शनिवार, 3 सितंबर 2022

रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण )
( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट )

घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ, काली मिर्च, पीपल।

विधि - यह सब बराबर मात्रा में मिलाकर कूटकर रखलें। एक व्यक्ति के एक चम्मच ( ३ से ४ ग्राम ) मिश्रण एक गिलास पानी में डालकर आधा पानी रह जाने तक उबालें। स्वाद अनुसार नमक या मीठा डालकर गर्म गर्म सुबह /शाम पीयें।

इसके प्रयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ज्वर, खांसी, शरीर दर्द, थकान, गले की खराश दूर होती है।

वैद्य पुनीत अग्निहोत्री (आयुर्वेदाचार्य ) ( हाथरस )
आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री ( वैदिक प्रवक्ता ) ( आगरा )

महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित साहित्य

महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित साहित्य 

१. आर्य समाज के नियम उपनियम - १८७४
२. पञ्च महा यज्य विधि - १८७४ , १८७७
३. सत्यार्थ प्रकाश - १८७५ , १८८४
४. आर्याभिविनय - १८७६
५. संस्कार विधि - १८७७ , १८८४
६. आर्योदेश्य रत्नमाला - १८७७
७. ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका - १८७८
८. ऋग्वेद भाष्य ७.६१.१,२ तक जो की अपूर्ण रह गया था. १८७७-१८९९
९. यजुर्वेद भाष्य - १८७८ -१८८९ (पूर्ण)
१०. अष्टाध्यायी भाष्य - ३ ग्रंथ में (अपूर्ण) - १८७८-१८७९
११. संस्कृत वाक्य प्रबोध - १८७९
१२. व्यवहार भानु - १८७९
१३. वेदांग प्रकाश - १४ पुस्तके 
- वर्णोच्चारण शिक्षा
- संधि विषय
- नामिक
- कारकिय
- समासिक
- स्त्रैणताद्धित
- अव्यवार्थ
- आख्यतिक
- सौवर
- पारिभाषिक
- धातुपाठ
- घनपाठ
- उणादिकोष
- निघंटू
२७. भ्रान्ति निवारण - १८८०
२८. भ्रमोछेदन -१८८०
२९. अनुभ्रमोछेदन - १८८०
३०. गो करुणा निधि - १८८०
३१. स्वीकार पत्र -१८८३
३२. ऋषि दयानन्द के पत्र और विज्ञापन (पण्डित लेखराम जी एवम् स्वामी श्रद्धानंद जी द्वारा संकलित एवम् प्रकाशित)
३३. स्वमन्तव्यामन्तव्य
३४. चतुर्वेद विषय सूची - १९७१
३५. सामवेद संहिताया मन्त्राणां वर्णानुक्रमसुची (पीडीएफ ले लेना हमसे) 
३६. स्वरचित जन्म चरित संस्कृत - १८७२-१८७३
३७.स्वरचित जन्म चरित - १८७५
३८. स्वरचित जन्म चरित अंग्रेजी प्रेस के लिए - १८८०
३९. भागवत / पाखण्ड खण्डन - १८६६
४०. अद्वैत खण्डन (अनुपलब्ध लुप्त) - १८७०
४१. हुगली शास्त्रार्थ - १८७३
४२. वेदान्तिध्वानत निवारण - १८७५
४३. वेद विरुद्ध मत खण्डन - १८७५
४४. शिक्षा पत्री ध्वानत निवारण - १८७५
४५. पूना प्रवचन (हिन्दी अनुवाद बाद में उपदेश मञ्जरी नाम से प्रकाशित) - १८७५
४६. जालन्धर शास्त्रार्थ - १८७७
४७. सत्य धर्म विचार - १८७७
४८. बरेली शास्त्रार्थ - १८७९
४९. काशी शास्त्रार्थ - १८८०
५०. अजमेर शास्त्रार्थ
५१. मसूदा शास्त्रार्थ
५२. उदयपुर शास्त्रार्थ

अन्य जो कभी छपे नहीं या मिले नहीं (मतलब लुप्त हो गए)
५३. सन्ध्या (अनुपलब्ध) १८६३
५४. वेद भाष्य नमूने का प्रथम अंक - १८७५
५५. वेद भाष्य नमूने का द्वितीय अंक - १८७६
५६. गौतम अहिल्या की कथा (अनुपलब्ध) - १८७९
५७. गदर्भ तापनी उपनिषद् (अनुपलब्ध)


शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

उपदेशक/प्रचारक/पुरोहित/अधिकारी/एक सफल व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक नियम

उपदेशक/प्रचारक/पुरोहित/अधिकारी/एक सफल व्यक्ति बनने के लिए आवश्यक नियम


    संसार का प्रथम गुरू, आचार्य और उपदेशक परमेश्वर है। परमेश्वर से ज्ञान प्राप्त करके मनुष्यों में यह मार्गदर्शन की श्रृंखला अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा ऋषियों से आरम्भ हुई है। ब्रह्मा से लेकर अनेक ऋषि, आचार्य, उपदेश तैयार हुए हैं। ये सभी परमेश्वर के प्रदत्त ज्ञान 'वेद' का प्रचार करते थे‌। करोड़ों वर्षों तक वैदिक सिद्धान्तों का प्रचार होता रहा और सभी उनका व्यवहार में पालन करते रहे। इसीलिए सभी सुखी थे।

     लगभग ७ हजार वर्ष पूर्व से वेद प्रचार का कार्य बाधित हुआ, मानव निर्माण का कार्य प्रभावित हुआ इसीलिए पतन होता गया। गुरुवर स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी महाराज के शिष्य महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज के द्वारा पुनः वेदप्रचार का कार्य आरम्भ हुआ।

       महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने यह अनुभव किया कि वेदप्रचार के लिए अनेक उपदेशक/प्रचारक होने चाहिए ।

      स्वामी श्रद्धानन्द, पं० लेखराम, गुरुदत्त विद्यार्थी जैसे अनेक ऋषि भक्तों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया और अनेक प्रचारक/उपदेशक तैयार किये जिन्होंने पुरुषार्थ करके यह वेदप्रचार का कार्य पूरे विश्वभर में किया है। 

     इसी क्रम में आगरा में पं०लेखराम जी की स्मृति में मुसाफिर उपदेशक विद्यालय चलाया गया जिसमें पं० भोजदत्त जी के पुरुषार्थ से अनेक प्रचारक/उपदेशक तैयार हुए। कुंवर सुखलाल आर्य मुसाफिर, अमर स्वामी जी महाराज जैसे विद्वान इस विद्यालय से निकले।

         आर्य पुरोहित सभा द्वारा २७ मई २०२१ से ओन लाइन पुरोहित प्रशिक्षण का कार्य किया जा रहा है। 

       उपदेशक/प्रचारक/पुरोहित/कार्यकर्ता तैयार करने के लिए प्रशिक्षण कार्य अत्यावश्यक है। यह कार्य समर्थ आर्य समाजों और गुरुकुलों के द्वारा निरन्तर किया जाना चाहिए।


प्रशिक्षणार्थी के लिए आवश्यक निर्देश -

  1. दिनचर्या - ब्रह्म मुहूर्त में जागरण, शौचादि से निवृत्त होकर आसन, प्राणायाम, व्यायाम सन्ध्या, यज्ञ और वेदपाठ आदि।

  2. कर्तव्य पालन, माता-पिता की सेवा, बड़ों का आदर, विद्वानों का सत्कार और सभी से विनम्र व्यवहार।

  3. पाठ्यक्रम का अध्ययन, प्रवचन तैयार करना, मन्त्र, श्लोक, सूत्र एवं दृष्टान्त याद करना, निरन्तर योग्यता बढ़ाना ।

  4. संवाद कला ( विचार प्रस्तुतिकरण ) को उत्तम बनाना

  5. बोलना एक कला है जिससे बोलना आता है वह अपना कोई भी सामान बेच सकता है। अपना कोई भी कार्य सिद्ध करा सकता है। ऐसे लोगों को वाणी का जादूगर कहते हैं, ये लोग वशीकरण/सम्मोहन कर देते हैं। इसके लिए योग्यता के साथ बोलने की कला आनी चाहिए।

  6. आपने बसों में देखा होगा सामान/चूर्णादि बेचने वाले अपनी वाक् पटुता से आसानी से बेच जाते हैं।

  7. कम्पनी के प्रचारक, साम्प्रदायिक प्रचारक, बीमा एजेन्ट अपना काम वाक् चातुर्य से ही कर रहे हैं। ये लोग कहते हैं एकवार सुन तो लीजिए या एक बार उनसे हमें मिलाइए तो सही।

  8. जिसे बोलना नहीं आता वह अपने शत्रु बना लेता है, अपने अच्छे सामान को भी नहीं बेच पाता है।

  9. बोलना परमेश्वर का वरदान है परिवार की देन है तथा प्रशिक्षण से सजाया और संभाला जा सकता है इसीलिए प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

  10. आर्य समाज अपने उद्देश्य में सफल होना चाहता है तो योजनाबद्ध प्रशिक्षण देकर उपदेशक, प्रचारक,पुरोहित और कार्यकर्ता तैयार करके सघन प्रचार किया जाना चाहिए।

  11. अनेक वर्षों से उपदेश सुनते-सुनते कुछ अनुभव हुए हैं। जैसे कुछ उपदेशकों के व्याख्यान बहुत अच्छे होते हैं, विषयगत होते हैं, प्रभावी होते हैं। कुछ उपदेशकों के व्याख्यान विषयगत नहीं होते हैं संचालक के अनेक बार कहने पर कि विषय पर आइए तो भी विषय से अलग ही बोलते हैं। कुछ उपदेशकों के व्याख्यान सीमित है चाहे आप उन्हें कितनी ही वार सुनें। कुछ व्याख्यान बहुत कठिन किये जाते है, श्रोताओं के स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता, जो श्रोताओं की समझ में ही नहीं आते हैं। वक्ता के द्वारा समय का पालन नहीं किया जाता। कुछ वक्ताओं को लगता है कि आज ही और इसी सभा में सारा ज्ञान पिलाकर रहुंगा। बहुत अधिक बोलने से ही समझेंगे या अधिक समय का कार्यक्रम रखने से ही प्रचार ठीक होगा ऐसा भी नहीं है, प्रवचन/व्याख्यान भोजन की तरह ही है जिसकी सीमा होनी चाहिए।  अनेक बार उदाहरण प्रामाणिक नहीं होते हैं। कुछ व्याख्यानों में कभी कभी असैद्धान्तिक चर्चा भी हो जाती है। 

  12. वक्ता के द्वारा आयोजकों के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए।

  13. चोटी, यज्ञोपवीत, वक्ता की वेशभूषा, हाउ-भाव एवं बैठने और खड़े होने का तरीका ठीक होना चाहिए।

  14. भाषा-शैली उत्तम होनी चाहिए।

  15. व्याख्यान का आरम्भ और समापन प्रभावी होनाचाहिए।

  16. एक रस से युक्त या केवल गम्भीर व्याख्यान अधिक देर तक नहीं सुना जाता। इसीलिए सम्बोधन से लेकर समापन तक चर्चा नव रसों ( एक से अधिक रसों ) से युक्त होनी चाहिए।

  17. व्याख्यान में मन्त्र, श्लोक, कहानी, कविता सूत्रादि सम्मिलित होने चाहिए।

  18. व्याख्यान तथ्य और प्रमाणों से युक्त होना चाहिए ।

  19. उपस्थिति के अनुसार अपनी आवाज का स्तर रखना चाहिए। आपकी आवाज आखिरी श्रोता तक अवश्य पहुंचनी चाहिए।

  20. माइक पर कैसे बोलना है यह भी आवश्यक बिन्दु है।

  21. श्रोताओं का स्तर और क्षेत्र जानकर ही व्याख्यान प्रभावी बनाया जासकता है।

  22. यदि आपको एक ही चर्चा में अनेक बिन्दुओं को रखना है तो सभी बिन्दुओं को उचित समय देना ।

  23. एतिहासिक घटनाओं को रखने में भी प्रत्येक घटना को सन्तुलित समय देना चाहिए।

  24. महात्मा विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के मध्य संवाद और ऐसे ही अनेकों ऐतिहासिक संवादों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

  25. वीडियो रिकॉर्डिंग या लाइव होरहे कार्यक्रम कार्यक्रम में वक्ता, श्रोता और मंच पर बैठने वालों को भी सावधानी से बैठना चाहिए ।

  26. अध्यापन कार्य के लिए बी०एड० जैसे पाठ्यक्रम जितने आवश्यक है उतना ही उपदेशक प्रशिक्षण भी आवश्यक है। 






विशेष निर्देश -

  • प्रतिदिन वेदपाठ करना।

  • प्रतिदिन एक मन्त्र या एक श्लोक या एक कविता या एक छन्द या एक दृष्टान्त याद करना।

  • प्रतिदिन स्वाध्याय करके / प्रवचन सुनकर / वीडियो देखकर व्याख्यान के लिए सामग्री संग्रह करना। अलग अलग विषय के विचारों को अलग अलग विषयगत संग्रह करना।

  • प्रवचन करने के लिए स्वाभाविक बोलकर प्रवचन का अभ्यास करना ( उपदेशकों की शैली की नकल नहीं करनी चाहिए अपनी शैली सरल और स्वाभाविक होनी चाहिए )। और स्वयं की रिकॉर्डिंग करके सुनना और प्रवचन में सुधार करना।

  • आपने आचार्य/गुरु/प्रशिक्षक से अपना मूल्यांकन कराना।

      

गुरुवार, 23 जून 2022

सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता २०२२

सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता

       आर्य पुरोहित सभा द्वारा "सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता" का आयोजन किया गया है। प्रतियोगिता में सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय समुल्लास पर विषय स्पष्ट करते हुए लेख लिखना है अर्थात् आपको अपने लेख में यह समझाना है कि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय समुल्लास में क्या सन्देश दिया है। उत्तम लेख लिखने वाले प्रतिभागियों को अपना लेख कार्यक्रम में पढ़ने का अवसर दिया जायेगा। और उन्हें पुरस्कृत किया जायेगा। आर्य पुरोहित, प्रचारक और उपदेशकों को छोड़कर प्रतियोगिता में सभी आयु वर्ग के स्त्री और पुरुष भाग ले सकते हैं।

        प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आप अपना पञ्जीकरण करालें। पञ्जीकरण शुल्क मात्र १००/- है, जिसमें आपको सत्यार्थ प्रकाश भी उपलब्ध कराया जायेगा। यदि आपके पास सत्यार्थ प्रकाश है तो ५०/- देकर ही अपना पञ्जीकरण करा सकते हैं। आप अपना पञ्जीकरण केन्द्रों से करायें या अपने मोबाइल से भी अपना पञ्जीकरण करा सकते हैं, पेटीएम से या गूगल पे से पंजीकरण शुल्क भेजकर अपना फार्म जमा करा सकते हो। यदि सत्यार्थ प्रकाश आपके पास है तो केवल ५०/- भेजकर और सत्यार्थ प्रकाश चाहिए तो १५०/- भेजकर, जिसमें ५०/- कोरियर सेवा के लिए हैं। ( मोबाइल से पञ्जीकरण कराने के लिए सम्पर्क करें - श्री राकेश तिवारी ( कोषाध्यक्ष आर्य वीर जनपद आगरा एवं मन्त्री आर्य समाज ताजगंज, आगरा सम्पर्क सूत्र - 9456460570 )

कृपया ध्यान दें - आप अपना पञ्जीकरण शीघ्र करा लें तथा अपना लेख फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी दिन सोमवार विक्रम संवत् २०७८ (२८ फरवरी २०२२ ) तक अवश्य जमा करा दें।

   सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता का पञ्जीकरण विभिन्न नगरों में किया जा रहा है। प्रतियोगिता पञ्जीकरण केन्द्र निम्नलिखित हैं -

👉 आगरा
श्री वीरेन्द्र कुमार कनवर ( प्रधान आर्य समाज कमलानगर-बल्केश्वर आगरा एवं कार्यकारी संचालक आर्य वीर दल जनपद आगरा ) 
एफ-94, कमला नगर आगरा 282005 ( उ०प्र० )
 सम्पर्क सूत्र : 9897007181 )

👉 मथुरा
श्री कन्हैयालाल आर्य 
सत्य प्रकाशन
डाकघर - गायत्री तपोभूमि, वृन्दावन मार्ग
( आचार्य प्रेमभिक्षु मार्ग ), मसानी चौराहे के पास,
मथुरा - 281003 ( उ०प्र० )
सम्पर्क सूत्र - 9759804182

👉 फरीदाबाद
डॉ॰ गजराज आर्य ( सम्पर्क सूत्र - 9213771515 )
श्री देवेन्द्र शास्त्री ( सम्पर्क सूत्र - 8849649259 )
आर्य समाज सेक्टर19, फरीदाबाद, हरियाणा

👉 सोनीपत
आचार्य सन्दीप आर्य - आर्य समाज सेक्टर १४, सोनीपत हरियाणा
सम्पर्क सूत्र - 9466821003.

👉 पानीपत
डॉ॰ राजवीर आर्य - हरित ऊर्जा ( Green Energy ), एम जे आर रोड़, नियर डेज होटल, सेक्टर - 25, पानीपत, हरियाणा
सम्पर्क सूत्र - 7206266000.

👉 कोटा
श्री आर० सी० आर्य - 10 ए 23, महावीर नगर  - 3, (पारिजात ) कोटा - 324005 ( राजस्थान )
सम्पर्क सूत्र - 9660482456.

👉 कानपुर
श्री विनोद कुमार आर्य - 1/494 वेद सदन, ओम वाटिका पार्क, अम्बेडकरपुरम आवास विकास 3, कल्याणपुर कानपुर 208017
सम्पर्क सूत्र - 7985422247; 8765193154; 8765193154.

👉 दिल्ली
आचार्य यशपाल आर्य - गुरुकुल तिहाड़ गांव, दिल्ली
सम्पर्क सूत्र - 9818517125

👉 इन्दौर
डॉ॰ दक्षदेव गौड़ - आर्य समाज मल्हारगंज, इन्दौर
सम्पर्क सूत्र - 6264932951

👉 सहारनपुर
श्री अवनीश आर्य ( संचालक आर्य वीर दल जनपद सहारनपुर एवं मन्त्री आर्य उपप्रतिनिधि सभा सहारनपुर )
आर्य समाज जनक नगर निकट उत्सव पैलेस स्वामी श्रद्धनन्द मार्ग 
सम्पर्क सूत्र - 7417015335

👉 सुमेरपुर
डॉ॰ विवेक आर्य - मोहल्ला गुरगुज, आर्यसमाज भरूवा सुमेरपुर , जिला हमीरपुर उत्तर प्रदेश पिन 210502
 सम्पर्क सूत्र - 08423507590

👉 अगली बार देशभर कर अन्य स्थानों पर भी केन्द्र बनाये जायेंगे, केन्द्र बनाने के लिए आप भी अपनी सहमति दे सकते हैं।

        
          आप सभी भाई बहनों से विनम्र निवेदन है कि अधिक से अधिक भाई बहनों तक यह सन्देश पहुंचाने की कृपा करें जिससे अधिक लोग इस प्रतियोगिता में भाग से सकें।

     आर्य पुरोहित सभा का आगामी कार्यक्रम फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा दिन गुरुवार विक्रम संवत्‌ २०७८ ( ३ मार्च २०२२ )  को श्रीमती पुष्पा आर्या एवं श्री प्रतीक निधि गुप्ता जी के विशेष सहयोग से "वैदिक लाइफ, योगा एण्ड मेडिटेशन सेन्टर, ई- ३११, कमला नगर आगरा, में अपराह्न २:०० बजे से ५:०० बजे तक आयोजित किया गया है। जिसमें सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास की जानकारी दी जायेगी।

      आप सादर आमन्त्रित हैं कृपया कार्यक्रम में समय से पहुंचकर कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ायें। 

       इस कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आपके सुझाव आमन्त्रित हैं, अपने बहुमूल्य विचारों से हमें लाभान्वित करने की कृपा करें।

      आपकी बड़ी कृपा होगी।

        प्रतियोगिता से सम्बन्धित किसी भी जानकारी के लिए सम्पर्क करें - 9897060822

निवेदक
आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री  ( वैदिक प्रवक्ता )
संचालक आर्य वीर दल पश्चिमी उत्तर प्रदेश
प्रधान आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा

मनोज खुराना ( सी०ए०)
संचालक आर्य वीर दल जनपद आगरा
प्रधान आर्य समाज नाई की मण्डी, आगरा

विश्वेन्द्रार्य शास्त्री ( धर्माचार्य )
मन्त्री आर्य वीर दल जनपद आगरा
मन्त्री आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा

आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा एवं आर्य वीर दल जनपद आगरा के समस्त पदाधिकारी एवं समस्त सदस्यगण

सोमवार, 14 मार्च 2022

वेद प्रचार एवं प्रतियोगिता पुरस्कार वितरण कार्यक्रम सम्पन्न

वेद प्रचार एवं‌ सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न
      आर्य पुरोहित सभा का वेद प्रचार कार्यक्रम फाल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी दिन रविवार विक्रम संवत्‌ २०७८ ( १३ मार्च २०२२ )  को श्रीमती पुष्पा आर्या एवं श्री प्रतीक निधि गुप्ता जी के विशेष सहयोग से आर्य समाज बल्केश्वर कमलानगर ( एफ - ९४, कमला नगर ) आगरा, में अपराह्न २:०० बजे से ४:०० बजे तक आयोजित किया गया। 
         कार्यक्रम में आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री जी ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास पर व्याख्यान किया चूंकि होली का त्योहार समीप है इसीलिए होली के वैदिक स्वरूप पर भी उन्होंने चर्चा की। 
           आर्य वीर दल जनपद आगरा के सहयोग से हुई प्रतियोगिता का परिणाम‌ भी घोषित करके पुरस्कार वितरित भी किये गये। प्रतियोगिता में 
बाड़ी ( राजस्थान ) से श्रीमती कमलेश आर्या जी ने प्रथम, 
गाजियाबाद ( उत्तर प्रदेश ) से डॉ॰ प्रतिभा सिंहल जी ने द्वितीय और 
आगरा ( उत्तर प्रदेश ) से श्री वीरेन्द्र कनवर जी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया । 
           प्रतियोगिता में निम्नलिखित प्रतिभागियों को सान्त्वना पुरस्कार भी दिये गये -
श्रीमती कान्ता बंसल ( आगरा, उत्तर प्रदेश )
श्री साहव सिंह ( राजा खेड़ा, राजस्थान )
श्रीमती चन्द्रकान्ता आर्या ( चण्डीगढ़ )
श्री तुलसीराम आर्य ( आगरा, उत्तर प्रदेश )
श्रीमती कुसुम मित्तल ( बाड़ी, राजस्थान )
श्रीमती प्रेमा कनवर ( आगरा, उत्तर प्रदेश )
श्रीमती माहेश्वरी गुप्ता ( आगरा, उत्तर प्रदेश )
     प्रतियोगिता आगे भी निरन्तर होती रहेगी। देश के विभिन्न स्थानों से हमें जिन महानुभावों ने सहयोग किया उन्हें भी सम्मानित किया गया है और जो उपस्थित नहीं हो सके हैं उनका सम्मानपत्र उन्हें भेजा जारहा है।
     इस कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आपके सुझाव आमन्त्रित हैं, अपने बहुमूल्य विचारों से हमें लाभान्वित करने की कृपा करें।
    आपकी बड़ी कृपा होगी।
प्रतियोगिता के विशेष सहयोगी -
श्री नीरज आर्य ( प्रधान गुरुकुल तिहाड़ गांव दिल्ली )
श्री वीरेन्द्र कनवर ( संरक्षक आर्य वीर दल जनपद आगरा एवं‌ संचालक पतंजलि चिकित्सालय कमला नगर आगरा )
श्री राकेश तिवारी ( कोषाध्यक्ष आर्य वीर दल जनपद आगरा एवं‌ मन्त्री आर्य समाज ताजगंज आगरा )
श्रीमती प्रेमा कनवर ( संचालिका आर्य वीरांगना दल जनपद आगरा )
श्री पवन आर्य ( योगाचार्य एवं संचालक वैदिक योग केन्द्र आगरा )
डॉ॰ दक्षदेव गौड़ ( प्रधान आर्य समाज मल्हारगंज, इन्दौर )
श्री कन्हैयालाल आर्य  ( व्यवस्थापक सत्य प्रकाशन, मथुरा )
डॉ॰ गजराज आर्य ( प्रधान आर्य समाज सै० १९, फरीदाबाद )
आचार्य सन्दीप आर्य ( कार्यकारी संचालक आर्य वीर दल हरियाणा )
डॉ॰ राजवीर आर्य ( मन्त्री वैदिक परिवार पानीपत )
श्री आर० सी० आर्य ( प्रधान आर्य समाज महावीर नगर, कोटा )
श्री विनोद कुमार आर्य ( कानपुर ), आचार्य यशपाल आर्य ( दिल्ली )
श्री अवनीश आर्य (आर्य वीर दल जनपद संचालक सहारनपुर )
डॉ॰ विवेक आर्य ( संचालक आर्य वीर दल मध्य उत्तर प्रदेश )

कार्यक्रम में अतिथि के रूप में पधारे प्रसिद्ध उद्योगपति श्री महावीर वर्मा जी एवं श्री सूर्यप्रकाश गुप्ता जी के द्वारा पुरस्कार वितरण सम्पन्न हुआ तथा श्री अशोक शास्त्री, श्री अभय यादव, श्री अर्जुदेव महाजन, श्री तीर्थराम शास्त्री, श्री अनुज आर्य, श्री भरत सिंह, श्री प्रभात माहेश्वरी, श्री अवनीन्द्र गुप्ता, श्री के बी शर्मा, आचार्य हुकुमसिंह भारती, श्री रामशरण आर्य, श्रीमती विद्या गुप्ता, श्रीमती पुष्पा आर्या, श्रीमती कंचन गुप्ता, श्रीमती राधा तिवारी, श्रीमती रानी आर्या, श्रीमती ऊषा गुप्ता, श्रीमती पुष्पलता गुप्ता, श्रीमती मंजू गुप्ता, श्रीमती चन्द्रकान्ता आर्या, कु० ऋचा आर्या, श्रीमती मीना अग्रवाल आदि सम्मानित महानुभावों ने पधारकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
        प्रतियोगिता से सम्बन्धित किसी भी जानकारी के लिए सम्पर्क करें - 9897060822

निवेदक
विश्वेन्द्रार्य शास्त्री ( धर्माचार्य )
मन्त्री आर्य वीर दल जनपद आगरा
मन्त्री आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा

मंगलवार, 1 मार्च 2022

सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता का परिणाम

                        ⚔️ ⚜️ ओ३म् ⚜️ ⚔️


वेद प्रचार एवं‌ सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता का पुरस्कार वितरण कार्यक्रम


      आर्य पुरोहित सभा का आगामी कार्यक्रम फाल्गुन शुक्ल पक्ष दशमी दिन रविवार विक्रम संवत्‌ २०७८ ( १३ मार्च २०२२ )  को श्रीमती पुष्पा आर्या एवं श्री प्रतीक निधि गुप्ता जी के विशेष सहयोग से आर्य समाज बल्केश्वर कमलानगर ( एफ - ९४, कमला नगर ) आगरा, में अपराह्न २:०० बजे से ४:०० बजे तक आयोजित किया गया है। कार्यक्रम में सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास की जानकारी दी जायेगी तथा आर्य वीर दल जनपद आगरा के सहयोग से हुई प्रतियोगिता का परिणाम‌ भी घोषित किया जायेगा।


     कार्यक्रम में आप सादर आमन्त्रित हैं कृपया कार्यक्रम में समय से पहुंचकर कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ायें।


    इस कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आपके सुझाव आमन्त्रित हैं, अपने बहुमूल्य विचारों से हमें लाभान्वित करने की कृपा करें।

    आपकी बड़ी कृपा होगी।


कृपया ध्यान दें - सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि जिनका लेख प्रतियोगिता में सम्मिलित होने से रह गया हो तो शीघ्रता करें, दिनांक ८ मार्च २०२२ तक जमा करा दें।

        प्रतियोगिता से सम्बन्धित किसी भी जानकारी के लिए सम्पर्क करें - 9897060822


प्रतियोगिता के विशेष सहयोगी - श्री नीरज आर्य ( मन्त्री गुरुकुल तिहाड़ गांव दिल्ली ), श्री वीरेन्द्र कनवर ( संरक्षक आर्य वीर दल जनपद आगरा एवं‌ संचालक पतंजलि चिकित्सालय कमला नगर आगरा ), श्री राकेश तिवारी ( कोषाध्यक्ष आर्य वीर दल जनपद आगरा एवं‌ मन्त्री आर्य समाज ताजगंज आगरा ), श्रीमती प्रेमा कनवर ( संचालिका आर्य वीरांगना दल जनपद आगरा ), श्री पवन आर्य ( योगाचार्य एवं संचालक वैदिक योग केन्द्र आगरा ), डॉ॰ दक्षदेव गौड़ ( प्रधान आर्य समाज मल्हारगंज, इन्दौर ), श्री कन्हैयालाल आर्य  ( व्यवस्थापक सत्य प्रकाशन, मथुरा ), डॉ॰ गजराज आर्य ( प्रधान आर्य समाज सै० १९, फरीदाबाद ), आचार्य सन्दीप आर्य ( कार्यकारी संचालक आर्य वीर दल हरियाणा ), डॉ॰ राजवीर आर्य ( मन्त्री वैदिक परिवार पानीपत ), श्री आर० सी० आर्य ( प्रधान आर्य समाज महावीर नगर, कोटा ), श्री विनोद कुमार आर्य ( कानपुर ), आचार्य यशपाल आर्य ( दिल्ली ), श्री अवनीश आर्य ( सहारनपुर ), डॉ॰ विवेक आर्य ( संचालक आर्य वीर दल मध्य उत्तर प्रदेश )


निवेदक


आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री  ( वैदिक प्रवक्ता )

संचालक आर्य वीर दल पश्चिमी उत्तर प्रदेश

प्रधान आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा


मनोज खुराना ( सी०ए०)

संचालक आर्य वीर दल जनपद आगरा

प्रधान आर्य समाज नाई की मण्डी, आगरा


विश्वेन्द्रार्य शास्त्री ( धर्माचार्य )

मन्त्री आर्य वीर दल जनपद आगरा

मन्त्री आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा


आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा एवं आर्य वीर दल जनपद आगरा के समस्त पदाधिकारी एवं समस्त सदस्यगण

सोमवार, 31 जनवरी 2022

सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता

 



सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता


       आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा द्वारा किये जा रहे मासिक कार्यक्रम में वेद प्रचार के साथ आर्य वीर दल जनपद आगरा के संयुक्त तत्वावधान में "सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता" का आयोजन किया गया है। प्रतियोगिता में सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास पर विषय स्पष्ट करते हुए लेख लिखना है अर्थात् आपको अपने लेख में यह समझाना है कि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में क्या सन्देश दिया है। उत्तम लेख लिखने वाले प्रतिभागियों को अपना लेख कार्यक्रम में पढ़ने का अवसर दिया जायेगा। और उन्हें पुरस्कृत किया जायेगा। प्रतियोगिता में सभी आयु वर्ग के स्त्री और पुरुष भाग ले सकते हैं।


        प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आप अपना पञ्जीकरण करालें। पञ्जीकरण शुल्क मात्र १००/- है, जिसमें आपको सत्यार्थ प्रकाश भी उपलब्ध कराया जायेगा। यदि आपके पास सत्यार्थ प्रकाश है तो ५०/- देकर ही अपना पञ्जीकरण करा सकते हैं। आप अपना पञ्जीकरण केन्द्रों से करायें या अपने मोबाइल से भी अपना पञ्जीकरण करा सकते हैं, पेटीएम से या गूगल पे से पंजीकरण शुल्क भेजकर अपना फार्म जमा करा सकते हो। यदि सत्यार्थ प्रकाश आपके पास है तो केवल ५०/- भेजकर और सत्यार्थ प्रकाश चाहिए तो १५०/- भेजकर, जिसमें ५०/- कोरियर सेवा के लिए हैं। ( मोबाइल से पञ्जीकरण कराने के लिए सम्पर्क करें - श्री राकेश तिवारी ( कोषाध्यक्ष आर्य वीर जनपद आगरा एवं मन्त्री आर्य समाज ताजगंज, आगरा सम्पर्क सूत्र - 9456460570 )


कृपया ध्यान दें - आप अपना पञ्जीकरण शीघ्र करा लें तथा अपना लेख फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी दिन सोमवार विक्रम संवत् २०७८ (२८ फरवरी २०२२ ) तक अवश्य जमा करा दें।


   सत्यार्थ प्रकाश प्रतियोगिता का पञ्जीकरण विभिन्न नगरों में किया जा रहा है। प्रतियोगिता पञ्जीकरण केन्द्र निम्नलिखित हैं -


👉 आगरा

श्री पवन आर्य ( योगाचार्य ) - वैदिक लाइफ, योगा एण्ड मेडिटेशन सेन्टर, ई- ३११, कमला नगर आगरा ( उ०प्र० )

 सम्पर्क सूत्र : +91 89237 65866 )


👉 मथुरा

श्री कन्हैयालाल आर्य 

सत्य प्रकाशन

डाकघर - गायत्री तपोभूमि, वृन्दावन मार्ग

( आचार्य प्रेमभिक्षु मार्ग ), मसानी चौराहे के पास,

मथुरा - 281003 ( उ०प्र० )

सम्पर्क सूत्र - 9759804182


👉 फरीदाबाद

डॉ॰ गजराज आर्य ( सम्पर्क सूत्र - 9213771515 )

श्री देवेन्द्र शास्त्री ( सम्पर्क सूत्र - 8849649259 )

आर्य समाज सेक्टर19, फरीदाबाद, हरियाणा


👉 सोनीपत

आचार्य सन्दीप आर्य - आर्य समाज सेक्टर १४, सोनीपत हरियाणा

सम्पर्क सूत्र - 9466821003.


👉 पानीपत

डॉ॰ राजवीर आर्य - हरित ऊर्जा ( Green Energy ), एम जे आर रोड़, नियर डेज होटल, सेक्टर - 25, पानीपत, हरियाणा

सम्पर्क सूत्र - 7206266000.


👉 कोटा

श्री आर० सी० आर्य - 10 ए 23, महावीर नगर  - 3, (पारिजात ) कोटा - 324005 ( राजस्थान )

सम्पर्क सूत्र - 9660482456.


👉 कानपुर

श्री विनोद कुमार आर्य - 1/494 वेद सदन, ओम वाटिका पार्क, अम्बेडकरपुरम आवास विकास 3, कल्याणपुर कानपुर 208017

सम्पर्क सूत्र - 7985422247; 8765193154; 8765193154.


👉 दिल्ली

आचार्य यशपाल आर्य - गुरुकुल तिहाड़ गांव, दिल्ली

सम्पर्क सूत्र - 9818517125


👉 इन्दौर

डॉ॰ दक्षदेव गौड़ - आर्य समाज मल्हारगंज, इन्दौर

सम्पर्क सूत्र - 6264932951


👉 सहारनपुर

श्री अवनीश आर्य ( संचालक आर्य वीर दल जनपद सहारनपुर एवं मन्त्री आर्य उपप्रतिनिधि सभा सहारनपुर )

आर्य समाज जनक नगर निकट उत्सव पैलेस स्वामी श्रद्धनन्द मार्ग 

सम्पर्क सूत्र - 7417015335


👉 सुमेरपुर

डॉ॰ विवेक आर्य - मोहल्ला गुरगुज, आर्यसमाज भरूवा सुमेरपुर , जिला हमीरपुर उत्तर प्रदेश पिन 210502

 सम्पर्क सूत्र - 08423507590


👉 अगली बार देशभर कर अन्य स्थानों पर भी केन्द्र बनाये जायेंगे, केन्द्र बनाने के लिए आप भी अपनी सहमति दे सकते हैं।


        

          आप सभी भाई बहनों से विनम्र निवेदन है कि अधिक से अधिक भाई बहनों तक यह सन्देश पहुंचाने की कृपा करें जिससे अधिक लोग इस प्रतियोगिता में भाग से सकें।


     आर्य पुरोहित सभा का आगामी कार्यक्रम फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा दिन गुरुवार विक्रम संवत्‌ २०७८ ( ३ मार्च २०२२ )  को श्रीमती पुष्पा आर्या एवं श्री प्रतीक निधि गुप्ता जी के विशेष सहयोग से "वैदिक लाइफ, योगा एण्ड मेडिटेशन सेन्टर, ई- ३११, कमला नगर आगरा, में अपराह्न २:०० बजे से ५:०० बजे तक आयोजित किया गया है। जिसमें सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास की जानकारी दी जायेगी।


      आप सादर आमन्त्रित हैं कृपया कार्यक्रम में समय से पहुंचकर कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ायें। 


       इस कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आपके सुझाव आमन्त्रित हैं, अपने बहुमूल्य विचारों से हमें लाभान्वित करने की कृपा करें।


      आपकी बड़ी कृपा होगी।


        प्रतियोगिता से सम्बन्धित किसी भी जानकारी के लिए सम्पर्क करें - 9897060822


निवेदक

आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री  ( वैदिक प्रवक्ता )

संचालक आर्य वीर दल पश्चिमी उत्तर प्रदेश

प्रधान आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा


मनोज खुराना ( सी०ए०)

संचालक आर्य वीर दल जनपद आगरा

प्रधान आर्य समाज नाई की मण्डी, आगरा


विश्वेन्द्रार्य शास्त्री ( धर्माचार्य )

मन्त्री आर्य वीर दल जनपद आगरा

मन्त्री आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा


आर्य पुरोहित सभा जनपद आगरा एवं आर्य वीर दल जनपद आगरा के समस्त पदाधिकारी एवं समस्त सदस्यगण

सोमवार, 10 जनवरी 2022

तपोभूमि मासिक पत्रिका

"तपोभूमि" मासिक पत्रिका

       





           शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक कल्याण की साधिका, ( आर्य जगत में सर्वाधिक लोकप्रिय मासिक ) "तपोभूमि" पत्रिका।


ऋषि मिशन‌ में सहयोगी बनने के लिए तपोभूमि के सदस्य बनें।


वैचारिक क्रान्ति में सहयोगी बनने के लिए इस पत्रिका को पढ़कर औरों को भी पढ़ायें।


संस्थापक

स्व० आचार्य प्रेमभिक्षु जी महाराज


सम्पादक

आचार्य स्वदेश जी महाराज

9456811519


सहसम्पादक

आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

9897060822


व्यवस्थापक

कन्हैयालाल आर्य

9759804182


सत्य प्रकाशन

डाकघर - गायत्री तपोभूमि, वृन्दावन मार्ग

( आचार्य प्रेमभिक्षु मार्ग ), मसानी चौराहे के पास,

मथुरा - 281003 ( उ०प्र० )


सदस्यता शुल्क

 200/- वार्षिक ; 2100/- पन्द्रह वर्ष हेतु


इण्डियन ओवरसीज बैंक

शाखा युग निर्माण योजना, गायत्री तपोभूमि, जयसिंहपुरा, मथुरा

IFSC Code - IOBA 0001441

'सत्य प्रकाशन' खाता संख्या - 144101000002341


सदस्य बनने के लिए सम्पर्क करें - 9759804182

बुधवार, 8 सितंबर 2021

वेद ही क्यों ?

वेद ही क्यों ?

 हमारा सम्पूर्ण व्यवहार ज्ञान पर आधारित है।

जीवन को सफल करने के लिए, जीवन में उन्नति करने के लिए प्रमाणिक ज्ञान और अधिक ज्ञान की आवश्यकता है।

प्रामाणिक ज्ञान के लिए केवल वेद ही मूल आधार है।
व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्टयौर वैश्विक व्यवस्थाओं को ठीक करने के लिए वेद ज्ञान ही आधार है।

यहलोक और परलोक की सिद्धि के लिए वेद ज्ञान ही आधार है।

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

धर्म‌ की यथार्थता

                        ।।धर्म की यथार्थता ।।

                                आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री
                                               ( वैदिक प्रवक्ता )

     किसी भी शब्द के अर्थ को ठीक-ठीक(यथार्थ रूप से)जानकर ही सही प्रयोग किया जा सकता है। जैसे यज्ञ का अर्थ केवल हवन के लिए गौण हो गया है, जबकि यज्ञ का अर्थ देव पूजा ,संगतिकरण करना,और दान करना है ।महर्षि दयानंद के शब्दों में यदि उसको कहते हैं कि - जिसमें माता-पिता विद्वान का सत्कार यथा योग्य शिल्प अर्थात रसायन जोके पदार्थ विद्या उससे उपयोग और विद्याधीश गुणों का दान अग्निहोत्री आदि जिनसे वायु वृष्टि जन औषधि की पवित्रता करके सब जीवो को सुख पहुंचाना है।
यज्ञ संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करता है, यह सत्य है लेकिन इसके लिए यज्ञ करना यज्ञ के संपूर्ण अर्थ को जानकर इन्हें जीवन में धारण करना चाहिए।
       इसी प्रकार धर्म शब्द पूजा के लिए गौण हो गया है जन सामान्य के अनुसार जो लोग पूजा करते कराते हैं, वे धार्मिक कहलाते हैं। पूजा स्थल को धार्मिक स्थल कहा जाता है ।पूजा साहित्य को धार्मिक साहित्य कहा जाता है।
   क्या इसके अतिरिक्त और कोई धर्म और धार्मिक नहीं है ?
क्या ईमानदारी से व्यापार करने वाला व्यक्ति धार्मिक नहीं है ?
क्या जीवो पर दया करना धर्म नहीं है ?
क्या माता पिता की सेवा करना धर्म नहीं है ?
क्या राष्ट्रहित में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाला व्यक्ति धार्मिक नहीं है?
      उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर सोचते हैं या पूछते हैं तो उत्तर धर्म है ऐसा आता है ।अर्थात् माता-पिता की सेवा करना धर्म है इमानदारी से व्यापार करना धर्म है राष्ट्रहित में बलिदान धर्म है तो फिर धर्म का यथार्थ रूप क्या है?
 धर्म बहुत व्यापक है जिसमें पूजा का भी स्थान है लेकिन पूजा संपूर्ण धर्म नहीं उसका एक अंग है (वास्तव में वेदानुकूल पूजा ही धर्म है, वेद विरुद्ध पूजा धर्म नहीं है )।व्यक्तिगत, आत्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और विश्व उन्नति के लिए अपनाए गए सभी उचित कर्तव्य धर्म के अंतर्गत आते हैं।
धर्म की परिभाषाएँ:-
भाषा वैज्ञानिक महामुनि पाणिनि का व्याकरण के अनुसार धृञ् धारणे धातु से मन् प्रत्यय के योग से धर्म शब्द सिद्ध होता है।
"धारणात् धर्म इत्याहुः" "ध्रियते अनेन लोकः।"
 आदि व्युत्पत्तियों के अनुसार जिसे आत्मोन्नति और उत्तम सुख के लिए धारण किया जाए अथवा जिसके द्वारा लोगों को धारण किया जाए अर्थात् व्यवस्था या मर्यादा में रखा जाए उसे धर्म कहते हैं ।इस प्रकार आत्मा की उन्नति करने वाला मुख्य तथा उत्तम व्यावहारिक सुख को देने वाला सदाचार कर्तव्य अथवा श्रेष्ठ विधान नियम धर्म है।
  वैशेषिक दर्शनकार महर्षि कणाद धर्म के विषय में लिखते हैं-अथातो धर्म व्याख्यास्यामः।(वैशेषिक१/१/१)
अनंतर धर्म की व्याख्या करेंगे और आगे लिखते हैं- अतोsभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि: स धर्मः।(वै०१/१/२)
अर्थात्‌ जिसके आचरण से मनुष्य की शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक उन्नति, व्यावहारिक उत्तम सुख की प्राप्ति एवं वृद्धि हो तथा मोक्ष सुख की सिद्धि हो वह आचरण या कर्तव्य धर्म है।जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस की प्राप्ति होगी उसे धर्म कहते हैं।
 किसके आधार पर समझें इसका उत्तर देते हुए महर्षि लिखते हैं-तद्वचनादाम्नायस्य प्रामाण्यम्।
आम्नाय-वेद प्रामाण्य है अर्थात् धर्म के विषय में वेद ही प्रमाण है।
धर्म का ही आचरण करने से कल्याण होता है ।
धर्म हमें कहां से प्राप्त होगा ?
जो हमें आचरण करना है उस आचरण को कौन बताएगा?
 ऐसा ही प्रश्न अन्य ऋषियों के सामने आया।
"अथातो धर्म जिज्ञासा"(मीमांसा१/१/१)
धर्म को जानने की इच्छा के लिए विचार किया जाता है कहकर मीमांसा दर्शनकार महामुनि जैमिनि आरंभ करते हैं तथा धर्म के विषय को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि-चोदना लक्षणोsर्थो धर्मः।(मीमांसा१/१/२)
चोदना=नोदना=प्रेरणा=विधि वाक्य=वेद अर्थात्‌ विधि वाक्य से जो जाना जाए उसे धर्म का लक्षण कहते हैं ।अर्थात् वेदों से मनुष्यों को करने के लिए जो कर्तव्य निहित किये हैं। वह धर्म है।
महर्षि दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं -जो पक्षपात रहित,न्यायाचरण, सत्यभाषणादि युक्त ईश्वराज्ञा वेदों के अविरुद्ध है उसे धर्म और पक्षपात सहित न्याय अन्यायाचरण,मिथ्या भाषणादि ईश्वराज्ञा भंग,वेद विरुद्ध है उसको अधर्म कहते हैं।
         महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा दी गई धर्म अधर्म की परिभाषा एक कसौटी है ,यदि पक्षपात  नहीं हो रहा है, सत्यता के साथ न्याय किया जा रहा है तो धर्म है और यदि पक्षपात हो रहा है झूठ का सहारा लेकर अन्याय हो रहा है तो वह चाहे कोई भी करे अधर्म हो रहा है तथा सत्यासत्य का अंतिम प्रमाण वेद ही है।
            धर्म की जांच के प्रमाण:-
वेद धर्म है और वेद के विरुद्ध अधर्म है लेकिन आज संसार में अनेक धर्म कहे जा रहे हैं। देश, काल,परिस्थिति के अनुसार स्वार्थवश,अज्ञानवश कुछ व्यक्तियों ने संगठन बनाए जो मत,पंथ ,संप्रदाय हैं।जिन्हें आज धर्म कहा जा रहा है।तो क्या अनेक धर्म है ?
क्या अनेक धर्म हो सकते हैं?
 वेद ही धर्म क्यों है?
धर्म एक है।अनेक नहीं हो सकते। सत्य का कोई विकल्प नहीं है -अनेक सत्य नहीं होते और सत्य के साथ दूसरा कहलाने वाला असत्य होता है ।जब धर्म सत्य धर्म है तो असत्य दूसरा धर्म नहीं है ।असत्य अधर्म है इसी प्रकार चूंकि वेद परमात्मा प्रदत्त है अतः वेद ही धर्म है, दूसरा धर्म विरोधी अधर्म है ।
 हम सभी मत,पंथ, संप्रदायों को धर्म मान लेते हैं यदि वे सभी एक जैसी व सत्य बात करते,जबकि यह एक दूसरे के विरोधी हैं ।
जब दो व्यक्ति विरोधी बातें करते कर रहे हों तो -
दोनों सत्य नहीं हो सकते दोनों गलत तो हो सकते हैं।
 एक सही हो सकता है इसका पैमाना क्या है अर्थात् कैसे जांच की जाए कि कौन सही है, कौन गलत है?
 इसका उत्तर महर्षि दयानंद सरस्वती व्यवहार भानु में लिखते हैं सत्य का निर्णय करने के लिए।
१-ईश्वर,उसके गुण कर्म स्वभाव और वेद विद्या।
२-सृष्टि क्रम।
३-प्रत्यक्ष आदि आठ प्रमाण।
४-आप्तों का आचार-उपदेश-ग्रन्थ और सिद्धान्त ।
५- अपनी आत्मा की साक्षी, अनुकूलता,जिज्ञासा,पवित्रता और विज्ञान।
१-ईश्वरादि से परीक्षा करना इसको कहते हैं कि जो-जो ईश्वर के न्याय आदि गुण पक्षपात रहित सृष्टि बनाने का कर्म और सत्य,न्याय,दयालुता, परोपकारिता आदि स्वभाव और वेदोपदेश से सत्य धर्म ठहरे वही सत्य और धर्म है और जो-जो असत्य और अधर्म ठहरे वही असत्य और अधर्म है।
 जैसे कोई कहे कि बिना कारण और कर्ता के कार्य होता है तो सर्वथा मिथ्या जानना।इससे यह सिद्ध होता है कि जो सृष्टि की रचना करने हारा पदार्थ है वही ईश्वर और उस के गुण ,कर्म ,स्वभाव वेद और सृष्टिक्रम से ही निश्चित जाने जाते हैं।
२-सृष्टिक्रम उसको कहते हैं कि जो-जो सृष्टिक्रम अर्थात् सृष्टि के गुण,कर्म और स्वभाव से विरुद्ध हो वह मिथ्या और अनुकूल हो वह सत्य कहाता  है ।
   जैसे कोई कहे बिना मां-बाप का लड़का,कान से देखना,आंख से बोलना आदि होता वा हुआ है ऐसी-ऐसी बातें सृष्टिक्रम के विरुद्ध होने से मिथ्या और माता-पिता से संतान,कान से सुनना और आंख से देखना आदि सृष्टिक्रम के अनुकूल होने से सत्य ही है।
३-प्रत्यक्षादि आठ प्रमाणों से परीक्षा करना उसको सत्य कहते हैं कि जो-जो प्रत्यक्षादि प्रमाणों से ठीक-ठीक ठहरे वह सत्य और जो-जो विरुद्ध ठहरे वह मिथ्या समझना चाहिए।
  जैसे किसी ने किसी से कहा कि यह क्या है? दूसरे ने कहा कि पृथिवी । यह प्रत्यक्ष है ।
इसको देख कर उसके कारण का निश्चय करना अनुमान।जैसे बिना बनाने हारे के घर नहीं बन सकता वैसे ही सृष्टि का बनाने हारा ईश्वर ही बड़ा कारीगर है।यह दृष्टांत उपमान और सत्योपदेष्टाओं  का उपदेश वह शब्द।
भूतकालस्थ पुरुषों की चेष्टा,सृष्टि आदि पदार्थों की कथा आदि को ऎतिह्य ।
  एक बात को सुनकर बिना सुने  कहे कोई प्रसंग से दूसरी बात को जान लेना यह अर्थापत्ति ।
कारण से कार्य होना आदि को संभव और आठवां अभाव अर्थात् किसी ने किसी से कहा कि जल ले आ। उसने  वहां जल के अभाव को जानकर तर्क से जाना वहां जल नहीं है जहाँ जम है वहाँ से  जल लाकर देना चाहिए ,यह अभाव का प्रमाण कहाता है ।
इन आठ प्रमाणों से  जो विपरीत न हो वह-वह सत्य और जो- जो उल्टा हो मिथ्या है।
४-आप्तों के आचार और सिद्धान्त से परीक्षा करना उसको कहते हैं जो-जो सत्यवादी,सत्यकारी,सत्यमानी, पक्षपातरहित, सब के हितैषी, विद्वान्, सबके सुख के लिए प्रयत्न करें वे धार्मिक लोग आप्त कहाते हैं। उनके उपदेश, आचार,ग्रंथ और सिद्धांत से जो युक्त हो वह सत्य और जो विपरीत हो वह मिथ्या है।
५-आत्मा से परीक्षा उसको कहते हैं कि जो- जो अपनी आत्मा अपने लिए चाहे सो-सो सब के लिए चाहना और जो- जो न चाहे सो-सो किसी के लिए न चाहना ।जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा मन में वैसा क्रिया में, होने की इच्छा जानने की इच्छा, शुद्ध भाव और विद्या के नेत्र से देखकर सत्य और असत्य का निश्चय करना चाहिए।
  इन पांच प्रकार की परीक्षाओं से पढ़ने पढ़ाने हारे तथा सब मनुष्य सत्यासत्य का निर्णय करके धर्म का ग्रहण और अधर्म का परित्याग करें करावें।
  उपरोक्त पांचों प्रमाणों का आधार भी वेद ही है इसीलिए ईश्वर, आप्त, ग्रंथ आदि के विषय की स्पष्टता,सत्यता वेद ज्ञान से ही संभव है ।
    आज संसार में विभिन्न मत,पंथ,संप्रदाय चल रहे हैं।सभी एक दूसरे के विरोधी हैं तथा धर्म कहलाते हैं जोकि धर्म नहीं हो सकते। धर्म मेल को कहते हैं विरोध को नहीं विरोधी होने पर कोई न कोई गलत है जैसे एक अध्यापक ने 40 विद्यार्थियों को एक गणित का प्रश्न हल करने को दिया उनमें से 15 विद्यार्थियों का उत्तर सही था तथा 25 विद्यार्थियों का उत्तर गलत था।यदि अब प्रश्न यह कर दिया जाए के समानता 15 विद्यार्थियों के उत्तर में है या 25 विद्यार्थियों के उत्तर में है तो उत्तर होगा कि 15 विद्यार्थियों के उत्तर में समानता है क्योंकि यह सही है।सही-सही ही मिलता है, गलत-गलत नहीं मिलता। विभिन्न संप्रदायों का एक दूसरे के साथ वैचारिक मतभेद (न मिलना)यह बताता है कि कोई न कोई गलत है। अगर सभी सही सही होते तो मिला होता।इसीलिए सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक वेद ही धर्म है ।अतः वेद पर ही चलना चाहिए।
    सत्य सनातन वैदिक धर्म के आगे दुनिया का कोई भी सांप्रदायिक अपने संप्रदाय की डींग नहीं मार सकता है।
धर्म का व्यावहारिक रूप:-
      एक बार ऋषि,महर्षि एकाग्रता पूर्वक बैठे हुए महाराज मनु के पास जाकर और उनका यथोचित सत्कार करके बोले- हे भगवान् आप ही धर्म कर्तव्यों को बताने में समर्थ हैं। कृपा करके हमें बताइए ।इस जिज्ञासा रूपी प्रश्न के उत्तर में महाराज मनु ने सही कर्तव्यों और धर्म का मूल वेद ही कहा-
वेदोsखिलो धर्म मूलं स्मृति शीले च तद्विदाम्।
आचारश्चैव साधुनां आत्मनस्तुष्टिरेव च।।(मनु१/१२५)
संपूर्ण वेद अर्थात् चारों वेद (ऋग्वेद,यजुर्वेद, सामवेद,अथर्ववेद)के पारंगत विद्वानों के रचे हुए स्मृति ग्रंथ (वेदानुकूल धर्मशास्त्र), श्रेष्ठ गुणों से संपन्न स्वभाव एवं श्रेष्ठ सत्याचरण करने वाले पुरुषों का सदाचार तथा ऐसे ही श्रेष्ठ सदाचरण करने वाले व्यक्तियों की अपनी आत्मा की संतुष्टि के कार्य धर्म के मूल हैं।
    उपरोक्त श्लोक  के माध्यम से धर्म के विषय में व्यापक समाधान दिया है इसमें चार प्रश्नों के उत्तर हैं ।
प्रश्न-धर्म का मूल स्रोत क्या है?
उत्तर- धर्म का मूल स्रोत वेद है ।
प्रश्न- क्या वेद के अतिरिक्त ग्रंथ भी धर्म ग्रंथ हैं ?
प्रश्न- स्मृति आदि धर्मग्रंथ (वेदानुकूल)
प्रश्न- स्मृतियों के अतिरिक्त धर्म की जानकारी कैसे होगी?
उत्तर- वेदानुकूल आचरण करने वाले साधुओं के आचरण से ।
प्रश्न-साधुओं के आचरण के अतिरिक्त धर्म को कैसे जानें।
उत्तर-श्रेष्ठ आचरण करने वाले व्यक्तियों की आत्मा की संतुष्टि के कार्यों से।
     इन चारों प्रश्नों पर थोड़ा-थोड़ा प्रकाश डालते हैं। प्रथम प्रकाश के उत्तर में मनु महाराज का कथन है कि(वेद:अखिल धर्म मूलम्) वेद धर्म का मूल है। क्योंकि वेद परमात्मा का ज्ञान है।
    इस संदर्भ में कुछ कसौटियां इस प्रकार हैं-
१- ईश्वरीय ज्ञान मानव सृष्टि के आरंभ में होना चाहिए।
२- ईश्वरीय ज्ञान पूर्ण होना चाहिए।
३-  ईश्वरीय ज्ञान में ईश्वर के बनाये  संसार के साथ एकरूपता होनी चाहिए।
४- ईश्वरीय ज्ञान विज्ञान के अनुकूल होना चाहिए।
५- ईश्वरीय ज्ञान पक्षपात रहित( मनुष्य मात्र के लिए )होना चाहिए।
      वेद ही उपरोक्त कसौटियों पर खरा उतरता है अतः वेद ज्ञा न ही ईश्वरीय ज्ञान है। इसीलिए वेद ही धर्म है ।
   द्वितीय प्रश्न -जो वेदों को न पढ़ सकें तो धर्म की जानकारी कैसे हो? इस प्रश्न के उत्तर में मनु महाराज कहते हैं कि -( स्मृति शीले च तद्विदाम्) स्मृति आदि से धर्म का ज्ञान प्राप्त होगा ।इस प्रकार के उत्तर पर क्या सभी स्मृतियां धर्म ग्रंथ की श्रेणी में आयेंगी?क्या पुराण धर्म ग्रंथ की श्रेणी में आयेंगे? क्या सांप्रदायिक ग्रंथ भी धर्म ग्रंथ की श्रेणी में आयेंगे? 
     इसका उत्तर यह होगा कि वे ही स्मृतियां या ग्रंथ धर्म ग्रंथों की श्रेणी में आयेंगे  जो वेदानुकूल होंगे। वेद विरुद्ध या स्मृतियाँ धर्म ग्रंथ नहीं हैं।महाराज मनु वेद के दस लक्षण मनुस्मृति में इस प्रकार लिखते हैं-                         धृतिः क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।(मनु६/९२)
 महर्षि दयानंद ने संस्कार विधि में इस श्लोक को उद्धृत कर के वहां अहिंसा को भी धर्म का लक्षण मानकर धर्म के ग्यारह  लक्षण कहा है-
१-अहिंसा-किसी से वैर बुद्धि करके उसके अनिष्ट में कभी ना बर्तना।
२-धृतिः- सुख-दुख, हानि-लाभ में व्याकुल होकर धर्म को न छोड़ना, किंतु धैर्य से धर्म ही में स्थिर रहना।
३-क्षमा- निन्दास्तुति, मानापमान को सहन करके धर्म ही करना।
४-दमः- मन को अधर्म से सदा हटाकर धर्म में ही प्रवृत्त करना।
५- अस्तेयम्-  मन,कर्म,वचन से अन्याय और अधर्म से पराये द्रव्य का स्वीकार न करना।
६-शौचम्- राग,द्वेष त्याग से आत्मा और मन को पवित्र रखना तथा जलादि से शरीर को शुद्ध रखना ।
७-इन्द्रियनिग्रह- श्रोत्रादि बाह्यइन्द्रियों को अधर्म से हटाकर धर्म ही मैं चलाना ।
८-धीः-वेदादि सत्य विद्या, ब्रह्मचर्य ,सत्संग करने ,कुसंग-दुर्व्यसन,मद्यपानादि त्याग से बुद्धि को सदा बढ़ाते रहना ।
९-विद्या-जिससे भूमि से लेकर परमेश्वर पर्यंत यथार्थ बोध होता है वह विद्या को प्राप्त करना ।
१०-सत्यम्-सत्य मानना, सत्य बोलना ,सत्य करना।
११-अक्रोध- क्रोधादि दोषों को छोड़कर शान्त्यादि गुणों को ग्रहण करना धर्म कहाता है ।
   महर्षि पतंजलि योग दर्शन में उपरोक्त लक्षणों को योग के अंगों यम और नियम में रखते हैं। इनके बिना योग साधना नहीं की जा सकती।
यम- अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यपरिग्रहा यमाः।
नियम-शौचसन्तोषतपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः।
महर्षि अगस्त्य इन  लक्षणों को ही तीर्थ कहते हैं-
सत्यं तीर्थं क्षमा तीर्थं तीर्थमिन्द्रियनिग्रह:।।
सर्वभूत दया तीर्थं तीर्थमार्जवमेव च।।
दान तीर्थं दमस्तीर्थं संतोषस्तीर्थमुच्यते"।
ब्रह्मचर्यं परं तीर्थं तीर्थं च प्रियवादिता।।
ज्ञान तीर्थं धृतिस्तीर्थं तपस्तीर्थमुदाहृतम्। 
तीर्थानामपि तत्तीर्थं विशुद्धिर्मनसःनरा।।
न जल्पाप्लुतः देहस्य स्नानमित्यभिधीयते।
स स्नातो यो दमस्नातः शुद्धि मनोबलः।।
                   (काशीखण्ड३/२४-३२)

सत्य तीर्थ है,क्षमा तीर्थ है,इंद्रिय संयम तीर्थ है, सब प्राणियों के प्रति दया तीर्थ है,सरलता ,दान ,मन का दमन, संतोष ब्रह्मचर्य ,प्रिय बोलना भी तीर्थ है। ज्ञान, धृति और तपस्या यह सब तीर्थ है, इनमें ब्रह्मचर्य परम तीर्थ है, मन की विशुद्धि तीर्थों का भी तीर्थ है, जल में डुबकी लगाने का नाम ही स्नान नहीं है ,जिसने इंद्रिय संयम रूप स्नान किया बुराहै वहीं स्नान है और जिसका चित्त शुद्ध हो गया वही पवित्र है।
    समाजशास्त्र में इन लक्षणों को मानव मूल्य कहा है अर्थात् यदि व्यक्ति इन लक्षणों को अपने जीवन में धारण करता है तो वह मूल्यवान हो जाता है। प्रसिद्ध हो जाता है,मान सम्मान को प्राप्त करता है।
       सत्य,अहिंसा,धैर्य, परोपकार,संतोष,विद्या, अस्तेय, अक्रोध,समयपालन, प्रेम,उत्साह,निर्भीकता, संयम, पवित्रता आदि मानव मूल्य हैं।
अधर्म के लक्षण:-
महाराज मनु ने अधर्म के भी दस लक्षण लिखे हैं-
परद्रव्येषु अभिध्यानम्,मनसा अनिष्टचिन्तनम्।
वितथ अभिनिवेशश्च,त्रिविध कर्म मानसम्।।(मनु१२/५)
मानसिक कर्मों में से तीन मुख्य अधर्म हैं- परद्रव्य हरण अथवा चोरी का विचार,लोगों के बारे में बुरा चिंतन करना,मन में द्वेष करना,ईर्ष्या करना, मिथ्या निश्चय करना।
पारुष्यमनृतं चैव,पैशून्यं चापि सर्वशः।
असम्बद्ध प्रलापश्च,वाङ्मयं स्याच्चतुर्विधम्।।(मनु१२/६)
वाचिक का धर्म चार हैं- कठोर भाषण (सब समय पर,सब ठौर मृदुभाषण करना यह मनुष्यों को उचित है) किसी अंधे मनुष्य को ओ अंधे! ऐसा कह कर पुकारना नि:सन्देह सत्य है परंतु कठोर होने से अधर्म है, सत्य बोलना, पैशुन्य अर्थात् चुगली करना, असम्बद्ध प्रलाप अर्थात् जानबूझकर कर बातों को उड़ाना।
अदत्तानामुपदानम्,हिंसा चैवाविधानतः।
परदारोपसेवा च ,शारीरं त्रिविधं स्मृतम्।।(मनु१२/७)
शारीरिक अधर्म तीन हैं- चोरी करना ,हिंसा (क्रूर कर्म),व्यभिचार।
     तृतीय प्रश्न उपस्थित होता है,यदि मनुष्य स्मृति आदि धर्म ग्रंथों को न  पढ़ सके तो धर्म का जान कैसे होगा ?मनुष्य स्मृति आदि धर्म ग्रंथों को न पढ़ सकें तो(आचारश्चैव साधूनाम्) साधुओं की आचरण से धर्म की जानकारी करके अपने आचरण को ठीक करें।
        उपरोक्त कथन पर आज समाज में देखने पर बड़ा विचित्र- सा दृश्य सामने आता है।आज साधु कहलाने वाले व्यक्तियों के आचरण बड़े ही गंदे पाए जाते हैं तथा इन को आपस में लड़ते देखा जाता है। चोरी,डकैती,व्यभिचार,रिश्वतखोरी तस्करी आदि कार्यों में लिप्त पाए जाने वाले साधु वेषधारियों का आचरण अपनाने योग्य है क्या? साधु कहलाने वाले आपस में लड़ते हैं। क्या धर्म लड़ाना सिखाता है ? किसकी मानें-
∆   एक कहता है कि जीवों पर दया करना धर्म है ,जबकि दूसरा धर्म के नाम पर निरीह जीवों की हत्या कर देता है।
∆  एक कहता है कि पराई स्त्री को मां, बहन, बेटी के समान समझो, जबकि दूसरा कहता है कि हमारे धर्म (संप्रदाय) को ना मानने वालों की स्त्रियों का अपहरण करो।
 ∆  एक कहता है कि पराये धन को मिट्टी के ढेले के समान समझो, जबकि  दूसरा धर्म के नाम पर लूट कराता है और लूट को पवित्र कहता है ।
∆  एक कहता है कि परमात्मा सभी को न्याय करके कर्मों का फल देता है ,जबकि दूसरा कहता है कि परमात्मा केवल हमारे धर्म( संप्रदाय) के लोगों पर ही दया करता है दूसरे धर्म के व्यक्तियों पर दया नहीं करता।
∆  एक कहता है कि आत्मा अमर है ,जबकि  दूसरा कहता है कि आत्मा शरीर के साथ ही मर जाता है।
∆   एक कहता है कि जो जैसा करेगा वैसा फल प्राप्त करेगा ,जबकि दूसरा पाप से बचने के सरल प्रलोभन दे रहा है । 
∆  एक कहता है के परिवार के सदस्यों को आपस में मिलकर रहना धर्म है ,जबकि  दूसरा तंत्र- मंत्र- यंत्र का जाल बिछाकर परिवार के सदस्यों को आपस में लड़ा देता है ,पड़ोसियों को आपस में लड़ा देता है।
∆   किसके कथन को सत्य मानें ,क्योंकि दोनों ही स्वयं को धर्म का प्रचारक, रक्षक, पोषक( ठेकेदार) कहते हैं।
     उपरोक्त शंकाओं का समाधान तो साधु शब्द से ही हो जाता है ,क्योंकि श्रेष्ठ अर्थात् वेदानुसार आचरण करने वाले व्यक्ति को ही साधु कहते हैं और उनका ही आचरण अपनाने के लिए महाराज मनु कहते हैं। नकली साधुओं ने संसार में वैचारिक प्रदूषण किया है जिससे ही सब समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।
   प्रश्न चतुर्थ  उपस्थित होता है कि साधुओं के न मिलने पर धर्म का ज्ञान कैसे होगा? इस प्रश्न के उत्तर में महाराज मनु का कहना है कि (आत्मनतुष्टिः।) आत्मा की संतुष्टि जिन कारणों से होती है वे धर्म होते हैं।
  ऐसा  कहने पर फिर शंकायें होती हैं-
    इस प्रकार तो व्यक्तियों की संख्या के अनुसार आत्मा के प्रिय संतुष्टि के कार्य भी पृथक- पृथक हो जाएंगे, क्या यह सब धर्म होगा ?
   इसी प्रकार दुष्ट संस्कारी,राक्षस संस्कारी, तमोगुणी प्राणी हैं ,बाल्यकाल से ही जो जीव हत्या, मांस भक्षण आदि कार्य करते आ रहे हैं उनमें इन कार्यों के प्रति भय,शंका तथा लज्जा की अनुभूति नहीं होती है क्या उनकी आत्मा के प्रिय को धर्म  माना जायेगा।
   जैसे कोई व्यक्ति सन्ध्योपासना, अग्निहोत्र, विद्या प्राप्ति,शुद्धि और कर्तव्य पालन नहीं करता और    अतीन्द्रियासक्ति,अंधविश्वास, अंधमान्यता आदि से ग्रस्त हैं तो वह चाहेगा कि मैं इन सब बातों के संदर्भ में किसी से कुछ नहीं कहता तो दूसरे भी मुझसे कुछ न कहें। दूसरों के कहने पर वह पीड़ा अनुभव करेगा, क्या उसकी आत्मा की संतुष्टि धर्म है?
इन आपत्तियों के होने पर यह कहा जा सकता है कि सभी की आत्मा प्रिय संतुष्टि करने वाला कार्य धर्म  नहीं होता अपितु सद्गुण संपन्न साधु पुण्यात्मा विद्वानों की आत्मा के प्रिय कार्य ही धर्म हैं अर्थात् जो वेदानुकूल आचरण करते हैं उन्हीं की आत्मा की संतुष्टि के कार्य धर्म कहलाते हैं।
     महर्षि दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश की भूमिका में लिखते हैं -कि मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य का जानने वाला है तथापि अपने प्रयोजन की सिद्धि, हठ, दुराग्रह और विद्यादि दोषों से सत्य को छोड़ असत्य में झुक जाता है ।अर्थात् जो व्यक्ति स्वार्थी, हठी, दुराग्रही एवं अविद्वान् है उसकी आत्मा का प्रिय धर्म नहीं है अपितु जो परोपकारी ,विद्वान् है उसी की आत्मा की संतुष्टि धर्म है।व्यावहारिक कार्यों के लिए महर्षि पतंजलि योग दर्शन में लिखते हैं- जिन कार्यों के करने से आत्मा में भय,शंका तथा लज्जा होती है वे कार्य अधर्म होते हैं, उन्हें नहीं करना चाहिए ।
 महात्मा चाणक्य ने कहा है-
आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पश्यति।      (चा०नी०१२/१३)
जो अपनी आत्मा की तरह सभी प्राणियों की आत्मा को देखता है वह सही देखता है।
महर्षि व्यास ने कहा -
श्रूयतां धर्म सर्वस्व श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्‌।।
       सुनो धर्म सर्वस्व और सुनकर धारण कर लो, अपनी आत्मा के प्रतिकूल किसी के साथ आचरण मत करो। जैसा अपने लिए चाहते हो वैसा दूसरों के लिए करो यही धर्म अर्थात् हम जैसा- जैसा अपने लिए चाहते हैं वैसा- वैसा ही व्यवहार दूसरों के लिए करें, मैं चाहता हूं कि सब मेरा सम्मान करें तो मुझे भी सब का सम्मान करना चाहिए। मैं चाहता हूं कि मेरी उन्नति होती रहे, मेरी उन्नति में कोई बाधक न बने  तो मैं भी किसी की उन्नति में बाधक न बनूं। मैं चाहता हूं कि मेरा जीवन दुःख रहित हो तो मुझे भी चाहिए कि मैं किसी को दुख न दूं।
चाहता है खैर अपनी काट गर्दन और की,
 ऐसी बातों से सजन मन को लगाना छोड़ दे।
 इस मुबारक पेट में कबरें बनाना छोड़ दे।।
          महर्षि दयानंद सरस्वती ने उसी को मनुष्य का है जो कि आत्मानुसार बर्ते- मनुष्य उसी को कहना जो मननशील होकर स्वात्मवत् अन्य के सुख-दुख और हानि- लाभ को समझे। अन्यायकारी बलवान से भी न डरे और धर्मात्मा निर्बल से भी डरता रहे । इतना ही नहीं किन्तु अपने सर्व  सामर्थ्य से धर्मात्माओं की, चाहे वे महा अनाथ, निर्बल क्यों न हों उनकी रक्षा, उन्नति, प्रियाचरण और अधर्मी चाहे चक्रवर्ती, सनाथ ,महाबलवान और गुणवान भी हो उससे भी न डरे।  
अर्थात् जहां तक हो सके वहां तक अन्यायकारियों के बल की हानि और न्यायकारियों के बल की उन्नति सर्वथा करे,इस काम में चाहे उसको कितना ही दारुण दुख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी चले जायें, परन्तु इस मनुष्य रूपी धर्म से पृथक कभी न होवे।ब्रह्मा से लेकर दयानंद पर्यंत ऋषियों ने जो भी संदेश दिया है वह वेद का ही है।
 उपरोक्त आत्मवत्  व्यवहार का चिंतन वेद में इस प्रकार दिया है-
यजुर्वेद में आत्मवत् व्यवहार करने का ही उपदेश है-
यस्मिन्त्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः।
तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनुपश्यतः।।(यजु४०/३)
    हे मनुष्यो!जिस  परमात्मा, ज्ञान,विज्ञान वा धर्म विशेष कर ध्यान दृष्टि से देखते हुए को सब  प्राणी मात्र अपने तुल्य ही सुख-दुख वाले होते हैं उस परमात्मा आदि में अद्वितीय भाव को अनुकूल योगाभ्यास से देखते हुए योगीजन को कौन मूढावस्था और शोक वा क्लेश होता है अर्थात कुछ भी नहीं ।
भावार्थ- जो विद्वान्, सन्यासी लोग परमात्मा के सहचारी प्राणिमात्र को अपने आत्मा के तुल्य जानते हैं अर्थात् जैसा अपना हित चाहते हैं वैसे ही अन्य में ही वर्तते हैं, एक अद्वितीय परमेश्वर के शरण को प्राप्त होते हैं उनको मोह शोक और लोभादि कदाचित् प्राप्त नहीं होते और जो लोग अपने आत्मा को यथावत् जानकर परमात्मा को जानते हैं वे सदा सुखी होते हैं।
यजुर्वेद में आत्मा के विरुद्ध आचरण करने वालों की गति का वर्णन किया है-
असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसावृताः।
तांस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनोजनाः।।(४०/३)
   प्रस्तुत विवरण से  स्पष्ट है कि धर्म का यथार्थ ज्ञान हमें वेद से ही हो सकता है ।अन्य किसी मार्ग से नहीं। अतः हमें वेद में वर्णित आचारसंहिता का पालन करना चाहिए।
 वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है।(महर्षि दयानन्द )
 वेद ही अनंत ज्ञान का भण्डार है ।(अनन्ताः वै वेदाः महर्षि याज्ञवल्क्य)
वेद से महान् कोई शास्त्र नहीं है (नास्ति वेदात् परं शास्त्रम् -महर्षि अत्रि)
जो वेद की निन्दा करता है वही नास्तिक कहलाता है। (नास्तिको वेद निन्दकः)।
वेद को पढ़ें-पढा़यें, सुनें- सुनायें, प्राप्त ज्ञान को जीवन में अपनायें तभी मानव जीवन सफल होगा।

                 ।।ओ३म्।।
वेदों में वर्णित आचार संहिता ही धर्म है ।वेदो में विधि और निषेध दो प्रकार के आदेश हैं ।विधि -अर्थात् यह करो ,निषेध- अर्थात् यह न करो ।जो कर्म करने को वेद में आदेश है प्रत्येक व्यक्ति को वही करना चाहिए ।जो कर्म न करने का आदेश है वह हम नहीं करना चाहिए ।वस्तुतः यही धर्म है।
    यदि उपरोक्त प्रकरण को ऐसे समझ में तो अधिक अच्छा होगा कि हमारा प्रत्येक कर्म व्यक्तिगत,पारिवारिक,सामाजिक, राष्ट्रीय तथा वैश्विक कर्म वेद विहित होना चाहिए।
१-व्यक्तिगत धर्म
२-पारिवारिक धर्म
३-व्यापारिक धर्म
४-सामाजिक धर्म
५-राष्ट्रीय धर्म
६-वैश्विक धर्म
व्यक्तिगत धर्म
प्रत्येक व्यक्ति को प्रथम स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए। स्वस्थ रहने के तीन साधन हैं- भोजन ,नींद एवं ब्रह्मचर्य और तीनों को व्यवस्थित करने के लिए आसन और प्राणायाम करना अत्यावश्यक है ।भोजन हमें ऋत् भुक्,मित् भुक्,हित भुक् अर्थात् ऋत(सत्य) ईमानदारी से कमाए धन के द्वारा भोजन करना, आवश्यकता के अनुसार तथा हित अहित विचार करके ही करना चाहिए।
 मानसिक उन्नति के लिए स्वाध्याय गायत्री मंत्र के साथ ईश्वर का ध्यान।
   आत्मिक उन्नति के लिए
१- ईश्वर, जीव, प्रकृति का यथार्थ ज्ञान ।
२- कर्म फल व्यवस्था अर्थात् जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। यह जानना तथा मानना,तदनुसार कार्य करना।
३- योग साधना करना अर्थात्‌ यम,नियम, आसन, प्राणायाम ,प्रत्याहार,धारणा, ध्यान,समाधि तक जाना।
   अत्यावश्यक कर्म -अपने द्वारा हो रहे प्रदूषण के निवारण के लिए स्वच्छता बनाये रखना,वृक्षारोपण , दैनिक अग्निहोत्रादि  कर्म करना।
पारिवारिक धर्म:-
प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा परिवारजनों के संबंधों का कर्तव्य पालन करना।
  पिता अपने कर्तव्य का पालन करें ,माता अपने कर्तव्य का पालन करें, इसी प्रकार पति ,पत्नी, पुत्र,पुत्री,भाई,बहन, दादा,दादी सभी अपने अपने कर्तव्य का पालन करें।
व्यापारिक धर्म:-
व्यक्ति जिस व्यापार से जुड़ा हो उसे ईमानदारी के साथ करे (खेती,व्यापार,नौकरी, मजदूरी )।
जिस प्रकार एक व्यापारी के द्वारा सामान सही तौलकर देना, सामान का सही होना, (नकली न होना) तथा मूल्य भी उचित रखना ही धर्म है। इसके विपरीत कम तोलना,मिलावट करना तथा अधिक मूल्य लेना अधर्म है। इसी प्रकार अन्य डॉक्टर,इंजीनियर,वकील,अध्यापक,क्लर्क, किसान, मजदूर,धर्माचार्य आदि का  ईमानदारी के साथ कर्तव्य करना ही धर्म है।
सामाजिक धर्म:-
समाज में सुख,शांति एवं समृद्धि हो ऐसा कर्म करना,मिलकर चलना, समाज में फैलने वाली कुरीतियों, अंधविश्वास,पाखण्डों,ठगों से समाज की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य ही धर्म है।
राष्ट्र धर्म:-
राष्ट्र रक्षित तो हम सुरक्षित
राष्ट्र रक्षा प्रत्येक व्यक्ति का आवश्यक धर्म है।प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि वह राष्ट्र को हानि पहुंचाने वाले तत्वों  से निपटने के लिए तन,मन और धन  से सहयोग करके प्रयत्न करें। राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि धर्म है ।जब राष्ट्र सुरक्षित होगा तो सभी  कर्म आराम से सही-सही होते रहते हैं।
वैश्विक धर्म:-
चूंकि प्रत्येक व्यक्ति विश्व का भी अंग होता है तो सारे संसार को अच्छा बनाया जाए ऐसे प्रयास करने चाहिए।
इत्योम्।।


       

बुधवार, 18 नवंबर 2020

विवाह संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री

विवाह संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री


१ किलोग्राम - घृत ( घी )

५०० ग्राम - हवन सामग्री ( गुरुकुल कांगड़ी या एम०डी०एच० या आर्य समाज की उत्तम सामग्री होनी चाहिए )


सामग्री में मिलाने हेतु पदार्थ —

१०० ग्राम - बूरा या गुड या शक्कर 

५० ग्राम - जौ या तिल या चावल 

१०० ग्राम - पञ्च मेवा

१०० ग्राम - गिलोय 

५० ग्राम - गुग्गुल 


५ किलोग्राम - समिधा { आम्र आदि की समिधा सूखी होनी चाहिए, समिधा गीली व घुनी ( कीड़ा लगी ) नहीं होनी चाहिए।}


२ नग - यज्ञोपवीत

६ टिक्की - कपूर

१ नग - दियासलाई ( माचिस )

---------- रुई ( दीपक के लिए )

---------- कलावा

---------- दही

---------- शहद

---------- शमीपत्र

---------- खील

---------- फल

---------- सिन्दूर

---------- पुष्प

---------- मिष्ठान

---------- चावल

---------- आम के पत्ते

---------- आटा, हल्दी, रोली यज्ञ कुण्ड ( वेदी ) सज्जा के लिए


२ आसन

२ छोटे तौलिये

१ कलश

१ शूप

१ पाषाण ( पत्थर का टुकड़ा )


यज्ञ पात्र

१ दीपक

१ लोटा

५ थाली

६ कटोरी या आचमनी पात्र

१ बड़ी कटोरी घी के लिए

६ चम्मच

१ परात

१ चिमटा

१ यज्ञकुण्ड


-------- दान तथा दक्षिणा के लिए द्रव्य



यज्ञ( हवन ), कथा, प्रवचन, आदि अनुष्ठानों, नामकरण, मुण्डन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि संस्कारों तथा जन्मदिन, गृह प्रवेश, व्यापारिक प्रतिष्ठान शुभारम्भ, वैवाहिक वर्षगांठ, व्यापारोन्नति आदि विभिन्‍न अनुष्ठानों की सफलता हेतु सम्पर्क करें—


आचार्य हरिशंकर अग्निहोत्री

                         (वैदिक प्रवक्ता)

अध्यक्ष - आर्य पुरोहित सभा

सहसम्पादक - तपोभूमि मासिक पत्रिका

संचालक - आर्य वीर दल पश्चिमी उत्तर प्रदेश

दूरभाष - ९८९७०६०८२२; ९४११०८२३४०

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रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्धक काढ़ा ( चूर्ण )

रोग_प्रतिरोधक_क्षमता_वर्धक_काढ़ा ( चूर्ण ) ( भारत सरकार / आयुष मन्त्रालय द्वारा निर्दिष्ट ) घटक - गिलोय, मुलहटी, तुलसी, दालचीनी, हल्दी, सौंठ...