गुरुवार, 12 नवंबर 2020

धर्म की यथार्थता Reality of religion

धर्म की यथार्थता Reality of religion

       किसी भी शब्द के अर्थ को ठीक ठीक ( यथार्थ रूप में ) जानकर ही उसका सही प्रयोग किया जा सकता है। जैसे यज्ञ का अर्थ केवल हवन ( करने ) के लिए गौण होगया है जबकि यज्ञ का अर्थ देव पूजा, संगति करण और दान करना है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के शब्दों में ‘यज्ञ’ उसको कहते हैं कि जिसमें विद्वानों का सत्कार, यथायोग्य शिल्प अर्थात् रसायन जोकि पदार्थ विद्या उससे उपयोग और विद्यादि शुभगुणों का दान, अग्रिहोत्रादि जिनसे वायु, वृष्टि-जल, ओषधी की पवित्रता करके सब जीवों को सुख पहुंचाना है।
        यज्ञ सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है , यह पूर्ण सत्य है लेकिन इसके लिए यज्ञ करना एवं यज्ञ के सम्पूर्ण अर्थ को जानकर इन्हें जीवन में धारण करना चाहिए। 
इसी प्रकार धर्म शब्द पूजा के लिए गौण हो गया है जन सामान्य के अनुसार जो लोग पूजा करते-कराते हैं वे धार्मिक कहलाते हैं , पूजा स्थल को धार्मिक स्थल कहा जाता है, पूजा साहित्य ( पुस्तकों ) को धार्मिक साहित्य कहा जाता है। 
     क्या इसके अतिरिक्त और कोई धर्म और धार्मिक नहीं है ? क्या सत्य के साथ व्यापार करने वाला व्यक्ति धार्मिक नहीं है ? क्या जीवों  पर दया करना धर्म नहीं  है ? क्या माता पिता की सेवा करना धर्म नहीं है ? क्या राष्ट्रहित अपना सर्वस्व समर्पित  करने वाला धार्मिक नहीं है ? 
         उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर सोचते हैं या पूछते हैं तो उत्तर धर्म है ऐसा आता है। अर्थात माता पिता की सेवा करना धर्म है। सत्य से व्यापार करना धर्म है।  राष्ट्रहित बलिदान करना धर्म है। तो फिर प्रश्न है कि धर्म क्या है?
          धर्म बहुत व्यापक है जिसमें पूजा का भी स्थान है लेकिन पूजा सम्पूर्ण धर्म नहीं है धर्म का एक अंग है (वेदानुकूल पूजा ही धर्म का अंग है , वेद विरुद्ध नहीं ) व्यक्तिगत, आत्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं विश्व उन्नति के लिए अपनाये गए सभी उचित कर्तव्य धर्म के अन्तर्गत आते हैं। 
           भाषा वैज्ञानिक महामुनि पाणिनि कृत व्याकरण के अनुसार धृञ धारणे धातु से मन् प्रत्यय के योग से धर्म शब्द सिद्ध होता है। धारणात् धर्म इत्याहुः , ध्रियते अनेन लोकः  आदि व्युत्पत्तियों के अनुसार जिसे आत्मोन्नति और उत्तम सुख के लिये धारण किया जाये अथवा जिसके द्वारा लोक को धारण किया जाये अर्थात् व्यवस्था या मर्यादा में रखा जाये उसे धर्म कहते हैं।  इसप्रकार आत्मा की उन्नति करने वाला , मोक्ष तथा उत्तम व्यावहारिक सुख देने वाला सदाचार कर्तव्य अथवा श्रेष्ठ विधान नियम धर्म है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण ) ( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट ) घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ...