बल्कि उनके आन्तरिक अंगों को निकाल कर बेच दिया जाता है यह कितना जघन्य अपराध है लेकिन धन पाने के लिए यह सब भी हो रहा है।
० रिश्वतखोरी का हाल तो आप सब जानते हैं अब तो इसकी भी नयी नयी तकनीकें विकसित हो  गई हैं जिनसे दूसरे का धन अधिक से अधिक ठगा जासके।
० कमीशन का दौर तो ऐसा चला कि जिसमें सारा समाज बहुत अच्छे से जकड़ गया है। आपातकाल में मुझे कानपुर से दिल्ली तक बस से यात्रा करनी थी बस तक पहुंचने के लिए ऑटोरिक्शा लिया उसे मार्गव्यय भी दिया लेकिन बस वाले से भी ऑटोरिक्शा वाले ने एक सवारी का कमीशन भी ले लिया । जब मैंने बस में बैठने से पहले किराया पूछा। मुझे किराया अधिक लगा तो मैं बस में नही बैठा तो इस पर बस वाला बहुत नाराज हो गया । जब मैंने नाराजगी का कारण पूछा तो बताया कि आपका यात्रा का कमीशन रिक्शा वाले को दिया है उसका क्या । तब हमने उससे कहा कि यह आपका विषय है।
मित्रो ! हो सकता है कि ऐसा आपके साथ भी हुआ होगा । हां वह अलग बात है कि यात्रा में नही हुआ हो किसी अन्य स्थान पर हुआ हो क्योंकि इस कमीशन की माया से कोई भी विभाग अछूता नही रहा है । इसका जाल चिकित्सा, शिक्षा, न्याय, यात्रा, सभी प्रकार के क्रिय-विक्रय आदि में सर्वव्यापक होगया है।
० मिलावट इस तरह हुई है कि अब बाजार में कोई भी सामान विश्वास के साथ नहीं मिलता है। मिलावटी सामान शुद्ध से भी शुद्ध लगता है । आश्चर्य तो तब होता है कि जब बिना पशुओं के दूध तैयार हो जाता है और बिना दूध के मावा तैयार हो जाता है। एक समय था जब बाजार में घी वाली दुकान पर जाकर कहा जाता था की घी चाहिए तो दुकानदार कहता था कि कितना देदूं, लेकिन आज यदि कहोगे कि घी चाहिए तो दुकानदार कहेगा कि कौन सा और कितना चाहिए अर्थात् एक समय था जब  घी के नाम पर एक देशी घी ही होता था और वह भी शुद्ध ही होता था लेकिन आज मिलावटी घी है और अनेक प्रकार का है। पिसे हुये मसालों में अखाद्य रंग मिला हुया है जोकि हानिकारक कैमिकल युक्त है। काली मिर्च में पपीते के बीज मिले हैं। धनिये में भूसा और बुरादा तथा गोबर तक मिला हुआ है। लाल मिर्च में गेरू और रंग मिला हुआ है। दूध में यूरिया, साबुन व एसिड, नमक में चॉक पाउडर, हल्दी में डाई वाला कलर, देसी घी में वनस्पति तेल, स्टार्च आदि की मिलावट होरही है।
     अनेक अनैतिक तरीकों से धन कमाने वाला स्वयं को बहुत चतुर समझता है लेकिन यथार्थ इससे बिल्कुल अलग है = एक तो यह कि सुख का सच्चा साधन विद्या और सत्य व्यवहार ही है और दूसरा किये हुए कर्म का भुगतान अवश्य ही करना होता है इस सन्दर्भ में हम आगे विस्तार से लिखेंगे। अभी तो हम नचिकेता के प्रश्न आत्मा की गति पर विचार करेंगे।

क्रमशः ...









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