शुक्रवार, 15 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चर्चा ९.

सैद्धान्तिक चर्चा  ९.            हरिशंकर अग्निहोत्री

'मेदते मिद्यते, स्निह्यति स्निह्यते वा स मित्रः' जो सबसे स्नेह करे और सबको प्रीति करने योग्य है, इससे उस परमेश्वर का नाम "मित्र" है।

जो आत्मयोगी, विद्वान्, मुक्ति की इच्छा करने वाले मुक्त और धर्मात्माओं का स्वीकारकर्त्ता, अथवा जो शिष्ट मुमुक्षु मुक्त और धर्मात्माओं से ग्रहण किया जाता है वह ईश्वर ‘वरुण’ संज्ञक है। अथवा ‘वरुणो नाम वरः श्रेष्ठः’ जिसलिए परमेश्वर सब से श्रेष्ठ है, इसीलिए उस का नाम ‘'वरुण" है।

‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’ इस यजुर्वेद के वचन से जो जगत् नाम प्राणी, चेतन और जंगम अर्थात् जो चलते-फिरते हैं, ‘तस्थुषः’ अप्राणी अर्थात् स्थावर जड़ अर्थात् पृथिवी आदि हैं, उन सब के आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम ‘सूर्य’ है।

‘यो बृहतामाकाशादीनां पतिः स्वामी पालयिता स बृहस्पतिः’ जो बड़ों से भी बड़ा और बड़े आकाशादि ब्रह्माण्डों का स्वामी है, इस से उस परमेश्वर का नाम ‘बृहस्पति’ है।

'अत सातत्यगमने' इस धातु से ‘आत्मा’ शब्द सिद्ध होता है। ‘योऽतति व्याप्नोति स आत्मा’ जो सब जीवादि जगत् में निरन्तर व्यापक हो रहा है। ‘परश्चासावात्मा च य आत्मभ्यो जीवेभ्यः सूक्ष्मेभ्यः परोऽतिसूक्ष्मः स परमात्मा’ जो सब जीव आदि से उत्कृष्ट और जीव, प्रकृति तथा आकाश से भी अतिसूक्ष्म और सब जीवों का अन्तर्यामी आत्मा है, इस से ईश्वर का नाम ‘परमात्मा’ है।

सामर्थ्यवाले का नाम ईश्वर है। ‘य ईश्वरेषु समर्थेषु परमः श्रेष्ठः स परमेश्वरः’ जो ईश्वरों अर्थात् समर्थों में समर्थ, जिस के तुल्य कोई भी न हो, उस का नाम ‘परमेश्वर’ है।

'दिवु क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु' इस धातु से ‘देव’ शब्द सिद्ध होता है। (क्रीडा) जो शुद्ध जगत् को क्रीडा कराने (विजिगीषा) धार्मिकों को जिताने की इच्छायुक्त (व्यवहार) सब चेष्टा के साधनोपसाधनों का दाता (द्युति) स्वयंप्रकाशस्वरूप, सब का प्रकाशक (स्तुति) प्रशंसा के योग्य (मोद) आप आनन्दस्वरूप और दूसरों को आनन्द देनेहारा (मद) मदोन्मत्तों का ताड़नेहारा (स्वप्न) सब के शयनार्थ रात्रि और प्रलय का करनेहारा (कान्ति) कामना के योग्य और (गति) ज्ञानस्वरूप है, इसलिये उस परमेश्वर का नाम ‘देव’ है।

'पृथु विस्तारे' इस धातु से ‘पृथिवी’ शब्द सिद्ध होता है।’ ‘यः पर्थति सर्वं जगद्विस्तृणाति तस्मात् स पृथिवी’ जो सब विस्तृत जगत् का विस्तार करने वाला है, इसलिए उस ईश्वर का नाम ‘पृथिवी’ है।

'जल घातने' इस धातु से ‘जल’ शब्द सिद्ध होता है, ‘जलति घातयति दुष्टान् सङ्घातयति अव्यक्तपरमाण्वादीन् तद् ब्रह्म जलम्’ जो दुष्टों का ताड़न और अव्यक्त तथा परमाणुओं का अन्योऽन्य संयोग वा वियोग करता है, वह परमात्मा ‘जल’ संज्ञक कहाता है।

'काशृ दीप्तौ' इस धातु से ‘आकाश’ शब्द सिद्ध होता है, ‘यः सर्वतः सर्वं जगत् प्रकाशयति स आकाशः’ जो सब ओर से सब जगत् का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘आकाश’ है।

'अद् भक्षणे' इस धातु से ‘अन्न’ शब्द सिद्ध होता है। जो सब को भीतर रखने, सब को ग्रहण करने योग्य, चराऽचर जगत् का ग्रहण करने वाला है, इस से ईश्वर के ‘अन्न’, ‘अन्नाद’ और ‘अत्ता’ नाम हैं।

'चदि आह्लादे' इस धातु से ‘चन्द्र’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यश्चन्दति चन्दयति वा स चन्द्रः’ जो आनन्दस्वरूप और सब को आनन्द देनेवाला है, इसलिए ईश्वर का नाम ‘चन्द्र’ है।

'मगि गत्यर्थक' धातु से ‘मङ्गेरलच्’ इस सूत्र से ‘मङ्गल’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो मङ्गति मङ्गयति वा स मङ्गलः’ जो आप मङ्गलस्वरूप और सब जीवों के मङ्गल का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘मङ्गल’ है।

'बुध अवगमने' इस धातु से ‘बुध’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो बुध्यते बोध्यते वा स बुधः’ जो स्वयं बोधस्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है। इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘बुध’ है। ‘

'ईशुचिर् पूतीभावे' इस धातु से ‘शुक्र’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः शुच्यति शोचयति वा स शुक्रः’ जो अत्यन्त पवित्र और जिसके संग से जीव भी पवित्र हो जाता है, इसलिये ईश्वर का नाम ‘शुक्र’ है।

'चर गतिभक्षणयोः' इस धातु से ‘शनैस्’ अव्यय उपपद होने से ‘शनैश्चर’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः शनैश्चरति स शनैश्चरः’ जो सब में सहज से प्राप्त धैर्यवान् है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘शनैश्चर’ है।

'रह त्यागे) इस धातु से ‘राहु’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यो रहति परित्यजति दुष्टान् राहयति त्याजयति स राहुरीश्वरः’। जो एकान्तस्वरूप जिसके स्वरूप में दूसरा पदार्थ संयुक्त नहीं, जो दुष्टों को छोड़ने और अन्य को छुड़ाने हारा है, इससे परमेश्वर का नाम ‘राहु’ है।

'कित निवासे रोगापनयने च' इस धातु से ‘केतु’ शब्द सिद्ध होता है। ‘यः केतयति चिकित्सति वा स केतुरीश्वरः’ जो सब जगत् का निवासस्थान, सब रोगों से रहित और मुमुक्षुओं को मुक्ति समय में सब रोगों से छुड़ाता है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘केतु’ है।

[ ध्यान दें - आपने पढ़ा कि परमेश्वर के पृथ्वी, जल, सूर्य, बृहस्पति और शनैश्चर आदि नाम है तो क्या यह शनैश्चर आदि जो ग्रह या अन्य जल आदि पदार्थ है यह अब भी ईश्वर हैं क्या ?
देव, ईश्वर, भगवान, जीव और अन्य सब पदार्थों को कैसे पृथक-पृथक समझें इसके लिए आगे की चर्चा में लिखेंगे]

क्रमशः ...

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