मंगलवार, 5 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चर्चा - ४. "वेद सन्देश"

सैद्धान्तिक चर्चा -४.                                  "वेद सन्देश"
                                                     आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

० महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के वेद विषय में लिखते हैं- वेद में अवयव विषय तो अनेक हैं परन्तु उनमें से चार मुख्य हैं- एक विज्ञान अर्थात् सब पदार्थों का यथार्थ जानना, दूसरा कर्म, तीसरा उपासना, और चौथा ज्ञान है। विज्ञान उसको कहते हैं कि जो कर्म, उपासना और ज्ञान इन तीनों से यथावत उपयोग लेना और परमेश्वर से लेकर तृण पर्यन्त पदार्थों का साक्षात् बोध होना, उनसे यथावत् उपयोग का करना इससे यह विषय इन चारों में भी प्रधान है क्योंकि इसी में वेदों का मुख्य तात्पर्य है । सो भी दो प्रकार का है एक तो परमेश्वर का यथावत् ज्ञान और उसकी आज्ञा का यथावत् पालन करना , और दूसरा यह है कि उसके रचे हुए सब पदार्थों के गुणों को यथावत् विचार के कौन कौन पदार्थ किस किस प्रयोजन के लिए रचे हैं । और इन दोनों में से भी ईश्वर का जो प्रतिपादन है सो ही प्रधान है।

० वेद ईश्वरीय संविधान है इस व्यवस्था में चलकर सुखी एवं सम्पन्न रहते हुए मुक्ति तक प्राप्त की जा सकती है। वेद के विरोधी आचरण से दुःख प्राप्त होता है।

० यहाँ वेदों में वर्णित कुछ आचरण का उल्लेख किया जारहा है जिसका उपदेश समय समय पर अनेक महापुरुषों के द्वारा किया जाता रहा है।
विस्तार से आगे लिखेंगे-

संश्रुतेन गमेमहि (अथर्ववेद)
हम वेद के वताये मार्ग पर चलें।

समानि वः आकूति (ऋग्वेद)
हमारे विचार समान हों।

पुमान् पुमांसं परिपातु विश्वतः (यजुर्वेद)
मनुष्य मनुष्य की सब प्रकार से रक्षा करें।

'स्वाहा यज्ञं कृणोतन'
'यज्ञेन वर्धत् जातवेदसम् '(ऋग्वेद)
हे मनुष्यो ! तुम यज्ञ द्वारा उत्पन्न होकर प्रकाश देने वाली यज्ञाग्नि को बढ़ाओ।

अक्षैर्मादीव्यः (ऋग्वेद)
जुआ मत खेलो।

गां मा हिंसीः (यजुर्वेद)
गाय की हिंसा मत करो।

मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन् (अथर्ववेद)
भाई भाई से द्वेष न करे।

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥ (यजुर्वेद)
हे मनुष्य! इस जगत में वेदोक्त कर्मों को करते हुए ही सौ वर्ष या सौ से भी अधिक वर्ष तक जीने की इच्छा कर। इस प्रकार उत्तम कर्म करने से मनुष्य करदम बन्धन में नहिं बंधता । इसके अतिरिक्त भव सागर से छूटने का कोई मार्ग नहीं है।

तन्तुं तन्वन् रजसो भानुमन्विहि ज्योतिष्मतः पथो रक्ष धिया कृतान् | (ऋग्वेद)
संसार का ताना बाना बुनता हुआ (सांसारिक कर्तव्य कर्म और व्यवहारों को  करते हुआ) प्रकाश के पीछे जा अर्थात् ज्ञान युक्त कर्म कर , बुद्धि से बनाया, बुद्धि से परिष्कृत और ऋषियों द्वारा प्रदत्त तथा ज्योति से युक्त मार्ग की रक्षा कर अर्थात् ज्ञान से युक्त मार्ग पर चल।

मनुर्भव‌ जनया दैव्यं जनम् (ऋग्वेद)
हे मनुष्य! तू मनुष्य बन और दिव्य सन्तानों को जन्म दे।

क्रमशः ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण ) ( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट ) घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ...