शुक्रवार, 15 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चर्चा -१०.

सैद्धान्तिक चर्चा  -१०.

ध्यान दें-
० परमेश्वर को देव, भगवान, ईश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, देवी और शनैश्चर आदि नामों से जाना जाता है तथा भगवान और शनि आदि शब्दों को परमेश्वर से अलग अन्य पदार्थों के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

० ओ३म् और अग्न्यादि नामों के मुख्य अर्थ से परमेश्वर का ही ग्रहण होता है, जैसा कि व्याकरण, निरुक्त, ब्राह्मण, सूत्रादि, ऋषि मुनियों के व्याख्यानों से परमेश्वर का ग्रहण देखने में आता है, वैसा ग्रहण करना सबको योग्य है, परन्तु "ओ३म्" यह तो केवल परमात्मा का ही नाम है और अग्नि आदि नामों से परमेश्वर के ग्रहण में प्रकरण और विशेषण नियम कारक है। इससे क्या सिद्ध होता है कि जहां-जहां स्तुति, प्रार्थना, उपासना, सर्वज्ञ, व्यापक, शुद्ध, सनातन और सृष्टिकर्ता आदि विशेषण लिखे हैं, वहीं-वहीं इन नामों से परमेश्वर का ग्रहण होता है और जहां-जहां ऐसे प्रकरण है कि -
ततो विराडजायत विराजोऽअधि पूरुषः।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत। ।
तेन देवा अयजन्त।
पश्चाद्भूमिमथो पुरः॥(यजुर्वेद)
तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः। आकाशाद्वायुः। वायोरग्निः। अग्नेरापः। अद्भ्यः पृथिवी। पृथिव्या ओषधयः। ओषधिभ्योऽन्नम्। अन्नाद्रेतः। रेतसः पुरुषः। स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः।(तैत्तिरीयोपनिषद्)

ऐसे प्रमाणों में विराट्, पुरुष, देव, आकाश, वायु, अग्नि, जल, भूमि आदि नाम लौकिक पदार्थों के होते हैं, क्योंकि जहाँ-जहाँ उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय, अल्पज्ञ, जड़, दृश्य आदि विशेषण भी लिखे हों, वहाँ-वहाँ परमेश्वर का ग्रहण नहीं होता। वह उत्पत्ति आदि व्यवहारों से पृथक् हैं और उपरोक्त मन्त्रों में उत्पत्ति आदि व्यवहार हैं, इसी से यहाँ विराट् आदि नामों से परमात्मा का ग्रहण न हो के संसारी पदार्थों का ग्रहण होता है। किन्तु जहाँ-जहाँ सर्वज्ञादि विशेषण हों, वहीं-वहीं परमात्मा और जहाँ-जहाँ इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और अल्पज्ञादि विशेषण हों, वहाँ-वहाँ जीव का ग्रहण होता है, ऐसा सर्वत्र समझना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर का जन्म-मरण कभी नहीं होता, इससे विराट् आदि नाम और जन्मादि विशेषणों से जगत् के जड़ और जीवादि पदार्थों का ग्रहण करना उचित है, परमेश्वर का नहीं।

० विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है - जहां परमेश्वर को भगवान कहते हैं वहां ऐश्वर्यवान मनुष्य को भी भगवान कह सकते है लेकिन यहां यह समझना आवश्यक है कि परमेश्वर शरीर धारण नही करता और जो मनुष्य ऐश्वर्यशाली है जिसे हम भगवान कह सकते है वह परमेश्वर नही हो सकता।

० जैसे परमेश्वर के सत्य, न्याय, दया, सर्वसामर्थ्य और सर्वज्ञत्वादि अनन्त गुण हैं, वैसे अन्य किसी जड़ पदार्थ वा जीव के नहीं हैं। जो पदार्थ सत्य है, उस के गुण, कर्म, स्वभाव भी सत्य ही होते हैं। इसलिये सब मनुष्यों को योग्य है कि परमेश्वर ही की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करें, उससे भिन्न की कभी न करें। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव नामक पूर्वज महाशय विद्वान्, दैत्य दानवादि निकृष्ट मनुष्य और अन्य साधारण मनुष्यों ने भी परमेश्वर ही में विश्वास करके उसी की स्तुति, प्रार्थना और उपासना करी, उससे भिन्न की नहीं की। वैसे हम सब को करना योग्य है।

क्रमशः ...

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