शुक्रवार, 15 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चर्चा -११. ईश्वर, जीव और प्रकृति

सैद्धान्तिक चर्चा  -११.               हरिशंकर अग्निहोत्री

० वर्तमान में वैचारिक प्रदूषण इतना है कि सैद्धान्तिक रूप से ईश्वर, जीव और प्रकृति की सही सही जानकारी समाज में प्रचारित नही है।

० कुछ ऐसा मानते हैं कि ईश्वर है ही नही सब कुछ प्रकृति से ही बना है , और कुछ ईश्वर को तो मानते हैं लेकिन जीव और प्रकृति के अस्तित्व को नकारते हैं और कहते हैं कि सब कुछ ईश्वर में से ही बना है । कुछ ऐसा कहते हैं कि ईश्वर और प्रकृति है तथा जीव तो ईश्वर का ही अंश है , और कुछ कहते हैं कि ईश्वर और जीव हैं प्रकृति तो परमात्मा ने बनायी है। इनको अद्वैतवाद, द्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद आदि नामों से प्रचारित किया गया है।

० यहां यह जानना आवश्यक है कि यह जगत किसी भी मनुष्य की व्यक्तिगत मान्यताओं पर आधारित नही चलता और एक बात जो बहुत चिन्तन करने योग्य है जिसकी चर्चा हमने आरम्भ में की ( सैद्धान्तिक चर्चा १ और २) कि मनुष्य के पास ज्ञान बहुत थोड़ा है ईश्वर ही ज्ञान का प्रकाशक है बिना ईश्वर के कहीं भी ज्ञान नही आ सकता, निमित्त से वेद का ठीक से अध्ययन करने बाद ही सिद्धान्तों को समझा जा सकता है।

० इस सम्पूर्ण जड़ और चेतन जगत में तीन अनादि तत्व हैं - एक ईश्वर दूसरा जीव और तीसरा प्रकृति ।
= ईश्वर एक ऐसी सत्ता है जो सर्वव्यापक है, सर्वशक्तिमान है और निराकार आदि अनन्त गुणों वाली है काया(शरीर) में नही आती है
= ‌जीव एकदेशी है, अल्प सामर्थ्य वाला है और मनुष्य, पशु आदि शरीर धारण करती है।
= प्रकृति से ही सम्पूर्ण जगत का निर्माण होता है - महत्, अहम् मन, ज्ञानेन्द्रियां, कर्मेन्द्रिया, तन्मात्रायें और स्थूल भूत- अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश और इनसे वनस्पति और जन्तुओं के शरीर आदि का निर्माण प्रकृति से ही बनता है।
= ईश्वर इस जगत को प्रकृति से बनाता है और फिर जीव जब मनुष्य के शरीर में आकर परमेश्वर के वेद ज्ञान को समझकर इस सृष्टि के पदार्थों से ही कुछ वस्तुओं का निर्माण करता है। जैसे मिट्टि परमेश्वर ने मूल प्रकृति से बनायी है और फिर मनुष्य मिट्टी से घट आदि का निर्माण करता है ।

० विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है जब जब किसी शब्द से यह समझ नही आये कि यह किसके लिए (ईश्वर, जीव और प्रकृति के लिए ) प्रयोग किया गया है जैसे शनि कौन है चूंकि परमेश्वर का भी नाम शनैश्चर है और शनि किसी मनुष्य का भी नाम हो सकता है और शनि सूर्य की परिक्रमा करने वाला ग्रह भी है, तब कैसे पहचाने कि शनि शब्द किसके लिए किसका ग्रहण किया जाय । पछली चर्चा में भी इस विषय को स्पष्ट किया गया था यहां कुछ और सरलता से स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के आधार पर ही इसका ठीक ठीक स्पष्टीकरण करण हो सकता है महर्षि कहते है कि जब जब ऐसा हो तो विशेषण जान लो अर्थात् विशेषण जानने से पदार्थ का सही बोध होता है ।
एक उदाहरण लेते हैं - एक व्यक्ति विद्यालय के द्वार पर आकर द्वारपाल को कहता है कि मुझे रमेश से मिलना है तब द्वारपाल चिन्तन करने लगता है कि विद्यालय के प्रधानाचार्य का नाम रमेश है, गणित के अध्यापक का नाम रमेश है और एक रमेश नाम का विद्यार्थी भी है अब इस व्यक्ति को किसके पास भेजूं । अब यहां यह सही होगा कि उस व्यक्ति से यह पूछा जाय कि रमेश क्या करता है तब सही रमेश से मिलाया जायेगा , ऐसा पूछने पर उस व्यक्ति ने कहा कि वह गणित पढा़ता है तब रमेश से मिलाने में कोई समस्या नही रही। ठीक इसी प्रकार
जहां-जहां स्तुति, प्रार्थना, उपासना, करने योग्य सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, शुद्ध, सनातन और सृष्टिकर्ता आदि विशेषण लिखे हैं, वहीं-वहीं परमेश्वर का ग्रहण होता है
और जहाँ-जहाँ उत्पत्ति, प्रलय , जड़, दृश्य आदि विशेषण  हों, वहाँ-वहाँ परमेश्वर का ग्रहण नहीं होता। वह उत्पत्ति आदि व्यवहारों से पृथक् हैं तब परमात्मा का ग्रहण न हो के संसारी पदार्थों का ग्रहण होता है।

और जहाँ-जहाँ इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और अल्पज्ञादि विशेषण हों, वहाँ-वहाँ जीव का ग्रहण होता है, ऐसा सर्वत्र समझना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर का जन्म-मरण कभी नहीं होता।

क्रमशः...

1 टिप्पणी:

रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण ) ( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट ) घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ...