मंगलवार, 5 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चर्चा -५

सैद्धान्तिक चर्चा -५.         हरिशंकर अग्निहोत्री

यह संसार विशालतम है लेकिन यह सम्पूर्ण संसार ही नही अनन्त ब्रह्माण्ड भी केवल तीन सत्ताओं से ही व्यवस्थित है , परमात्मा, जीव और प्रकृति जो कि तीनों ही अनादि सत्तायें है।

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज सत्यार्थ प्रकाश के अष्टम समुल्लास में वेद का प्रमाण देते हुए लिखते हैं - 
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परि षस्वजाते |
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति || ( ऋग्वेद : १-१६४-२० )

( द्वा ) जो ब्रह्म और जीव दोनों ( सुपर्णा ) चेतनता और पालनादी गुणों से सदृश ( सयुजा ) व्याप्य - व्यापक भाव से संयुक्त ( सखाया ) परस्पर मित्रतायुक्त , सनातन अनादि हैं ; और ( समानम् ) वैसा ही ( वृक्षम् ) अनादि मूलरूप कारण और शाखारूप कार्ययुक्त वृक्ष अर्थात जो स्थूल होकर प्रलय में छिन्न - भिन्न हो जाता है , वह तीसरा अनादि पदार्थ ; इन तीनों के गुण , कर्म और स्वभाव भी अनादि हैं । ( तयोरन्यः ) इन जीव और ब्रह्म में से एक जो जीव है , वह इस वृक्षरूप संसार में पाप पुण्य रूप फलों को ( स्वाद्वत्ति ) अच्छे प्रकार भोगता है , और दूसरा परमात्मा कर्मों के फलों को ( अनश्नन् ) न भोगता हुआ चारों ओर अर्थात भीतर-बाहर सर्वत्र प्रकाशमान हो रहा है । जीव से ईश्वर , ईश्वर से जीव और दोनों से प्रकृति भिन्न-स्वरूप तीनों अनादि हैं ।

अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां स्वरूपाः ।
अजो ह्येको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोऽन्यः।। (उपनिषद)
प्रकृति, जीव और परमात्मा तीनों अज अर्थात् जिनका जन्म कभी नहीं होता और न कभी ये जन्म लेते अर्थात् ये तीन सब जगत् के कारण हैं, इनका कारण कोई नही। इस अनादि प्रकृति का भोग अनादि जीव करता हुआ फसता है और उसमें परमात्मा न फसता और न उसका भोग करता है।

प्रश्न - जगत के कारण कितने हैं?
उत्तर - तीन, एक निमित्त, दूसरा उपादान, तीसरा साधारण।
निमित्त कारण उसको कहते हैं कि जिसके बनाने से कुछ बने, न बनाने से न बने। आप स्वयं बने नहीं, दूसरे को प्रकारान्तर से बना देवे।
दूसरा उपादान कारण उसको कहते हैं  जिसके बिना कुछ न बने , वही अवस्थान्तररूप  होके बने और बिगड़े भी।
तीसरा साधारण कारण उसको कहते हैं जो बनाने में साधन और साधारण निमित्त हो।
निमित्त कारण दो प्रकार के हैं । एक - सब सृष्टि को कारण से बनाने , धारण और प्रलय करने तथा सब की व्यवस्था रखने वाला मुख्य निमित्त कारण परमात्मा । दूसरा - परमेश्वर की सृष्टि में से पदार्थों को लेकर अनेकविध कार्यान्तर बनाने वाला, साधारण निमित्त कारण जीव। उपादान कारण प्रकृति, परमाणु जिसको सब संसार के बानने की सामग्री कहते हैं, वह जड़ होने से आप से आप न बन और न बिगड़ सकती है, किन्तु दूसरे के बनाने से बनती और बिगाड़ाने से बिगड़ती है।

क्रमशः ...

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