आज के मनुष्य के मस्तिष्क में एक बात बैठ गयी है की कैसे भी हम धन इकठ्ठा कर लें सुख तो हम धन से खरीद लेंगें .
मैं ऐसे व्यक्तियों से कहना चाहता हूँ की यदि धन से सुख मिलाता तो सभी धनवान सुखी होने चाहिए तथा सभी निर्धन दुखी होने चाहिए .लेकिन ऐसा नहीं होता ;
कुछ धनवान दुखी हैं तथा कुछ निर्धन सुखी भी हैं
तो हमारे सामने एक प्रश्न आया की फिर सुख किससे मिलाता है
तब इसके उत्तर में हम कहेंगे की सुख सत्य न्याय परिश्रम और परोपकार से मिलाता है .
अर्थात वेदानुकुल व्यव्हार करने से सुख तथा परम सुख आनंद मिलाता है .
इसलिए सभी को सत्य न्याय से युक्ता व्यवहार करते हुए परिश्रम से धन कमाना चाहिए और अपनी सामर्थ्य के अनुसार परोपकार भी करना चाहिए .तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है
कर्मों का आधार विचार होते हैं। आज के मनुष्य के विचार बिगड़ गए हैं जिससे कर्म बिगड़ गए हैं। कर्मों को अच्छा बनाने के लिए विचारों को अच्छा बनाने की आवश्यकता है। इसलिए वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है......................
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013
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