शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

उपदेशक/प्रचारक/पुरोहित/अधिकारी/एक सफल व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक नियम

उपदेशक/प्रचारक/पुरोहित/अधिकारी/एक सफल व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक नियम


    संसार का प्रथम गुरू, आचार्य और उपदेशक परमेश्वर है। परमेश्वर से ज्ञान प्राप्त करके मनुष्यों में यह मार्गदर्शन की श्रृंखला अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा ऋषियों से आरम्भ हुई है। ब्रह्मा से लेकर अनेक ऋषि, आचार्य, उपदेश तैयार हुए हैं। ये सभी परमेश्वर के प्रदत्त ज्ञान 'वेद' का प्रचार करते थे‌। करोड़ों वर्षों तक वैदिक सिद्धान्तों का प्रचार होता रहा और सभी उनका व्यवहार में पालन करते रहे। इसीलिए सभी सुखी थे।

     लगभग ७ हजार वर्ष पूर्व से वेद प्रचार का कार्य बाधित हुआ, मानव निर्माण का कार्य प्रभावित हुआ इसीलिए पतन होता गया। गुरुवर स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी महाराज के शिष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा पुनः वेदप्रचार का कार्य आरम्भ हुआ।

       महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने यह अनुभव किया कि वेदप्रचार के लिए अनेक उपदेशक/प्रचारक होने चाहिए ।

      स्वामी श्रद्धानन्द, पं० लेखराम, गुरुदत्त विद्यार्थी जैसे अनेक ऋषि भक्तों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और अनेक प्रचारक/उपदेशक तैयार किये जिन्होंने पुरुषार्थ करके यह वेदप्रचार का कार्य पूरे विश्वभर में किया है। 

     इसी क्रम में आगरा में पं०लेखराम जी की स्मृति में मुसाफिर उपदेशक विद्यालय चलाया गया जिसमें पं० भोजदत्त जी के पुरुषार्थ से अनेक प्रचारक/उपदेशक तैयार हुए। कुंवर सुखलाल आर्य मुसाफिर, अमर स्वामी जी महाराज जैसे विद्वान इस विद्यालय से निकले।

         आर्य पुरोहित सभा द्वारा २७ मई २०२१ से ओन लाइन पुरोहित प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है। 

       उपदेशक/प्रचारक/पुरोहित/कार्यकर्ता तैयार करने के लिए प्रशिक्षण कार्य अत्यावश्यक है। यह कार्य समर्थ आर्य समाजों और गुरुकुलों के द्वारा निरन्तर किया जाना चाहिए।


प्रशिक्षणार्थी के लिए आवश्यक निर्देश -

  1. दिनचर्या - ब्रह्म मुहूर्त में जागरण, शौचादि से निवृत्त होकर आसन, प्राणायाम, व्यायाम सन्ध्या, यज्ञ और वेदपाठ आदि।

  2. कर्तव्य पालन, माता-पिता की सेवा, बड़ों का आदर, विद्वानों का सत्कार और सभी से विनम्र व्यवहार।

  3. पाठ्यक्रम का अध्ययन, प्रवचन तैयार करना, मन्त्र, श्लोक, सूत्र एवं दृष्टान्त याद करना, निरन्तर योग्यता बढ़ाना ।

  4. संवाद कला ( विचार प्रस्तुतिकरण ) को उत्तम बनाना

  5. बोलना एक कला है जिससे बोलना आता है वह अपना कोई भी सामान बेच सकता है। अपना कोई भी कार्य सिद्ध करा सकता है। ऐसे लोगों को वाणी का जादूगर कहते हैं, ये लोग वशीकरण/सम्मोहन कर देते हैं। इसके लिए योग्यता के साथ बोलने की कला आनी चाहिए।

  6. आपने बसों में देखा होगा सामान/चूर्णादि बेचने वाले अपनी वाक् पटुता से आसानी से बेच जाते हैं।

  7. कम्पनी के प्रचारक, साम्प्रदायिक प्रचारक, बीमा एजेन्ट अपना काम वाक् चातुर्य से ही कर रहे हैं। ये लोग कहते हैं एकवार सुन तो लीजिए या एक बार उनसे हमें मिलाइए तो सही।

  8. जिसे बोलना नहीं आता वह अपने शत्रु बना लेता है, अपने अच्छे सामान को भी नहीं बेच पाता है।

  9. बोलना परमेश्वर का वरदान है परिवार की देन है तथा प्रशिक्षण से सजाया और संभाला जा सकता है इसीलिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

  10. आर्य समाज अपने उद्देश्य में सफल होना चाहता है तो योजनाबद्ध प्रशिक्षण देकर उपदेशक, प्रचारक,पुरोहित और कार्यकर्ता तैयार करके सघन प्रचार किया जाना चाहिए।

  11. अनेक वर्षों से उपदेश सुनते-सुनते कुछ अनुभव हुए हैं। जैसे कुछ उपदेशकों के व्याख्यान बहुत अच्छे होते हैं, विषयगत होते हैं, प्रभावी होते हैं। कुछ उपदेशकों के व्याख्यान विषयगत नहीं होते हैं संचालक के अनेक बार कहने पर कि विषय पर आइए तो भी विषय से अलग ही बोलते हैं। कुछ उपदेशकों के व्याख्यान सीमित है चाहे आप उन्हें कितनी ही वार सुनें। कुछ व्याख्यान बहुत कठिन किये जाते है, श्रोताओं के स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता, जो श्रोताओं की समझ में ही नहीं आते हैं। वक्ता के द्वारा समय का पालन नहीं किया जाता। कुछ वक्ताओं को लगता है कि आज ही और इसी सभा में सारा ज्ञान पिलाकर रहुंगा। बहुत अधिक बोलने से ही समझेंगे या अधिक समय का कार्यक्रम रखने से ही प्रचार ठीक होगा ऐसा भी नहीं है, प्रवचन/व्याख्यान भोजन की तरह ही है जिसकी सीमा होनी चाहिए।  अनेक बार उदाहरण प्रामाणिक नहीं होते हैं। कुछ व्याख्यानों में कभी कभी असैद्धान्तिक चर्चा भी हो जाती है। 

  12. वक्ता के द्वारा आयोजकों के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए।

  13. चोटी, यज्ञोपवीत, वक्ता की वेशभूषा, हाउ-भाव एवं बैठने और खड़े होने का तरीका ठीक होना चाहिए।

  14. भाषा-शैली उत्तम होनी चाहिए।

  15. व्याख्यान का आरम्भ और समापन प्रभावी होनाचाहिए।

  16. एक रस से युक्त या केवल गम्भीर व्याख्यान अधिक देर तक नहीं सुना जाता। इसीलिए सम्बोधन से लेकर समापन तक चर्चा नव रसों ( एक से अधिक रसों ) से युक्त होनी चाहिए।

  17. व्याख्यान में मन्त्र, श्लोक, कहानी, कविता सूत्रादि सम्मिलित होने चाहिए।

  18. व्याख्यान तथ्य और प्रमाणों से युक्त होना चाहिए ।

  19. उपस्थिति के अनुसार अपनी आवाज का स्तर रखना चाहिए। आपकी आवाज आखिरी श्रोता तक अवश्य पहुंचनी चाहिए।

  20. माइक पर कैसे बोलना है यह भी आवश्यक बिन्दु है।

  21. श्रोताओं का स्तर और क्षेत्र जानकर ही व्याख्यान प्रभावी बनाया जासकता है।

  22. यदि आपको एक ही चर्चा में अनेक बिन्दुओं को रखना है तो सभी बिन्दुओं को उचित समय देना ।

  23. एतिहासिक घटनाओं को रखने में भी प्रत्येक घटना को सन्तुलित समय देना चाहिए।

  24. महात्मा विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के मध्य संवाद और ऐसे ही अनेकों ऐतिहासिक संवादों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

  25. वीडियो रिकॉर्डिंग या लाइव होरहे कार्यक्रम कार्यक्रम में वक्ता, श्रोता और मंच पर बैठने वालों को भी सावधानी से बैठना चाहिए ।

  26. अध्यापन कार्य के लिए बी०एड० जैसे पाठ्यक्रम जितने आवश्यक है उतना ही उपदेशक प्रशिक्षण भी आवश्यक है। 






विशेष निर्देश -

  • प्रतिदिन वेदपाठ करना।

  • प्रतिदिन एक मन्त्र या एक श्लोक या एक कविता या एक छन्द या एक दृष्टान्त याद करना।

  • प्रतिदिन स्वाध्याय करके / प्रवचन सुनकर / वीडियो देखकर व्याख्यान के लिए सामग्री संग्रह करना। अलग अलग विषय के विचारों को अलग अलग विषयगत संग्रह करना।

  • प्रवचन करने के लिए स्वाभाविक बोलकर प्रवचन का अभ्यास करना ( उपदेशकों की शैली की नकल नहीं करनी चाहिए अपनी शैली सरल और स्वाभाविक होनी चाहिए )। और स्वयं की रिकॉर्डिंग करके सुनना और प्रवचन में सुधार करना।

  • आपने आचार्य/गुरु/प्रशिक्षक से अपना मूल्यांकन कराना।

      

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