शुक्रवार, 8 मार्च 2019

सैद्धान्तिक चर्चा -७.

सैद्धान्तिक चर्चा  है -७.        हरिशंकर अग्निहोत्री

ईश्वर एक है तो अनेक की मान्यता गलत हुई। एक बात और जानना आवश्यक है कि परमेश्वर अपने कार्य सृष्टि के निर्माण आदि के लिए किसी अन्य देवी या देवता का निर्माण कर कार्य नही कराता है क्योंकि वह सर्वशक्तिमान है अर्थात् अपना कार्य करने के लिए वह किसी की सहायता नही लेता । अलग अलग देवी देवताओं की कल्पना मध्यकाल की है जब वैदिक मान्यताओं के प्रचार में कमी आगयी थी।
परमेश्वर स्वयं ही सृष्टि का निर्माता है, वही पालक है और वही सृष्टि का विनाश भी करता है इसीकारण परमेश्वर के ही ब्रह्मा आदि नाम है।
स ब्रह्मा स विष्णुः स रूद्रस्स शिवस्सो अक्षरस्स परमः स्वराट। स इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।। (उपनिषद)
सब जगत् के बनाने से 'ब्रह्मा', सर्वत्र व्यापक होने से 'विष्णु', दुष्टों को दण्ड देके रुलाने से 'रुद्र', मङ्गलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से 'शिव', सर्वत्र व्याप्त अविनाशी होने से 'अक्षर', स्वयं प्रकाशस्वरूप होने से 'स्वराट', प्रलय में सबका काल और काल का भी काल होने से परमेश्वर का नाम कालाग्नि है।

इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यस्स सुपर्णो गरुत्मान् ।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः।। (ऋग्वेद)
जो एक अद्वितीय सत्यब्रह्म वस्तु है उसी के इन्द्रादि सब नाम है, दिव्य - जो प्रकृत्यादि दिव्य पदार्थों मे व्याप्त, सुपर्ण - जिसके उत्तम पालन और पूर्णकाम हैं, गरुत्मान् - जिसका आत्मा अर्थात् स्वरूप महान है, मातरिश्वा - जो वायु के समान अनन्त बलवान है, इसीलिए परमात्मा के दिव्य, सुपर्ण, गरुत्मान् और मातरिश्वा ये नाम हैं। शेष नामों की चर्चा आगे करेंगे।

अज्ञानता से परमेश्वर के इन्हीं नामों के अलग अलग रूप मानकर अलग अलग मूर्तियाँ गढ़ ली हैं और मनगढ़ंत कहानियाँ भी बनाकर अनेक ग्रन्थ भी लिख दिये है और दुर्भाग्यवश उन्ही का प्रचलन हो गया है, जिनसे हित होने की थोड़ी भी सम्भावना नहीं है।

सभी का कल्याण केवल वेदमार्ग से ही सम्भव है।

क्रमशः ...

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