बुधवार, 31 जुलाई 2019

सैद्धान्तिक चर्चा - १८

सैद्धान्तिक चर्चा - १८.

पिछली चर्चा में हमने जाना कि देव शब्द से किस किस का ग्रहण होता है।
० परमेश्वर हमारा प्रथम देव है।
० मनुष्यों में पांच देव होते हैं - माता, पिता, आचार्य, अतिथि तथा पति/पत्नी
० ३३ प्रकार के देव - ११ रुद्र, १२ आदित्य, ८ वसु, १ इन्द्र और १ प्रजापति। ( इन ३३ में ३२ जड़ देव हैं और १ आत्मा चेतन देव है।

उपरोक्त देवों के अतिरिक्त कोई देव नही है।
मेरा प्रवचन कार्यक्रम एक बार पूना में चलरहा था तो वहां एक प्रश्न किया गया कि क्या विष्णु नामक देवता नही होता? क्योंकि आपने उसका कोई वर्णन अपनी चर्चा में नही किया।
ध्यान देंगे इस प्रश्न जैसे ही और भी अनेक प्रश्न हो सकते हैं , क्योंकि समाज में कितने ही देवताओं की बाढ जैसी आयी हुई है नये नये देवता पनपते रहते हैं।
उपरोक्त प्रश्न को ठीक ठीक समझने के लिए पहले सिद्धान्त की एक बात जानते हैं कि
प्रश्न - सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अनादि, अविनाशी तत्व कितने हैं ?
उत्तर - अनादि, अविनाशी तत्व तीन हैं - ईश्वर, जीव और प्रकृति ।
प्रश्न - क्या इन तीनों के अतिरिक्त कोई चौथा भी तत्व है या हो सकता है ?
उत्तर - इन तीनों ( ईश्वर, जीव और प्रकृति) से अलग कोई चौथा तत्व नहीं है और ना ही हो सकता है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इन्हीं तीनों से बनता है - ईश्वर ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण प्रकृति से करता है और जीव के भोग और अपवर्ग के लिए।
ऊपर लिखे सभी देव इन तीनों में से ही हैं
० ईश्वर = ईश्वर ( जो कि प्रथम देव हैं)
० जीव = माता, पिता, आचार्य, अतिथि तथा पति/पत्नी ( मनुष्यों में पांच देव सब जीव ही तो हैं) और ३३ में से एक आत्मा।
० प्रकृति = १० रुद्र ( ११वां आत्मा चेतन है जो कि जीव में गिन लिया गया है), १२ आदित्य, ८ वसु, १ इन्द्र ( विद्युत), तथा १ प्रजापति (यज्ञ)।
आपने देखा  कि सभी देवता तीन में ही सिमट गये । ऐसा समझने पर आपके देवता सम्बन्धी सभी प्रश्न हल हो जायेंगे।
जैसे विष्णु कौन है? अब पहले हम यह जाने कि विष्णु नामक देव है तो वह इन्ही तीनों( ईश्वर, जीव और प्रकृति) में से ही होना चाहिए क्योंकि चौथा तो अस्तित्व होता ही नहीं है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में लिखते हैं -
"विष्लृ व्याप्तौ" इस धातु से ‘नु’ प्रत्यय होकर ‘विष्णु’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः’ चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम ‘विष्णु’ है। अर्थात् ईश्वर ही विष्णु है लेकिन‌ यहां इस बात का ध्यान अवश्य देना होगा कि वह ऐसे स्वरूप वाला नही है जैसा लोगों ने चित्र बना रखा है क्योंकि ईश्वर निराकार है ,उसका चित्र नही बनाया जा सकता , विष्णु का जो स्वरूप समाज में है वह काल्पनिक है सत्य नहीं ।
इसीप्रकार अन्यत्र समझें।
प्रवचन की यात्रा में एक प्रश्न बार बार आता है आइये उसका भी यहां उल्लेख करते हैं -
क्या मरने के बाद व्यक्ति देव बन जाता है? बहुत लोग उनके थान बनाकर या कब्रों को देव समझ कर पूजते हैं।
आइये पहले हम यह समझते हैं कि आत्मा मरने के बाद ( शरीर छोड़ने के बाद ) कहां जाता है ? क्योंकि आत्मा एक अविनाशी तत्व है वह न जन्म लेता है और ना ही मरता है आत्मा और शरीर के संयोग का नाम जन्म है, आत्मा और शरीर का साथ साथ चलना जीवन है तथा आत्मा और शरीर के वियोग का नाम ही मृत्यु है ।
शरीर छोड़कर आत्मा परमेश्वर की व्यवस्था में चली जाती है । जब तक नया शरीर नही मिलता तब तक आत्मा अति सुषुप्त अवस्था में रहती है । आत्मा को अपना भी ज्ञान नही होता कि कहां हैं। आत्मा का पुराने सम्बन्धियों से भी कोई सम्बन्ध नही रहता। यहां एक बात और जानना अत्यावश्यक है आत्मा ही कर्ता है और आत्मा ही भोक्ता है लेकिन शरीर रूपी साधन के बिना नही । अर्थात् बिना शरीर के आत्मा कोई कार्य नही करता। इन बातों से यह समझना आसान है कि आत्मा शरीर छोड़कर जाने के बाद उससे हमारा कोई सम्बन्ध नही रहता और हम उस आत्मा से कोई सम्पर्क भी नहीं कर सकते ।अतः थान और कब्र आदि पूजा निरर्थक है।

क्रमशः ...

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